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षष्ठ अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित
[ ३४७
भरो हुई थीं। अप्पेगनिया प्रो-कितने एक । खारतेल् तभरिया प्रो-क्षारयुक्त तैल से परिपूर्ण थीं, जो कि । अगणिकायंसि-अनिकाय-आग पर । अदहियारो-स्थापित की हुई । चिट्ठन्ति-रहती थीं । तस्त णं-उस । दुज्जोहणस्त-दुर्योधन । चारगपालस्स -चारकपाल के । बहवे - बहुत से । उहियाओ-ऊट के पृष्ठ भाग के समान बड़े २ वतन-मटके थे, जिन में से । अप्पेगतियाप्रो-कई एक तो । श्रासमुत्तभरियाओ-घोडों के मूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ-कई एक । हत्यिमुत्तभरियाओहाथियों के मूत्र से भरे हुए थे । अयेगतियाप्रो-कई एक । उमुतभारया रो-उष्ट्रों के मूत्र से भरे हुए थे । अप्पेगतिया प्रो-कई एक । गोमुत्तभरियाओ-गोमूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ-कई एक । अजमुत्तभरिया प्रो-अजों - बकरों के मूत्र से भरे हुए । अप्पेगतियाओ-और कितनेक । एलमुतभरियाओ-भेडों के मूत्र से भरे हुए थे, ये सब मटके । बहुपडिपुग्णाओ-सर्वथा परिपूण, अर्थात् मुह तक भरे। चिट्ठन्ति-रहते थे । तस्स णं - उस । दुज्जोहणस्स - दुर्योधन । चारगपालस्त-चारकपाल के। बहवे-अनेक । हत्थंदयाण य-हस्तान्दक-हाथ बांधने के लिये काष्ठ-निर्मित बन्धन-विशेष । पायदुयाण य-पादान्दुक-पादबन्धन के लिये काष्ठमय बंधनविशेष । हडीण य-हडि – काष्ठमय बन्धनविशेष - काठ की बेडी । नियलाण य-निगड़=पांव में डालने की लोहमय बेड़ी । संकलाण यशृखला -सांकल अथवा पांव के बांधने के लोहमय बन्धन, उन के । पुजा-पुज - शिखरयुक्त राशि । निगरा य -शिखररहित राशि - ढेर । सरिणक्वित्ता-एकत्रित किये हुए । चिन्ति-रहते थे । तस्स णं-उस । दुजोहणस्स-दुर्योधन । चारगपालस्स-चारकपाल के पास । बहवे-अनेक । वेणु नयाण य-वेणुलता-बांस के चाबुक । वेत्तलयाण य–वेत्रलता-वैत के चाबुकों। चिंचालयाणइमली वृक्ष के चाबुकों। छिवाण य-चिक्कण चर्म के कोडे । कसाण य-चर्मयुक्त चाबुक । वायरासोण य-वल्करश्मि अर्थात् वृक्षों की त्वचा से निर्मित चाबुक, उन के । पुजा -समूह तथा । णिगरा य-ढेर । चिट्ठन्ति-पड़े रहते थे । तस्स णं-उस । दुज्जोहणस्त - दुर्योधन । चारगपालस्स- चारकपाल के पास । बहवे-अनेकविध । सि ताण य-शिलाओं। लउडाण य-लकड़ियों । मुगराण य-मुद्गरों। कणंगराण य-कनंगरों-जल में चलने वाले जहाज आदि को स्थिर करने वाले शस्त्रविशेषों के । पुजा-पुजशिखरबद्ध राशि । णिगरा य-निकर-शिखररहित ढेर। चिन्ति -रक्खे हुए थे | तस्त णं- उस । दुज्जोहणस्त-दुर्योधन । चारगपालस्स- चारपालक के पास । बहवे-अनेक । तंतीण य-तंत्रियोंचमड़े की डोरियों । वरत्ताण य-एक प्रकार की रस्सियों । वागरज्ज य-वल्करज्जुत्रों-वृक्षों की त्वचा से निर्मित रस्सियों । वा जरज्जूण य-केशो से निर्मित रज्जुओं । सुत्तरज्जूण य-सूत को रस्सियों के। पंजा -पुज । णिगरा य-निकर -ढेर । सरिण क्खित्ता- रक्खे । चिट्ठन्ति-रहते थे । तस्त णंउस । दुज्जोहणस्त-दुर्योधन । चारगपालस्त-चारकपाल के पास । बहवे-अनेक । असिपत्ताग यकृपाणों । करपत्ताण य-बारों । खुरपत्ताण य-तुरकों - उस्तरों । कलम्ब वीरप ताण य-और कलंबचीरपत्र नामक शस्त्रविरोधों के । पुजा-पुज। जिगरा य-और निकर-ढेर। चिट्ठन्ति - रहते थे । तस्स णं-उस । दुज्जोहणस्स --दुर्योधन । चारगपालस्स -- चारकपाल के पास । बहवे-अनेक । लोहखोलाण य- लोहे के कीलों । कडसक्कराण य-बांस की शलाकाओं - सलाइयों तथा । चम्मपहाण यचर्मपट्टों-चमड़े के पट्टों । अलपहाण य-और अलपट्टों अर्थात् विच्छू की पूछ के आकार जैसे शस्त्रविशेषों के । पुजा-सशिखर समूह । णिगरा य-सामान्य समूह । चिट्ठन्ति-रहते थे । तस्स णं-उस । दुज्जोहणस्स - दुर्योधन । चारगपालस्स-चारकपाल के । बहवे-अनेक । सू.
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