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४३२]
श्री विपाक सूत्र--
[अष्टम अध्याय
परिचायक है।-छक्खमणपारणगंसि-इत्यादि पदों का अर्थ पृष्ठ १२३ पर लिखा गया है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम नगर का उल्लेख है जब कि प्रस्तुत में शौरिक नगर का । शेष वर्णन समान ही है।
-अज्झथिए ५ . यहां पर दिये गये ५के अंक से विवक्षित पाठ की सूचना पृष्ठ १३३ पर दी जा चुकी है । तया -पुरा जाव विरहति - यहां पठित जाव-यावत् पद से पृष्ठ ४७ पर पढ़े गये-पोराणाणं दुच्चिराणाणं दुप्पडिकन्ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे- इन पदों का परिचायक है ।
__ - भगवं जाव पुव्वभवपुच्छा वागरणं- यहां पठित-जाव-यावत् पद-महावीरे तेणेव उवागात २ समणस्स भगवो महावीरस्स 'अदूरसामन्ते गमणागमणार पडिक्कमइ २ एसणमणेसणे आलोएड् २ भत्तपाणं पडिदंसति, समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति वन्दित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं भन्ते ! तुब्भेहिं अब्भणुराणाते समाणे सोरियपुरे नयरे उच्चनीयमझमकुिले अडमाणे अहापज्जत्त समुदाणं गहाय सोरियपुराओ-से लेकर - किमिकवले य वममाणं पासामि पासित्ता इमे अज्झथिए-से ले कर -- जाव-विहरति- यहां तक के पदों का परिचायक है । तथा-पुथ्वभवपुच्छा यह पद पृष्ठ ५१ पर पढ़े गये -से णं भन्ते ! पुरिसे पुत्वभवे के श्राति १- से लेकर .. पुरा पोराणाणं जाव विहरति-- यहां तक के पदों का परिचायक है। वागरणं-का अर्थ है - भगवान् का उत्तररूप में प्रतिपादन ।
भगवान् गौतम का भिक्षा लेकर आना, आकर आलोचना करना और साथ में ही उस दुःखी व्यक्ति के पूर्वभवसम्बन्धी वृत्तान्त को पूछना, इस बात को प्रमाणित करता है कि उस दृश्य से श्रनगार गौतम स्वामी इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपने पारणे का भी ध्यान नहीं रहा, और यदि रहा भी हो तो भी उस भयंकर अथच करुणाजनक दृश्य ने उन्हें इस बात पर विवश कर दिया कि पारणे से पूर्व ही उस विचारे की जीवनी को अवगत कर लिया जाए. ऐसा समझना।
प्रस्तुत सूत्र म प्रस्तुत अध्ययन के प्रधान पात्रों का परिचय कराया गया है, और सा में गौतम स्वामी द्वारा देखे गये एक दुःखी पुरुष का वर्णन तथा उसके विषय में गौतम स्वामी के प्रश्न का उल्लेख भी किया गया है । अब अग्रिमसूत्र में भगवान् के द्वारा प्रस्तुत किये गये उत्तर का वर्णन किया जाता है - मल-3एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं २ इहेव जंबुद्दीवे दीवे मारहे वासे णंदिपुरे
११) अदूरसामन्ते इत्यादि पदों का अर्थ पृष्ठ १३३ पर किया जा चका है ।
(२) ये पद पृष्ठ ४२९ पर उल्लिखित है । अन्तर मात्र इतना है कि पडिनिक्खमति के स्थान पर पडिनिखमामि- यह समझ लेना ।
(३) छाया-एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले २ इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे नन्दिपुर नाम नगरमभवत् । मित्रो राजा, तस्य श्रीदो नाम महानसिकोऽभूदधार्मिको यावद् दुष्प्रत्यानंदः । तस्य श्रीदस्य महानसिकस्य बहवो मात्स्यिकाश्च वागुरिकाश्च शाकुनिकाश्च दत्तभृतिभक्तवेतनाः कल्याकल्यि बहून् लक्षणमत्स्यांश्च यावत् पताकातिपताकांश्च अजांश्च यावद् महिषांश्च तित्तिराँश्च यावद् मयूरांश्च जीविताद् व्यपरोपयन्ति व्यपरोप्य श्रीदाय महानसिकायोपनयन्ति । अन्ये च तस्य बहव तित्तिराश्च यावद् मयूराश्च पञ्जरे सन्निरुद्धास्तिष्ठन्ति । अन्ये च बहवः पुरुषाः दत्तभृतिभक्तवेतनाः तान् बहून् तित्तिरांश्च यावद् मयूरांश्च जीवित एव निष्पक्षयन्त निष्पक्षयित्वा श्रीदाय महानसिकायोपनयन्ति । ततः स श्रीदो महानसिको बहूनां जलचरस्थलच. रखचराणां मांसानि कल्पनीकल्पितानि करोति, तद्यथा-सूक्ष्मखंडितानि च वृत्तदीर्घहस्वखण्डितानि हिमपक्कानि
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