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२६६]
श्री विपाक सूत्र
[तीसरा अध्याय
पृष्ठ १७६ तथा १७७ पर किया जा चुका है । तथा-करयल०-यहां की बिन्दु से विवक्षित पाठ पीछे पृष्ठ २४६ पर लिखा जा चुका है । तथा-महत्थं जाव पाहुडं - यहां पठित जाव-यावत् पद से-महग्धं महरिहं रायारिहं-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन पदों की व्याख्या पीछे पृष्ठ २४० पर की जा चुकी है । तथा-महत्थं जाव पडिच्छति- यहां के जाव-यावत् पद से -महग्धं-आदि पदों का ही ग्रहण करना चाहिये ।।
-असणं ४-तथा-सुरं च ५-एवं-आसाएमाणे ४-यहां के अकों से विवक्षित पदों की व्याख्या क्रमशः पृष्ठ ४८ तथा पृष्ठ १४४ एवं पृष्ठ १४५ पर की जा चुकी है ।
महाबल नरेश के द्वारा चोरसेनापति अभग्नसेन का इतना सत्कार क्यों किया गया। इस का उत्तर स्पष्ट है । यह सब कुछ उसे विश्वास में लाकर पकड़ने का ही उपाय -विशेष है । इसी विषय से से सम्बन्ध रखने वाला वर्णन अग्रिमसूत्र में दिया गया है, जो कि इस प्रकार है
मूल--' तते णं से महब्बले राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेति २ एवं वयासी - गच्छह णं तुम्भे देवाणु० ! पुरिमतालस्स णगरस्स दुवाराई पिधेह २ अभग्गसेणं चोरसेणा० जीवग्गाहं गेएहह २ ममं उवणेह । तते णं ते कोड विय० करयल० जाव पडिसुणेति २ पुरिमतालस्स णगरस्स दुवाराई पिहेंति । अभग्गसेणं चोरसे० जीवग्गाहं गेएहति २ महब्बलस्स रगणा उवणेति । तते णं से महब्बले राया अभग्गसेणं चोरसे० एतेणं विहाणेणं वझं आणवेति । एवं खलु गोतमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावती पुरा पुराणाणं जाब विहरति ।
पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से-उस । महब्बले-महाबल । राया-राजा ने । कोड बियपुरिसे-कौटुम्बिक पुरुषों को । सद्दावेति २ ता-बुलाया, बुला कर । एवं-इस प्रकार । वयासी-कहा। देवाणु० !- हे भद्र पुरुषो! । तुब्भे-तुम लोग । गच्छह णं - जागो । पुरिमतालस्सपुरिमताल । णगरस्स- नगर के । दुवाराई-द्वारों को। पिधेह२ - बन्द कर दो, बन्द करके । अभग्गसणंअभग्नसेन । चोरसे०-चोरसेनापति को । जीवग्गाहं-जीते जी । गण्हह २-पकड़ लो, पकड़ कर । ममं-मेरे सामने । उवणेह-उपस्थित करो । तते णं - तदनन्तर । ते-वे । कोडुबिय०-कौटुम्बिक पुरुष । करयल० जाव- दोनों हाथ जोड़ यावत् अर्थात् मस्तक पर दम नखों वाली अंजलि करके राजा के उक्त आदेश को। पडिसुणेति २ त्ता- स्वीकार करते हैं, स्वीकार कर । पुरिमतालस्स - पुरिमताल । णगरस्स-नगर के । दुवाराई - द्वारों को। पिहेंति –बन्द कर देते हैं और | अभग्गसणं-अभग्नसेन । चोरसेणा०-चोरसेनापति को । जीवग्गाहं - जीते जी । गेण्हंति २- पकड़ लेते हैं, पकड़ कर ।
(१) छाया -तत: स महाबलो राजा कौटुम्धिकपुरुषान् शब्दयति २ एवमवादीत् --गछत यूयं देवानुप्रियाः ! पुरिमतालस्य नगरस्य द्वाराणि पिधत्त २ अभग्न पेनं चोरसेनापति जीवग्राहं गृह्णीत २ मह्यमुपनयत । ततस्ते कौटुम्बिक० करतल. यावत् प्रतिशृण्वन्ति २ पुरिमतालस्य नगरस्य द्वाराणि पिदधति । अभग्नसेनं चोरसेनापति जीवग्राहं गृह्णन्ति २ महाबलाय राज्ञे उपनयन्ति । ततः स महाबलो राजा अभग्नसेनं चोरसेनापति एतेन विधानेन वध्यमाज्ञापयति । एवं खलु गौतम ! अभग्नसेनः चोरसेनापतिः पुरा पुराणानां यावत् विहरति ।
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