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जा चुका है।
षष्ठ अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[ ३५९
उहमुत्तं, गोमुत्तं महिसमुत्तं
- पज्जेति जाव एलमुत्तं - यहां पठित जाव यावत् पद से श्रयमुखं इन पदों का ग्रहण करना चाहिये । इन पदों का अर्थ स्पष्ट ही हैं । करेति जाव सत्थोवाडिए यहां के जाव-यावत पद से - पायचिन काछिन्नए, नक्कछिन्नए, उनिए, जिन्भद्दिन्नर, सीसछिन्नए - इत्यादि पदों का ग्रहण करना चाहिये । जिस के पांव काटे गये हैं उसे पादछिन्नक, जिसके कान काटे गये हों उसे कर्णछिन्नक, जिस का नाक काटा गया हो उसे नासिकाछिन्नक, जिसके होंठ काटे गये हैं उसे श्रोष्ठछिनक जिस की जिह्वा काटी गई है उसे जिहवाछिन्नक और जिस का शिर काटा गया है उसे शीर्ष छिनक कहते हैं । - वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि-यहां के जाब- यावत् पद से - वेत्तलयाहि य चिञ्चालयाहि य छिवाहि य कसाहि य इन पदों का तथा- - तंतीहि य जाव सुत्तरज्जूहि ययहां के जाव यावत् पढ़ से - वरताहि य वागरज्जूहि य वालरज्जूहि य - इन पदों का, तथा - असिपत्रोहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि य- यहां के जाव यावत् पद से - करपत्ते हि य खुरपत्तहि य - इन पदों का, तथा — सत्थरहिं जाव नहछेदणएहि - यहां के जाव यावत् पद से पिप्पलेहि कुहाडेहि य- इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन सब का अर्थ पृष्ठ ३५० तथा ३५१ पर किया जा चुका है ।
- एयकम्मे ४ - यहां दिये गए ४ के अंक से विवक्षित पाठ का वर्णन पृष्ठ १७९ के टिप्पण में किया
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प्रस्तुत कथासन्दर्भ के परिशीलन से जहां " - दुर्योधन चारकपाल निर्दयता की जीती जागती मूर्ति थी, उसका मानस अपराधियों को भीषण दंड देने पर भी सन्तुष्ट नहीं हो पाता था, श्रतः एव वह अत्यधिक क्रूरता लिये हुए था - " इस बात का पता चलता है, वहां यह श्राशंका भी उत्पन्न हो जाती है कि दुर्योधन चरकपाल से निर्दयतापूर्ण दण्डित हुए लोग उस दण्ड को सहन कैसे कर लेते थे १ मानवी प्राणी में इतना बल कहां हैं जो इस प्रकार के नरकतुल्य दुःख भोगने पर भी जीवित रह सके ?
उत्तर - अपराधियों के जीवित रहने या मर जाने के सम्बन्ध में सूत्रकार तो कुछ नहीं बतलाते, जिस पर कुछ दृढ़ता से कहा जा सके । तथापि ऐसी दण्ड – योजना में अपराधी का मर जाना कोई असंभव नहीं कहा जा सकता और यह भी नहीं कहा जा सकता कि अपराधी अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त कर लेते थे, क्योंकि दृढ़ संहनन वालों का ऐसे भीषण दण्ड का उपभोग कर लेने पर भी जीवित रहना संभव है । कैसे संभव है १, इस के सम्बन्ध में पीछे पृष्ठ २७३ पर विचार किया गया है। पाठक वहां देख सकते हैं । इतना ध्यान रहे कि वहां अभमसेन से सम्बन्ध रखने वाला वर्णन है, जब कि प्रस्तुत में अपराधियों से सम्बन्ध रखने वाला
अव सूत्रकार उसके भावी जीवन का निम्नलिखित सूत्र में उल्लेख करते हैंमूल- से गं ततो तर उच्चट्टित्ता इहेव महुगण रायरीए सिरिदामस्स रणो
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(१) छाया - स ततोऽनन्तरमुद् नृत्येहैव मथुरायां नगर्यां श्रीदाम्नो राज्ञो बन्धुभयो देव्याः कुक्षौ पुत्रartyraः । ततो बन्धुश्रीः नवसु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु दारकं प्रयाताः । ततस्तस्य दारकस्याम्बापितरौ निवृत्ते द्वादशाहे इदमेतद्रूपं नामधेयं कुरुतेः - भवत्वस्माकं दारको नन्दिषेणो नाम्ना । ततः नन्दिषेणः कुमारः पंचधात्रीपरिगृहीतो यावत् परिवर्द्धते । ततः सनन्दिषेणः कुमारः उन्मुक्तबालभावो यावद् विहरति यावद् युवराजो जातश्चाप्यभवत् । ततः स नन्दिषेणः कुमारो राज्ये च यावदन्त पुरे
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