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श्री वपाक सूत्र
[पश्चम अध्याय
से-वह । सयाणीए-शतानीक । राया- राजा । अन्यया कयाइ---किसी अन्य समय। कालधम्मुणा-कालधर्म को । संजुत्त-प्राप्त हुआ। तते णं-तदनन्तर अर्थात् शतानीक के मृत्युधर्म को प्राप्त हो जाने पर । से-वह। उदयणे-उदयन । कुमार-कुमार । बहुहि-अनेक । राईसर-राजामाण्डलीक अर्थात् किसी प्रान्त या मण्डल (जिला या बारह राज्यों का समूह) की रक्षा या शासन करने वाला, ईश्वर -धन समति आदि के ऐश्वर्य से युक्त । जाव-यावत् । सत्यवाह-सार्थवाह –यात्री व्यापारियों का मुखिया अथवा संघनायक । प्पभितीहि-त्रादि के । सद्धिं-साथ । संपरिवुडे - संपरिवृत - घिरा हुआ । रोयमाणे - रुदन करता हुआ। कंदमाणे - आक्रौंदन करता हुआ । विलवमाणे-विलाप करता हुआ । सयाणीयस्स-शतानीक रराणो-राजा का । महया-महान् इड्ढिसक्कारसमुदएणं-ऋद्धि तथा सत्कार समुदाय के साथ । णीहरणं- निस्सरण-अर्थी निकालने की क्रिया । करेति २-करता है, निस्सरण करके । बहू - अनेक । लोइयाइं- लौकिक । मयकिच्चाई-मृतकसम्बन्धी क्रियाओं को । करेति--करता है। तते णं-तदनन्तर । बहवे - बहुत से । राईसर०-राजा । जाव-यावत् । सत्यवाहा-सार्थवाह, ये सब मिल कर। उदयणंउदयन । कुमार-कुमार को । महया २-बड़े समारोह के साथ । रायाभिसेगेणं-राजयोग्य अभिषेक से । अभिसिंचंति-अभिषिक्त करते हैं अर्थात् उस का राज्याभिषेक करते हैं । तते णं-तदनन्तर । से-वह । उदयणे-उदयन । कुमारे-कुमार । राया-राजा । जाते - बन गया । महया० - हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् प्रतापशाली हो गया । तते जं-तदनन्तर । से-वह । वहस्सतिदत - वृहस्पतिदत्त । दारए-बालक । उदयणस्ल-उदयन । रगणो-राजा का । पुरोहियकम्मे-पुरोहितकर्म । करेमाणे-करता हुआ । सम्वट्ठाणे - सर्वस्थानों-- अर्थात् भोजनस्थान आदि सब स्थानों में । सव्वभूमियासु-सर्वभूमिका--प्रासाद-महल की प्रथम भूमिका - मन्ज़िल से लेकर सप्तम भूमि तक अर्थात् सभी भूमिकाओं में। अंतेउरे य-और अन्त:पुर में । दिएणवियारे यावि-दत्तविचार -अप्रतिबद्ध गमनागमन करने वाला अर्थात् जिस को राजा की ओर से सब स्थानों में यातायात करने की आज्ञा उपलब्ध हो रही हो, ऐसा। जाते यावि होत्था-हो गया था । तते णं-तदनन्तर । से-वह । वहस्सतिदत्त - वृहस्पतिदत्त । पुरोहिते-पुरोहित । उदयणस्स-उदयन । रराणो-राजा के । अन्तेउरं-अन्तःपुर में - रणवास में । वेलासु यवेला-उचित अवसर अर्थात् ठीक समय पर । अवेलासु-अवेला --अनवसर –बेमौके अर्थात् भोजन शयनादि के समय । काले य-काल अर्थात् प्रथम और तृतीय प्रहर आदि में । अकाले य-और अकाल में अर्थात् मध्याह्न आदि समय में । राम्रो य-रात्रि में । वियाले य-और सांयकाल में । पविसमाणे-प्रवेश करता हुआ । अन्नया-अन्यदा । कयाइ -किसी समय । पउमावतीएपद्मावती । देवीए-देवी के । सद्धिं-साथ । संपलग्गे-संप्रलग्न-अनुचित सम्बन्ध करने वाला ! यावि होत्था-भी हो गया । पउमावतीए - पद्मावती । देवीए - देवी के । सद्धिं साथ । उरालाई-उदार-प्रधान मनुष्यसम्बन्धी विषयभोगों का । भुजमाणे- उपभोग करता हुआ । विहरति-समय व्यतीत करने लगा । इमं च णं-और इधर । उदयणे - उदयन । राया- राजा। एहाए-स्नान कर । जाव-यावत् । विभूसिते-सम्पूर्ण आभूषणों से अलंकृत हुआ । जेणेवजहां ।पउमावती-पद्मावती । देवी-देवी थी तेणेव-वहीं पर । उवागच्छइ २-श्राता है, अाकर । वहस्सतिदत्तं-वृहस्पतिदत्त । पुरोहितं-पुरोहित को । पउमावतीए -पद्मावती । देवीर - देवी के । सद्धिं-साथ । उरालाइ०-उदार - प्रधान काम-भोगों का । भुजमाणं- सेवन करते हुए
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