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३८०]
श्री विपाक सूत्र
सप्तम अध्याय
पुर । णगरे- नगर में । कणगरहे-कनकरथ । णाम-नाम का। राया-राजा । होत्या - था । तस्स णं-उस । कणगरहस्स - कनकरथ । रराणो-राजा का । धन्नंतरी - धन्वंतरि । णामं नामक । वेज्जे-वैद्य । होत्था-था, जो कि । अटुंगाउब्वेयपाढए - अष्टांग आयुर्वेद का अर्थात् आयुर्वेद के आठों अंगों का पाठक- ज्ञाता-जानकार था । तंजहा--जैसे कि । १-कोमारभिच्चं-१-कौमारभृत्य - आयुर्वेद का एक अंग जिप्त में कुमारों के दुग्धजन्य दोषों का उपशमनप्रधान वणन हो । २-सालागे-२-शालाक्य - चिकित्साशास्त्र - आयुर्वेद का एक अंग जिस में शरीर के नयन, नाक आदि ऊध्र्वभागों के रोगों की चिकित्सा का विशेषरूप से प्रतिपादन किया गया हो । ३ - सल्लहत्त - ३-शाल्यहत्य - आयुर्वेद का एक अंग जिस में शल्य -कण्टक, गोली आदि निकालने की विधि का वर्णन किया गया हो। ४-कायतिगिच्छा -४--कायचिकित्सा-शरीरगत रोगों की प्रतिक्रिया-इलाज तथा उसका प्रतिपादक आयुर्वेद का एक अंग। ५-जंगोले -५-आयुर्वेद का एक विभाग जिस में विषों की चिकित्सा का विधान है। ६ -- भूयवेज्जे-६ - भूतविद्या-आयर्वेद का वह विभाग जिस में भूतनि ग्रह का प्रतिपादन किया गया है। ७ – रसायणे -७-रसायन - आयु को स्थिर करने वालो और व्याधि - विनाशक औषधियों के विधान करने वाला प्रकरणविशेष । ८-वाजीकरणे-८- वाजीकरण --- बलवीर्यवर्द्धक औषधियों का विधायक
आयुर्वेदका एक अंग । तते णं-तदनन्तर । से- वह । धन्नंतरी-धन्वंतरि । वेज्जे-वैद्य, जो कि । सिवहत्थे-शिवहस्त - जिस का हाथ शिव - कल्याण उत्पन्न करने वाला हो । सुहहत्थे-शुभहस्त -- जिस का हाथ शु अथवा सुख उपजाने वाला हो। लहहत्थे लघुहस्त -जिस का हाथ कशलता से युक्त हो । विजयपुरे-विजयपुर । णगरे-नगर में । कणगरहस्स-कनकरथ । रगणो - राजा के। अंतेउरे यअन्तःपुर में रहने वाली राणी, दास तथा दासी आदि । अन्नेसिं च -और अन्य । बहूणं -- बहुत से । राईसर०-राजा-प्रजापालक, ईश्वर - ऐश्वर्य वाला । जाव~यावत् । सत्थवाहाणं-सार्थवाहों -- संघ के नायकों को तथा । अन्नेसिं च-और अन्य । बहूणं-बहुत से। दुब्व ना ग य - दुबलों तथा । गिलाणाण-ग्लानों -ग्लानि प्राप्त करने वालों अर्थात किसी मानसिक चिन्ता से सदा उदास रहने वालों । य-और रोगियाणरोगियों य-तथा । वाहियाण य - व्याधिविशेष से आक्रान्त रहने वालों तथा । सणाहाण - सनाथों । यऔर । अणाहाण-अनाथों। य-और । समणाण-श्रमणों। य - तथा । माहणाण - ब्राह्मणों । यऔर । भिक्खुयाण-भिक्षुकों। य-तथा। करोडियाण -- करोटिक -- कापालिकों-भिक्षुविशेषों । यऔर । कप्पडियाण-कार्पटिकों-भिखमंगों अथवा कन्थाधारी भिक्षुयों। य - तथा । श्राउराण य-आतुरों की (चिकित्सा करता है, और इन में से।। अप्पेगतियाणं - कितनों को तो मच्छमसाई- मत्स्यों के मांसो का अर्थात् उनके भक्षण का। उवदिसति-उपदेश देता है । अप्पेगतियाणं-कितनों को । कच्छभमंसा. ई-कच्छपमांसों का कच्छुओं के मांसों को भक्षण करने का। अप्पेगांतयाणं-कितनों को। गाहमंसाईग्राहों-जलचरविशेषों के मांसों का। अप्पेगतियाणं-कितनों को । मगरमसाई-मगरों-जलचरविशेषों के मांसों का। अप्पेगतियाणं-कितनों को । सुमारमसाई-सु सुमारों-जलचर विशेषों के मांसों का । अप्पेतियाणं - कितनों को। अयमसाइ-अजों-बकरों के मांसों का । एवं- इसी प्रकार । एल-भेड़ों । रोज्झ-गक्यों अर्थात् नीलगायों । सूयर -शूकरों -सूयरों। मिग- मृगों - हरिणों । ससय-शशकों अर्थात् खरगोशों । गो-गौत्रों । महिसमसाइ-और महिषों - भैंसों के मांसों का (उपदेश देता है)। अप्पेगतिया. णं-कितनों को । तित्तिरमंसाई-तित्तरों के मांसों का। वट्टक-बटेरों । लावक- लावकों-पक्षिविशेषों । कवोत -कबूतरों । कुक्कुड-कुक्कड़ों - मुर्गों । मयूरमसाई-और मयूरों-मोरों के मांसों का उपदेश देता है। च-तथा। अन्नेसिं--अन्य । बहूणं-बहुत से । जलयर-जलचरों-जल में चलने वाले जीवों।
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