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२६४]
श्री वपाक सूत्र
अध्याय
था । तेणेव-वहां पर । उवा० २ ता-आजाता है, आकर । करयल०-दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अजली कर के । महब्बलं -महाबल । गयं-राजा को । जएणं-जय एवं । विजएण-विजय शब्द से । वद्धावेति- बधाई देता है । वद्धावेत्ता - बधाई देकर । महत्थं- महार्थ । जाव-यावत् । पाहुडं - प्राभूत-उपहार को । उवणेति - अर्पण करता है । ततेणं-तदनन्तर । से-उस । महब्धले - महाबल । राया-नरेश | अभग्गसेस्स -अभग्नसेन । चोरसे०-चोरसेनापति के । तं-उस । महत्थं-महार्थ । जाव-यावत् प्राभृत-भेंट को। पडिच्छति-स्वीकार किया और । अभग्गसेणं - अभग्नसेन । चोरसेणावति-चोरसेनापति का। सक्कारेति २ संमाणेति २- सत्कार किया और सम्मान किया, सत्कार सम्मान करके उसे । पडिविसज्जेति-प्रतिविसर्जित किया -बिदा किया । च-और । से-उसे । कूडागारसालंकुटाकारशाला में । श्रावसहं-ठहरने के लिये स्थान । दलयति -दिया। तते णं-तदनन्तर । सेवह । अभग्गसेणे-अभग्नसेन । चोरसे गावती - चोरसेनापति । महब्बलेणं-महाबल । रगणाराजा से । विसज्जिते समाणे - बिदा किया हुआ । जेणेव-जहां पर । कूड़ागारसाला-कूटाकारशाला थी। तेणेव-वहां पर । उवागच्छति-पाता है और अाकर वहां ठहर जाता है । तते णं- तदतन्तर | से-उस । महब्बले - महाबल । राया--राजा ने । कोडुवियपुरिसे-कोटुम्बिकपुरुषों को । सद्दावेति २ त्ता-बुलाया और बुलाकर वह । एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा। देवाणु० !- हे भद्र पुरुषो!। तुब्भे- तुम । गच्छह णं- जाओ, जाकर । विउलं-विपुल । असणं ४-अशन, पान, खादिम और स्वादिम को । उवक् वाडावेह २-तैयार कराओ, तैयार करा कर । तं-उस । विउलं - विपुल । असणं ४-अशनादिक सामग्री । सुरं च ५--और सुरादिक पांच प्रकार के मद्यों को तथा । सुबहु-अनेकविध । पुष्क-पुष्प । वत्थ-वस्त्र । गंध-सुगंधित द्रव्य । मल्लालंकारं च -और माला तथा अलंकारादि को । अभग्गसेणस्स -अभग्नसेन । चोरसे०-चोरसेनापति को । कूडागारसालाए-कूटाकारशाला में । उवणेह-पहुँचानो। ततेतदनन्तर । ते-वे । कोडुबियपुरिसा-कौटुम्बिक पुरुष । करयल०-दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के । जाव-यावत् । उवणेति - उन सब पदार्थों को वहां पहुंचा देते हैं । तते णं-तदनन्तर । से-वह । अभग्गसेणे-अभग्नसेन । चोरसेणावई-चोरसेनापति बहूहिं-अनेक । मित्त०-मित्रादि के । सद्धिं-साथ । संपरिवुड़े-संपरिवृत - घिरा हुआ । एहायास्नान किये हुए । जाव-यावत् । सव्वालंकारविभूसिते-सम्पूर्ण अलंकारों से विभूषित हुआ । तं-उस । विउलं-विपुल । असणं ४-अशनादिक । सुरं च ५-सुरादिक-पञ्चविध-मद्यों का।
आसाएमाणे ४-आस्वादन, विस्वादन आदि करता हुआ । पमत्त-प्रमत्त हो कर। विहरतिविहरण करता है।
मूलार्थ-तदनन्तर मित्र आदि से घिरा हुआ वह अभग्नसेन चोरसेनापति स्नान से निवृत्त हो, यावत् अशुभ स्वप्न का फल विनष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक और अन्य मागिलक कार्य करके समस्त प्राभूषणों से अलंकृत हो शालाटवी चोरपल्ली से निकल कर जहां पुरिमताल नगर था और जहां पर महाबल नरेश था वहां पर आता है आकर दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नम्खों वाली अंजलि करके महाबल नरेश को जय एवं विजय शब्द से बधाई देता है, बधाई दे कर महार्थ यावत् राजा के योग्य प्राभृत-भेण्ट
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