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अष्टम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित।
___ [४२९ भगवत्रो महावीरस्स जेडे जाव सोरियपुरे णगरे उच्चनीयमज्झिमकुले अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गहाय सोरियपुराओ णगरायो पडिनिक्खमति २ तस्स मच्छंधपाडगस्स अदरसामंतेणं वीइवयमाणे महतिमहालियाए मणुस्सपारसाए मझगयं एगं पुरिसं सुक्खं भुक्ख णिम्मंसं अद्विचम्मावणद्ध किडिकिडियाभूयं णीलसाडगनियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाई कलुणाई वीसराई उक्कूवमाणं अभिक्खणं २ पूयकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य वममाणं पासति २ इमे अज्झथिए ५ समुप्पन्ने-अहो णं इमे पुरिसे पुरा जाब विहरांत । एवं संपेहेति २ जेणेव समणे भगवं जाव पुव्वभवपुच्छा वागरणं ।
पदार्थ-तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय में । सामी- स्वामी-भ्रमण भगवान् महावीर । समोसढे-पधारे । जाव-यावत् अर्थात् परिषद् और राजा । गो-चला गया । तेणं कालेणं २-उस काल और उस समय में । समणस्स - श्रमण । भगवो भगवान् । महावीरस्स - महावीर स्वामी के । जेठे- ज्येष्ठ शिष्य गौतमस्वामी । जाव- यावत् । सोरियपुरे-शौरिकपुर । णगरेनगर में । उच्चनीयमज्झिमकुले-उच्च नीच तथा मध्यम -- सामान्य गृहों में । अडमाणे-भ्रमण करते हुए । अहापज्जनं-यथेष्ट । समुदाणं- समुदान - गृहसमुदाय से प्राप्त भिक्षा । गहाय-ग्रहण करके । सोरियपुराओ - शौरिकपुर । णगराओ-नगर से । पडिनिकमति २-निकलते हैं निकल कर । तस्स-उस मच्छंधपाडगस्स-मत्स्यबंधों - मच्छीमारों के पाटक मुहल्ले के। अदूरसामतेणं-समीप से । वीइवयमाणे - गमन करते हुए । महतिमहालियार-बहुत बड़ी । मणुस्सपरिसाए- मनुष्यों की परिषद् - समुदाय के । मझगयं-मध्यगत । एगं-एक । पुरिसं-पुरुष को । सुक्खं -सूखे हुए को । भुक्खं-बुभुक्षित को। णिम्मसं-निमांस-मांसरहित को। अछिचम्मावणद्ध - अतिकृश होने के कारण जिस का चर्म-चमड़ा हड्डियों से संलग्न है-चिपटा हुआ है । किडिकिडियाभूयं-जो किटिकिटिका शब्द कर रहा है। णीलसाडगनियत्यं-नीलशाटकनिवसित नील शाटक-धोती धारण किये हुए मच्छकंट. एणं-मत्स्यकंटक के । गलए-गल में - कण्ठ में । अणुलग्गणं - लगे होने के कारण । कटाई- कष्टात्मक । कलुणाई -- करुणाजनक । वीसराई--विस्वर दीनतापूर्ण वचन । उक्त्र माणं-बोलते हुए को, तथा । श्रमिक वर्ण २-बार बार । प्रयकवले य पीब के कवलो कल्लों का । रुहिरकत्रले य--रुधिरक खून के कुल्लों का । किमिकवले य- कृमिकवलों-कीड़ों के कुल्लो का । वममाणं-वमन करते हुए को । पासति २ – देखते हैं, देख कर । इने- यह । अझस्थिर ५---प्राध्यात्मिक संकल्प ५ । समुप्पन्ने -उत्पन्न हुअा | अहो -- खेद है, कि । अयं- यह । पुरिले -पुरुष । पुरा- पुरातन । जाव- यावत् । विहरति-विहरण कर रहा है। एवं-इस प्रकार । संपेहेति २-विचार करते हैं, विचार कर। जेणेवजहां । समणे-श्रमण । भगवं भगवान् महावीर स्वामी थे। जाव - यावत् । पुत्वभवपुच्छापूर्वभव की पृच्छा की। वागरणं- भगवान् का प्रतिपादन । भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठो यावत् शौरिकपुरे नगरे उच्चनीचमध्यमकुलेऽटन् यथापर्याप्त समुदानं गृहीत्वा शौरिकपुराद् नगरात् प्रतिनिष्कामति २ तस्य मत्स्यबंधपाटकस्यादूरासन्ने व्यतिव्रजन् महातिमहत्यां मनु. ध्यपरिषदि मध्यगतमेकं पुरुषं शुष्क, बुभ क्षतं निर्मासमस्थिचविनद्धं किटिकिटिकाभूतं, नीलशाटक निवसितं मत्स्यकंटकेन गलेऽनुलग्नेन कष्टानि करुणानि विस्वराणि उत्कूर्जतमभीक्ष्णं २ पूयकवलांश्च, साधरकवलाश्च, कृमिकवलांश्च वमन्तं पश्यति २ अयमाध्यात्मिकः २ समुत्पन्न:--अहो ! अयं पुरुषः यावद् विहरति । एवं सम्प्रेक्षते २ यत्रैव श्रमणो भगवान् यावत् पूर्वभवपृच्छा, व्याकरणम् ।
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