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श्री विपाक सूत्र
३२०]
पाठ भी १३८ पृष्ठ पर सूचित कर दिया गया है । तथा अपेक्षित - हीण - पडिपुराण - पंचिदिय - सरीरे से ले कर पर लिखा जा चुका है । पाठक वहीं पर देख सकते हैं ।
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[पम अध्याय
- श्रहीण० जुवराया- यहां बिन्दु से - सुरुवे - यहां तक का पाठ पृष्ठ १२०
- रिउत्र्वेय० - यहां के बिन्दु से - जजुव्वेय - सामवेय – अथव्व गवेय - कुसले - इस पाठ का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । अर्थात् सोमदत्त पुरोहित ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञाता था ।
[ सूत्रकार कौशाम्बी नगरी के बाहिर चन्द्रावतरण उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पधारने आदि का वर्णन करते हुए इस प्रकार कहते हैं
मूल- १ तेणं कालेणं २ समणे भगवं महावीरे समोसरिए । तेणं कालेां २ भगवं गोतमे तत्र जाव रायमग्गं श्रगाढे । तहेव पासति इत्थी, आसे, पुरिसे मज्झे पुरिसं । चिंता । तव पुच्छति । पुव्वभवं भगवं वागरेति ।
पदार्थ - तेणं कालेणं २ – उस काल में तथा उस समय में । समणे - श्रमण । भगवं - भगवान् । महावीरे - महावीर स्वामी । समोसरिए - पधारे । तेणं काले २ - उस काल और उस समय । भगवं - भगवान् । गोतमे - गौतम । तहेव - तथैव – उसी भान्ति । जाव - यावत् । रायमग्गं - राजमार्ग में। श्रगाढे – पधारे । तहेव - तथैव – उसी तरह । हत्थी - हाथियों को । श्रासे - घोड़ों को । पुरिसे - पुरुषों को, तथा उन पुरुषों के । मज्भे– मध्य में । पुरिसं - एक पुरुष को । पासति - देखते हैं । चिन्ता - तद्दशासम्बन्धी चिन्तन करते हैं। तहेव - तथैव-उसी प्रकार । पुच्छति - पूछते हैं । भगवं - भगवान् । पुग्वभवं - पूर्वभव का । वागरेति - वर्णन करते हैं ।
मूलार्थ - उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कौशाम्बी नगरी के बाहिर चन्द्रावतरण नामक उद्यान में पधारे । उस समय भगवान् गौतम स्वामी पूर्ववत् कौशाम्बी नगरी में भिक्षार्थं गये और राजमार्ग में पधारे । वहां हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को तथा उन पुरुषों के मध्य में एक वध्य पुरुष को देखते हैं, उसको देख कर मन में चिन्तन करते हैं और वापिस आकर भगवान् से उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछते हैं । तब भगवान् उसके पूर्वभव का इस प्रकार वर्णन करने लगे ।
टीका - प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के उद्यान में पधारने पर उनके पुण्य दर्शन के लिये नगर की भावुक जनता और शतानीक नरेश आदि का आगमन, तथा वीर प्रभु का उनको धर्मोपदेश देना, एवं गौतम स्वामी का भगवान् से आज्ञा लेकर कौशाम्बी नगरी में भिक्षार्थ पधारना और वहां राजमार्ग में श्रृंगारित हाथियों, सुसज्जित घोड़ों तथा शस्त्रसन्नद्ध सैनिकों और उनके मध्य में अवकोटकबन्धन से बन्धे हुए एक अपराधी पुरुष को देखना तथा उसे देख कर मन में उस की दशा का चिन्तन करना, और भिक्षा लेकर वापिस आने पर भगवान् से उक्त
(१) छाया - तस्मिन् काले २ श्रमणो भगवान् महावीरः गौतमः, तथैव यावद् राजमार्गमवगाढः । तथैव पर्यात हस्तिनः, चिन्ता । तथैव पृच्छति । पूर्वभवं भगवान् व्याकरोति ।
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समवसृतः । तस्मिन् काले २ भगवान् अश्वान् पुरुषान्, मध्ये पुरुषम् ।