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३४८ ]
श्री विपाक सूत्र -
[ षष्ठ अध्याय
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रहते थे ।
ईय - सुइयों के, तथा । डंभणाण य - दम्भनों अर्थात् अग्नि में तपा कर जिन से शरीर में दाग दिया जाता है - चिन्ह किया जाता है, इस प्रकार को लोहमय शलाकाओं के, तथा कोहिल्लाणयकौटिल्यों - लघु मुद्गर - विशेत्रों के पुजा - पुञ्ज । णिगरा य और निकर । चिहन्ति-रहते थे । तस्स णं उस | दुज्जोहणस्स - दुर्योधन । चारगपालस्स – चार कपाल के । बहवे – अनेक । सत्थाण यशस्त्रविशेषों । पिप्पलाण य-पिप्पलों छोटे २ कुरों । कुहाड़ाण - कुठारों- कुल्हाड़ों । नहळेपणाण य-नखच्छेदकों - नहेरनों । दब्भाण य और दभ - डाभों अथवा दर्भ के अग्रभाग की भांति तीक्ष्ण हथियारों के । पुजा - पुज । गिरा य - निकर | चिट्ठन्ति मूलार्थ - हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इसो जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में सिंहपुर नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित, और समृद्ध नगर था । वहां सिंहस्थ नाम का राजा राज्य किया करता था । उसका दुर्योधन नाम का एक चारकपाल - कारागृहरक्षक - जेलर था । जो कि अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द - कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था । उसके निनोक्त चारकभांड - कारागार के उपकरण थे 1 अनेकविध लोहमय कुडियां थीं, जिन में से कई एक ताम्र से पूर्ण थीं, कई एक त्रपु से परिपूर्ण थीं, कई एक सीसक-सिक्के से पूर्ण थीं, कितनी एक चूर्ण मिश्रित ' जल से भरी हुई र कितनी एक क्षारयुक्त तैल से भरी हुई थीं जोकि अग्नि पर रक्खी रहती थीं ।
तथा दुर्योधन नामक उस चारकपाल- जेलर के पास अनेक उष्ट्रों के पृष्ठभाग के समान बड़े २ बर्तन (मटके) थे, उन में से कितने एक अश्वमूत्र से भरे हुए थे, तथा कितने एक हस्तिमूत्र से भरे हुए थे, कितने एक उष्ट्रमूत्र से, कितने एक गोमूत्र से कितने एक महिष - मूत्र से, कितने एक अजमूत्र और कितने एक भेडों के मूत्र से भरे हुए थे।
तथा दुर्योधन नामक उस चारकपाल के अनेक हस्तान्दुक (हाथ में बांधने का काष्ठ - - निर्मित बन्धनविशेष ), पादान्दुक (पांव में बांधने का काष्ठनिमित बन्धनविशेष) हडि - काठ की बेड़ी, निगड़ - लाहे की बेड़ी और श्रृंखला - लोहे की जंजीर के पुंज ( शिवरयुक्त राशि ) तथा निकर ( शिखरहत ढेर ) लगाये हुए रक्खे थे ।
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तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक गुलताओं-बांस के चाबुकों, बेंत के च, चिंचा- इमली के चाबुकों, कोमल चर्म के चाबुकों तथा सामान्य चाबुक (कोडाओं) और वल्कलरश्मियों - वृक्षों को त्वचा से निर्मित चाबुकों के पुज और निकर रक्खे पड़े थे ।
तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक शिलाओं, लकड़ियों, मुद्गरों और कनंगरों के पुंज और निकर रक्खे हुए थे ।
तथा दुर्योधन के पास अनेकविध चमड़े की रस्सियों, सामान्य रस्सियों, वल्कलरज्जु - वृक्षों की त्वचा - छाल से निर्मित रज्जुओं, केशरज्जुओं और सूत्र की रज्जुओं के पुरंज और निकर रक्खे हुए 1
तथा उस दुर्योधन के पास असिपत्र (कृपा), करपत्र (आरा), क्षुरपत्र (उस्तरा ) और कदम्बची पत्र ( शस्त्रविशेष) के पुंज और निकर रक्खे हुए थे ।
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(१) चूर्णमिश्रित जल का अभिप्राय यह प्रतीत होता है कि ऐसा पानी जिस का स्पर्श होते ही शरीर में जलन उत्पन्न हो जाय और उस के अन्दर दाह पैदा कर दे ।