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श्री विपाक सूत्र
[षष्ठ अभ्याय
दिवद्धणे णाम कुमारे अहीण जाव जुवराया । तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं अमच्चे होत्था सामभेददण्ड० । तस्स णं सुबन्धुस्स अमच्चस्स बहुमित्तापुत्ते नामं दारए होत्था अहीण । तस्स णं सिरिदामस्स रएणो चित्त बहुविहं अलंकारियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु अंतेउरे य दिएणवियारे यावि होत्था ।
__ पदार्थ-छट्ठस्स उक्खेवो-छठे अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । जम्बू !-हे जम्बू ! । तेणं-उस । कालेणंकाल में । तेणं समएणं-उस समय में । महुरा-मथुरा । णगरी-नगरी थी। भंडीरे-भंडीर नाम का । उज्जाणे-उद्यान था, उस में । सुदरिसणे-सुदर्शन नाम का । जक्खे-यक्ष था, अर्थात् उस का स्थान था । सिरिदामे-श्रीदाम नाम का । राया-राजा था, उसकी । बंधुसिरी-बंधुश्री । भारिया-भार्या थी । पुत्त-पुत्र । णंदिवद्धणे-नन्दीवर्धन । णाम-नामक । कुमारे-कुमार था, जो कि । अहीण-अन्यून-न्यूनतारहित तथा निर्दोष पंचेन्द्रिय शरीर से युक्त । जाव-यावत् । जुवराया-युवराज (राजा का वह सबसे बड़ा लड़का, जिससे आगे चल कर राज्य मिलने वाला हो) था । तस्स-उस । सिरिदामस्स-श्रीदाम का । सुबन्धू-सुबन्धु । नाम-नाम का । अमच्चेअमात्य-मंत्री । होत्था-था, जो कि । सामभेददंड-साम, भेद दण्ड, और दान नीति में बड़ा कुशल था। तस्स णं-उस । सुबन्धुस्स-सुबन्धु । श्रमच्चस्स-अमात्य का । बहुमित्तापुत्त - बहुभित्रापुत्र । णाम-नाम का । दारए-दारक -- बालक । होत्था-था, जो कि । अहीण. - अन्यूनसम्पूर्ण और निर्दोष पंचेन्द्रिय - युक्त शरीर वाला था । तस्स एं- उस । सिरिदामस्स- श्रीदाम । रगणो-राजा का । चित्त-चित्र । णाम-नाम का । अलंकारिए-अलंकारिक-नाई । होत्थाथा। सिरिदामस्स-- श्रीदाम । रराणो- राजा का । चित्त-चित्र-आश्चर्यजनक । बहुविहंबहुविध । अलंकारियकम्म-केशादि का अलंकारिक कर्म-हजामत । करमाणे-करता हुआ । सव्वट्ठाणेसु-सर्वस्थानों में, तथा । सव्वभूमियासु-सर्वभूमिकाओं में, तथा । अन्तेउरे य-अन्तःपुर में । दिएणवियारे-दचविचार - अप्रतिषिद्ध गमनागमन करने वाला । यावि होत्या-भी था।
मूलार्थ-छठे अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्ववत कर लेनी चाहिये । हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में मथुरा नाम की एक सुप्रसिद्ध नगरी था । वहां भण्डीर नाम का एक उद्यान था। उस में सुदर्शन नामक यक्ष का यक्षायतन-स्थान था । वहां श्रीदाम नामक राजा राज्य किया करता था, उस की बन्धुश्री नाम की राणी थी । उन का सर्वांगसम्पूर्ण और परम सुन्दर युवराज पद से अलंकृत नन्दोवर्धन नाम का पुत्र था ।
श्रीदाम नरेश का साम, भेद, दण्ड और दान नीति में निपुण सुबन्धु नाम का एक मन्त्री था। उस मन्त्री का बहुमित्रापुत्र नाम का एक बालक था जो कि सर्वांगसम्पन्न
और रूपवान् था । तथा उस श्रीदाम नरेश का चित्र नाम का एक अलंकारिक- केशादि को अलंकृत करने वाला -नाई था। वह राजा का अनेकविध आश्चर्यजनक अलंकारिकर्म-क्षौरकर्म करता हुआ राजाज्ञा से सवस्थानों में सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में प्रतिबन्धरहित यातायात किया करता था।
टीका-उपक्रम या प्रस्तावना को उत्क्षेप कहते हैं, और प्रस्तुत प्रकरणानुसारी उस का स्वरूप शा.
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