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श्री विपाक सूत्र -
[ तीसरा अध्याय
दण्ड से निवृत्त-उत्पन्न द्रव्य दरिडम और कुदण्ड से निवृत्त द्रव्य कुदंडिम कहलाता है । इन दोनों का जिस उत्सव में अभाव हो उसे प्रदरिडम कुदरिडम कहते हैं ।
सकेगा ।
(५) अधरिम - धरिम शब्द ऋणद्रव्य ( कर्जा) का परिचायक है । जिस उत्सव में कोई किसी से अपना कर्जा नहीं ले सकता वह अधरिम कहलाता है । तात्पर्य यह है कि इस उत्सव में कोई किसी को ऋण के कारण पीड़ित नहीं कर (६) अधारणीय - जिस उत्सव में दुकान आदि लगाने के लिये राजा की ओर से आर्थिक सहायता दी जावे उसे अधारणीय कहते हैं । तात्पर्य यह है कि यदि किसी को काम करने के लिये रूपये की आवश्यकता हो तो वह किसी से कर्ज़ा नहीं लेगा, प्रत्युत राजा अपनी ओर से उसे रुपया देगा जोकि फिर वापिस नहीं लिया जायेगा । ऐसी व्यवस्था जिस उत्सव कहा जाता है ।
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में हो उसे अधारणीय
(७) अनुद्धत मृदंग - जिस उत्सव में वादकों बजाने वालों ने, मृदङ्ग - तबलों को बजाने के लिये ठीक ढंग से ऊंचा कर लिया है। अथवा जिसमें बजाने वालों ने बजाने के लिये मृदंगों को परिगृहीत- ग्रहण किया हुआ हो, उस उत्सव को अनुद्भूतमृदंग कहा जाता है ।
(८) अम्लानमाल्यदामा - जिस उत्सव में अम्लान- प्रफुल्लित पुष्प और पुष्पमालाओं का प्रबन्ध किया गया हो, उसे अम्लानमाल्यदामा कहते हैं ।
(९) गणिकावर नाटकीयकलित जो उत्सव प्रधान वेश्याओं और अच्छे २ नाटक करने वाले नटों से युक्त हो, अर्थात् जिस उत्सव में विख्यात वेश्याओं के गान एवं नृत्यादि का और चित्ताकर्षक नाटकों का विशेष प्रबन्ध किया गया हो, उसे गणिकावर नाटकीयकलित कहते हैं ।
(१०) अनेकता लाचरानुचरित -तालाचर - ताल बजा कर नाचने वाले का नाम है । जिस उत्सव में ताल बजाकर नाचने वाले अनेक लोग अपना कौशल दिखाते हैं, उस उत्सव को अनेकतालाचरानुचरित' कहते हैं ।
(११) प्रमुदितप्रक्रीडिताभिराम – जो उत्सव प्रमुदित - तमाशा दिखाने वाले और प्रक्रीडितखेलें दिखाने वालों से श्रभिराम मनोहर हो, उसे प्रमुदितप्रक्रीडिताभिराम कहते हैं ।
(१२) यथाई – जो उत्सव सर्व प्रकार से योग्य - आदर्श अथवा व्यवस्थित हो उसे यथार्ह
कहते हैं । तात्पर्य यह है कि यह उत्सव अपनी उपमा स्वयं ही रहेगा । इस की आदर्शता एवं व्यवस्था
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अनुपम होगी ।
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' - करयल• जाव एवं "यहां पठित जाव यावत् पद से विवक्षित पदों का विवर्ण पृष्ठ २४६ पर लिखा जा चुका है।
“ – वसहिपायरासेहिं " इस पद का अर्थ वृत्तिकार के शब्दो में - वासकप्रातर्भोजनैः
इस प्रकार है । यहां वसति शब्द वासक - पड़ाव का बोधक है और प्रातराश शब्द प्रातःकालीन भोजन का
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परिचायक है, जिसको कलेवा या नाश्ता भी कहा जाता है ।
महाबल नरेश के भेजे हुए अनुचरों को सप्रेम उत्तर देकर बिदा करने के बाद अभग्नसेन क्या करता है ? और पुरिमताल नगर में जाने पर उसके साथ क्या व्यवहार होता है ? अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में उस का वर्णन करते हैं -
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