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३२२]
श्री वपाक सूत्र
[पञ्चम अध्याय
ऐगमेगं वइस्सदारगं एगमेगं सुद्ददारगं गेएहावेति २ तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गेण्हावेति २ जितसत्तुम्स रगणो संतिहोमं करेति, तते णं से महेसरदत्ते पुरोहिते अट्ठमीचउद्दसीसु दुवे २ माहण-खत्तिय-वेस्स-सुद्द-दारगे, चउएहं मासाणं चत्तारि २, छएहं मासाणं अट्ठ २, संवच्छरस्स सोलस २ । जाहे वि य णं जितसत्त राया परवलेणं अभिजुज्झति ताहे ताहे वि य णं से महेसरदत्त पुरोहिए अट्ठसयं माहणदारगाणं, अट्ठसयं खत्तियदारगाणं, अदुसयं वइस्सदारगाणं, अट्ठसयं सुद्ददारगाणं पुरिसेहिं गिराहावेति २ तेहिं जावंतगाणं चेव हिययउंडए गेण्हावेति २ जितसत्तुस्स रगणो संतिहोमं करेति, तते णं से परवलं खिप्पामेव विद्धसेति वा पडिसेहिज्जति वा ।
पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय हो । गोतमा !-हे गौतम ! । तेणं कालेणं-उस काल और उस समय । इहेव-इसी । जंबुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत । भारहे वासे-भारत वर्ष में । सव्वोभहे-सर्वतोभद्र । णाम-नामक । णगरे-नगर । होत्था-था। रिद्ध०'-जो ऋद्ध -भवनादि की बहुलता से युक्त, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से रहित तथा समृद्ध -धन धान्यादि की समृद्धि से परिपूर्ण. था । तत्थ र्ण-उस । सव्वो . भद्दे-सर्वतोभद्र । णगरे-नगर में । जितसत्त -जितशत्रु । णाम-नामक । राया - राजा । होत्या-था । तस्स णं-उस । जितसत्तु स्स-जितशत्रु । रराणो-राजा का । महेसरदत्तमहेश्वरदत्त । णाम-नामक । पुरोहिए-पुरोहित । होत्था-था, जो कि । रिउव्वेद-जजुब्वेय- सामवेय-अथव्वणवेय-कुसले यावि-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में भी कुशल । होत्थाथा । तते णं-तदनन्तर । से-वह । महेसरदत्त -महेश्वरदत्त । पुरोहिते-पुरोहित । जितसत्तु स्स - जितशत्रु । रराणो-राजा के । रज्ज - राज्य, तथा । बल -बल-शक्ति। विवद्धट्ठाएविवद्धन के लिये । कल्लाकल्लिं-प्रतिदिन । एगमेग-एक २ । माहणदारग-ब्राह्मण बालक । एगमेग-एक २ । खत्तियदारग-क्षत्रिय बालक । एगमेग-एक २। वइस्मदारग - वैश्य बालक । एगमेग--एक २ । सुद्ददारग- शूद्र बालक को। गेराहावेति-पकड़वा लेता है । २त्तापकड़वा कर । तेसिं---उन का । जीवंतगाणं चेत्र-जीते हुों का ही । हिययउंडर - हृदयों के मासपिंडों को । गेराहावेति २-ग्रहण करवाता है, ग्रहण करवा के । जितसतु म्स - जितशत्रु । रगणा-राजा के निमित्त । संति होम-शांतिहोम । करोति-करता है । तते णं - तदनन्तर । से वह । महेसरदत्त -महेश्वरदत्त । पुरोहिते - पुरोहित । अट्ठमोव उद्दसी - अष्टमी और चतुर्दशी को । दुवे २-दो दो । माहण-ब्राह्मण । खत्तिय-क्षत्रिय । वेस्ल-वैश्य, तथा । सुददारगे-शूद्र बालकों को । चउगह मासाणं-चार मास में । चत्तारि २-चार २ । छएहं मासाणं-छः मास में । अट्ठ २-आठ २ । संवच्छरस्त-वर्ष में। सोलस २-सोलह २ । जाहे जाहे वि य णंऔर जब २ भी । जितसत्त राया-जितशत्रु राजा । परबलेणं-परबल - शत्रुसेना के साथ । अभिजुज्झति - युद्ध करता था । ताहे ताहे वि य णं-तब तब ही । से-वह । महेसरदत्त-महेश्वरदत्त।
(१) रिद्ध०- यहां के बिन्दु से संसूचित पाठ की सूचना पृष्ठ १३८ पर दी जा चुकी है।
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