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षष्ठ अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित
(३६९
टीका-भावी जन्मों की पृच्छा के सम्बन्ध में पहले पृष्ठ ८८, तथा १८३, तथा ३०६ पर काफी लिखा जा चुका है । अन्तर मात्र नाम का है, कहीं मृगापुत्र का नाम है, कहीं उज्झितक कुमार का तथा कहीं शकट कुमार का। शेष वर्णन समान ही है । अत: पाठक वहीं पर देख सकते हैं।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फ़रमाया वह निम्नोक्त हैमूल-' से गोतमा ! णंदिसेणे कमारे सद्धिं वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए० संसारो तहेब जाव पुढवीए० । ततो हत्थिणाउरे णगरे मच्छत्ताए उववजिहिति । से णं तत्थ मच्छिएहिं वहिते समाणे तत्थेव सिट्टिकुले० बोहिं० सोहम्मे० महाविदेहे० सिज्झिहिति, बुज्झिहिति, मुच्चिहिति, परिनिव्वाहिति, सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति । णिक्खेवो।
|| छट्ट अज्झयणं समनं ।। पदार्थ-गोतमा!-हे गौतम ! । से-वह । णंदिसेणे-नन्दिषेण । कुमारे-कुमार । सढ़ि-साठ । वासाई-वर्षों की । परमाउ-परमायु को । पालइत्ता-पालकर - भोग कर । कालमासे-मृत्यु के समय में । कालं किच्चा-काल कर के । इमीसे-इस । रयणप्पभाए- रत्नप्रभा नाम की । पुढवीए०-पृथिवी में - नरक में उत्पन्न होगा तथा अवशिष्ट । संसारो-संसारभ्रमण । तहेव-पूर्ववत् जान लेना चाहिये । जाव-यावत् । पुढवीए० -पृथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा । ततो-वहां से अर्थात् पृथिवीकाया से निकल कर । हथिणाउरे-हस्तिनापुर। गगरे-नगर में । मच्छत्ताए-मत्स्यरूप से । उववज्जिहिति-उत्पन्न होगा । से णं-वह । तत्थ-वहां पर । मच्छिएहिं-मात्स्यिकों - मत्स्यों का वध करने वालों से । वहिते समाणे - वध को प्राप्त होता हुआ । तत्थेव-वहीं पर । सिटिकुले-श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होगा, वहां पर । बोहिं० -बोधिलाभ अर्थात् सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा, तथा । सोहम्मे० - सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा । वहां से च्यव कर । महाविदेहे ०-महाविदेहक्षेत्र में जन्मेगा वहां पर चारित्र का अाराधन कर । सिज्झिहिति- सिद्ध होगा । बुज्झिहिति - केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकल पदार्थों को जानने वाला हागा । मुच्चिहिति- सम्पूर्ण कर्मों से मुक्त होगा। परिनिव्वाहिति - परम निर्वाण पद को प्राप्त करेगा। सम्बदुकावाणं- सर्व प्रकार के दुःखों का । अंतं - अन्त । करेहिति -- करेगा । गियो -नि क्षेत्र - उपसंहार पूर्ववत् जान लेना चाहिये । छठं-छठा । अझयणं-अध्ययन । समतसम्पूर्ण हुआ ।
मूलार्थ-हे गौतम ! वह नन्दिषेण कमार साठ वर्ष की परम आयु को भोग कर मत्यु के सम। में काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथिवी-नरक में उत्पन्न होगा । उस का शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् समझन! अर्थात् प्रथम अध्ययनगत वर्णन को भाति जान लेना, यावत् वह पथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा।
(१) छाया --स गौतम ! नन्दिषेणः कुमारः षष्टिं वर्षाणि परमायु: पालयित्वा कालमासे काल कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां० संसारस्तथैव यावत् पृथिव्याम् । ततो हस्तिनापुरे नगरे मत्स्यतयोपपत्स्यते । स तत्र मात्स्यिक धितः सन् तत्रैव श्रेष्ठिकुले० बोधि० सौधर्मे महाविदेहे० सेत्स्यति, भोत्स्यते, मोक्ष्यते, परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति । निक्षेपः ।
॥ षष्ठमध्ययनं समाप्तम् ॥
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