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श्री विपाक सूत्र
[षष्ठ अध्याय
प्रयुक्त होता है । निगड़-पांव में डालने की लोहमय बेड़ी का नाम है । ला--सांकल को अथवा लोहे का बना हुआ पादबन्धन–बेड़ी को कहते हैं । शिखर -चोटो वाली राशि -- ढेर को पंज, और बिना शिखर वाली राशि को निकर कहते हैं । तात्पर्य यह है कि बहुत ऊंचे तथा विस्तृत ढेर का पुज शब्द से ग्रहण होता है और सामान्य ढेर को निकर शब्द से बोधित किया जाता है ।
स्थल में उत्पन्न होने वाले बांस की छड़ी या चाबुक का नाम वेणुलता, तथा जल में उत्पन्न बांस की छड़ी या चाबुक को वेत्रलता कहते हैं । चिंचा-इमली का नाम है उसकी लकड़ी की लता- छड़ी या चाबुक को चिंचालता कहते हैं । छिवा यह देश्य-देशविशेष में बोला जाने वाला पद है, इस का अर्थ लक्षण कोमल चर्म का चाबुक -- कोड़ा होता है। सामान्य चर्म युक्त यष्टिका चाबुक का नाम कशा है । वल्कश्मि इस पद में दो शब्द हैं, एक वल्क दूसरा रश्मि । वल्क पेड की छाल को कहते हैं और रश्मि चाबुक का नाम है, तात्पर्य यह है कि वृक्षों की त्वचा से निमित चाबुक का नाम वल्करश्मि होता है।
चौड़े पत्थर का नाम शिला है। लकुट लाठी, छड़ी, लक्कड़ और डण्डे का नाम है । मदगर एक शस्त्रविशेष को कहते हैं । कनगर पद की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में_"के पानीये ये नगरा वोधिस्थनिश्चलीकरण पाषाणास्ते कनङ्गराः, कानङ्गराः वा ईषन्नगरा इत्यर्थः" इस प्रकार है। अर्थात् क नाम जल का है और नगर उस पत्थर को कहते हैं जो समुद्र में जहाज़ को निश्चल -स्थिर करता है । तात्पर्य यह है कि समुद्र में जहाज़ को स्थिर करने वाला एक प्रकार का पत्थर कनगर कहलाता है, जिसे आजकल लंगर कहा जाता है । टीकाकार के मत में कानगर शब्द भी प्रयुक्त होता है और उस का अर्थ – जहाज़ को स्थिर करने वाले छोटे २ पत्थर - ऐसा होता है।
तंत्री शब्द चमड़े की रस्सी के लिये प्रयुक्त होता है। बरत्रा शब्द का पद्मचन्द्रकोषकार हस्तिकक्षस्थ रज्जु अर्थात् हाथी की पेटी तथा अर्धमागधीकोषकार-चमड़े की रस्सी, तथा प्राकृतशब्दमहार्णवकोषकार – रस्सी और पण्डित मुनि श्री घासीलाल जी म० वरत्रा का-कपास के डोरों को मिला कर बटने से तैयार हुए मोटे २ रस्से अथवा चमड़े का रस्सा-ऐसा अर्थ करते हैं । परन्तु प्रस्तुत में रज्जुप्रकरण होने के कारण वरत्रा शब्द चर्ममय रस्सी, या सामान्य रस्सी या कपास आदि का रस्सा-इन अर्थों का परिचायक है । वृक्षविशेष की त्वचा से निर्मित रज्जु का नाम वल्करज्जु है । केशों से निर्मित रज्जु वालरज्जु और सूत्र की रस्सी को सूत्ररज्जु कहते हैं ।
अलिपत्र तलवार को, करपत्र पारे ( लोहे की दांतीदार पटरी, जिससे रेत कर लकड़ी चीरी जाती है, उसे आरा कहते हैं) को, क्षरपत्र - उस्तरे (बाल मूडने का औज़ार) को, और कदम्बचीरपत्र -शस्त्रविशेष को कहते हैं।
अलिपत्र का अर्थ टीकाकार ने तलवार लिखा है । परन्तु इस में एक शंका उत्पन्न होती है कि असि शब्द ही जब तलवार अर्थ का बोध करा देता है तो फिर असि के साथ पत्रशब्द का संयोजन क्यों? इस का उत्तर १स्थानांग सूत्रीय टीका में दिया गया है। वहां लिखा है
(१) पत्राणि पर्णानि तद्वत् प्रतनुतया यानि अस्यादीनि तानि पत्राणि इति, असि :-खड्ग :, स एव पत्रमसि पत्रं, करपत्रं-क्रकवं येन दारु छिद्यते, तुर :-छुर :, स एव पत्रं तुरपत्रं, कदम्बचीरिकेति शस्त्रविशेष इति । (स्थानांगसूत्रटीका, स्थान ४, उ०४ )
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