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३१८]
श्रो विपाक सूत्र
[पश्चम अध्याय
कोसंबीए णगरीए सयाणीए णामं राया होत्था, महया० । मियावती देवी । तस्स णं सयाणियस्स, पुने मियावतीए अत्तए उदयणे णामं कुमारे होत्था, अहीण. जवराया । तस्स णं उदयणस्स कुमारस्स पउमावती णामं देवी होत्था । तस्स णं सयाणियस्स सोमदचे नाम पुरोहिए होत्था, रिउव्वेय० । तस्स णं सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता णामं भारिया होत्था । तस्स णं सोमदत्तस्प पुत्तं वसुदत्ताए अत्तए वहस्सइदचे नाम दारए होत्था, अहीण० ।
पदार्थ-पंचमस्स-पंचम अध्ययन का । उक् वेवो -उत्क्षेप- प्रस्तावना पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिए । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । जम्बू!-हे जम्बू! । तेणं कालेणं - उस काल में, तथा । तेणं समरण-उस समय में । कोलंबो -कौशाम्बो । णाम - नाम की । णगरी-नगरी । होत्था-थी । रिद्ध०–जो कि ऋद्ध-विशाल भवनादि के आधिक्य से युक्त थी, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से रहित तथा समृद्-धन धान्यादि से परिपूर्ण थी । बाहि-नगरी के बाहिर । चन्दोत्तरणे-चन्द्रावतरण नामक । उज्जाणे-उद्यान था। सेयभद्दे-श्वेतभद्र नामक । जक्खे-यक्ष था । तत्थ णं-उस । कोसंबीए-कौशाम्बी णयरीएनगरी में । सयाणीए-शतानीक । णाम-नामक । राया - राजा । होत्था -- था । महया०जो कि महान् हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था । मियावती - मृगावती । देवी-देवीराणी थी । तस्स णं-उस । सयाणियस्स -शतानीक का । पुत्त -पुत्र । मियावतीए -मृगावती का । अत्तए-अात्मज । उद्यणे --उदयन । णाम-नामक । कुमारे - कुमार । होत्था-था, जो कि । अहीण - अन्यून एवं निर्दोष पञ्चेन्द्रिय शरीर वाला तथा । जुवराया-युवराज था । तस्स णं-उस । उदयणस्स-उदयन । कुमारस्स -कुमार की । पउमावती-पद्मावती । णामनाम की । देवी-देवी । होत्था-थी । तस्त णं-उस । सयाणियस्स -शतानोक का । सोमदत्त -सोमदत्त । णाम-नामक । पुरोहिए- पुरोहित । होत्था - था, जो कि । रिउन्वेय:ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञाता था । तस्स णं-उस । सोमदत्तस्स-सोमदत्त। पुरोहियस्स-पुरोहित की । वसुदत्ता-वसुदत्ता । णाम-नाम की । भारिया-भार्या । होत्थाथी। तस्स णं-उस । सोमदत्तस्स-सोमदत्त का । पुत्त - पुत्र । वसुदत्ताय - वसुदत्ता का । अत्तए-आत्मज । वहस्सइदत्ते-वृहस्पतिदत्त । णाम-नामक । दारए -बालक । होत्था-था । जो कि । अहीण-अन्यून एवं निर्दोष पञ्चेन्द्रिय शरीर वाला था ।
मूलार्थ-पंचम अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की भावना पूर्ववत् कर लेनी चाहिये। हे जम्बू ! इस प्रकार निश्चय ही उस काल तथा उस समय कौशाम्बी नाम की ऋद्धभवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से शून्य,
और समृद्धि से परिपूर्ण नगरी थी । उसके बाहिर चन्द्रावतरण नाम का उद्यान था, उसमें श्वेतभद्र नामक यक्ष का स्थान था । उस कौशाम्बी नगरी में शतानोक नामक एक हिमालय आदि पर्वों के समान महान् प्रतापी राजा राज्य किया करता था । उस को मृगावती नाम की देवी-राणी थी। उस शतानीक का पुत्र और मृगावती का आत्मज उदयन नाम का एक कुमार था जो कि सर्वेन्द्रियसम्पन्न अथच युवराज पद से अलंकृत था । उस उदयन कुमार की पद्मावती नाम
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