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श्री विप क सूत्र
[ अष्ठम अध्याय
जम्बू स्वामी की उक्त प्रार्थना के उत्तर में अष्टम अध्ययन के अर्थ का श्रवण कराने के लिये आर्य सुधर्मा स्वामी प्रस्तुत अध्ययन का "-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं -" इत्यादि पदों से प्रारम्भ करते हैं । आर्य सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि हे जम्बू ! जब इस अवसर्पिणी काल का चौथा आरा बीत रहा था, तो उस समय शौरिकपुर नाम का एक सुप्रसिद्ध और समृद्धिशाली नगर था । वहां विविध प्रकार के धनी, मानी, व्यापारी लोग रहा करते थे । उस नगर के बाहिर शौरिकावतंसक नाम का एक विशाल तथा रमणीय उद्यान था । उस में शौरिक नाम का एक बड़ा पुराना
और मनोहर यक्षमन्दिर था । नगर के अधिपति का नाम महाराजा शौरिकदन था, जो कि पूरा नीतिज्ञ और प्रजावत्सल था ।
शौरिकपुर नगर के उत्तर और पूर्व दिशा के मध्य में अर्थात् ईशान कोण में मत्स्यबंधपाटक-अर्थात् मच्छियों को मार कर तथा उनके मांस आदि को बेच कर आजीविका करने वालों का एक मुहल्ला था । उस मुहल्ले में समुद्रदत्त नाम का एक प्रसिद्ध मत्त्यबन्ध - मच्छीमार रहा करता था, जो कि महान् अधर्मी तथा पापमय कर्मा में सदा निरत रहने वाला, एवं जिस को प्रसन्न करना अत्यधिक कठिन था । उस को समुद्रदत्ता नाम की भार्या थी जो कि रूप लावण्य में अत्यन्त मनोहर, गुणवती और पतिपरायणा थी । इन के शौरिकदत्त नाम का एक पुत्र था जोकि सुसंगठित शरीर वाला और रूपवान था, उस के सभी अंगोपांग सम्पूर्ण अथच दशनीय थे, परन्तु वह भी पिता की तरह मांसाहारी और मच्छियों का व्यापार करता हुआ जीवन व्यतीत किया करता था।
-अट्ठमस्स उक्खेवो- यहां प्रयुक्त अष्टम शब्द अष्टमाध्याय का परिचायक है और उत्क्षेप पद प्रस्तावना, उपोद्घात. प्रारम्भ वाक्य- इत्यादि अर्थों का बोधक है । प्रस्तुत में उत्क्षेप पद से संसूचित प्रस्तावनारूप सूत्रांश निम्नोक्त है
जति णं भंते ! समणेणं जाव सम्पत्तणं सत्तमम्स अभयणस्स अयम8 पण्णत्त, अट्ठमस्त णं भंते ! अज्झयणम्स दुहविवागाणां समणेणं जाव सम्पत्तणं के अटे परणत्ते ?- अर्थात् हे भगवन् ! यदि दुःखविपाक के सप्तम अध्ययन का यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! यावत् मोक्ष-सम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के अष्टम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ।,
अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे - यहां पठित जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ का विवर्ण पृष्ठ ५५ पर, तथा प्रथम - समुद्रदत्ता के पाठ में पठित-अहीण- के बिन्दु से अभिमत पाठ पृष्ठ १०५ की टिप्पण में, तथा शौरिकदत्त के सम्बन्ध में पटित-अहीर- के बिन्दु से अभिमत पाठ पृष्ठ १२० पर लिखा जा चुका है।
अब सूत्रकार शौरिकपुर नगर में भगवान् महावीर स्वामी के पधारने और भगवान् गौतम द्वारा देखे गये एक करुणाजनक दृश्य आदि का वर्णन करते हैं -
मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव, गो। तेणं कालेणं २ समणस्स
(१) पाटक नाम मुहल्ले का है, उस पाटक अर्थात् मुहल्ले में अधिक संख्या ऐसे लोगों की थी जो मच्छियों को मार कर अपना निर्वाह किया करते थे, इसीलिए उस मुहल्ले का नाम मत्स्यबन्धों मच्छी मारने वालों) का पाटक-मुहल्ला पड़ गया था।
(२) छाया- तस्मिन् काले तस्मिन् समये स्वामी समवसृतो, यावद गतः । तस्मिन् काले २ श्रमणस्य
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