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३०८] श्री विपाक सूत्र
[चतुर्थ अभ्याय दुप्पडियाणंदे। एयकम्मे ४ सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववज्जिहिति, संसारो तहेव जाव पुढवीए० । से णं ततो अणंतरं उबट्टित्ता वाणारसीए णयरीए मच्छत्ताए उववज्जिहिति । से णं तत्थ मच्छवधिएहिं वधिए तत्थेव वाणारसीए णयरीए सेटिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति । बोहिं०, पव्वज्जा०, सोहम्मे कप्पे०, महाविदेहे०, सिज्झिहिति ५ निक्खेवो ।
॥ चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥ पदार्थ-गोतमा!-हे गौतम ! । सगड़े णं-शकट नामक । दारए-बालक । सत्तावगणं वासाई - ५७ वर्ष की । परमाउ-परम आयु । पालइत्ता-पाल कर--भोग कर । अज्जेवअाज हो । तिभागावसेसे-त्रिभागावशेष अर्थात् जिस में तीसरा भाग शेष रहे ऐसे । दिवसेदिन में । एगं-एक । महं-महान् । अयोमयं-लोहमय । तत्त-तप्त । समजोइभूयं-अग्निके समान देदीप्यमान । इत्थिपडिमं-स्त्री की प्रतिमा से । अवयासाविए - अवयासित -प्रालिङ्गित। समाणे-हुा । कालमासे--कालमास में अर्थात् मृत्यु का समय आजाने पर । कालं किच्चाकाल करके । इमीसे-इस । रयणप्पभाए - रत्नप्रभा नामक । पुढवीए -पृथिवी - नरक में । पर. इयत्ताए - नारकीय रूप से । उववज्जिहिति-उत्पन्न होगा । तते णं - तदनन्तर अर्थात् वहां से। अणंतरं-- अन्तररहित । उव्वट्टित्ता-निकल कर । से- वह, शकरकुमार का जीव । रायगिहे-राजगृह नामक | गरे-नगर में । मातंगकुलोस - मातंगकुल में अर्थात् चांडाल कुल में । जमलसाए - युगलरूप से । पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा, अर्थात् कन्या और बालक दो का जन्म होगा । तते णं-तदनन्तर । तस्स-उस । दारगस्स-बालक के । अम्मापियरो - माता पिता । णिवत्तबारसाहगस्स- जन्म से बारहवें दिन उस का । इमं- यह । एयारुवं - इस प्रकार का । नामधेज्जनाम । करिस्संति-रक्खेंगे । दारए-यह बालक । सगड़ ----शकट । णामेणं-- नाम से होऊ णंहो अर्थात् इस बालक का नाम शकट कुमार रखा जाता है तथा । दारिया- यह कन्या । सुदरिसणा-सुदर्शना नाम से । होऊणं-हो, अर्थात् इस बालिका का नाम सुदर्शना रखा जाता है । तते -तदनन्तर । से वह । सगडे-शकट नामक । दारए-बालक । उम्मुक्कबालभावे-बालभाव को त्याग कर । जोवण -युवावस्था को प्राप्त होता हुआ भोगोपभोग में समर्थ । भविस्सति-होगा । तए णं - तदनन्तर । से-वह । सुदरिसणा वि दारिया - सुदर्शना बालिका भी । उम्मुक्कवालभावा-बाल भाव को त्याग कर । विए गय. -विशिष्ट ज्ञान को प्राप्त तथा बुद्धि श्रादि की परिपक्वता को उपलब्ध हो । जोव्वणगमणुप्पत्ता- यौवन को प्राप्त हुई । रूवेण - रूप से । जोव्वणे ग य -और यौवन से । लावण्णण य-तथा लावण्य-आकृति की सुन्दरता, से । उक्किट्टा-उत्कृष्ट - उत्तम तथा । उक्किट्ठसरीरया-उत्कृष्ट शरीर वाली । भविस्सति-होगी। तए णं-तदनन्तर । से-वह सगड़े-शकट । दारर- बालक । सुदरिसणार-सुदर्शना को । स्वेण य-रूप और । जोव्वणेण य-यौवन तथा । लावगणेण य- लावण्य में । मुच्छिते ४-' मूर्छित, गृद्ध, प्रथित और अध्युपपन्न हुआ । सुदरिसणाए-सुदर्शना । भइणीए-बहिन के । सद्धिं-साथ । उरालाईउदार-प्रधान । माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी । भागभोगाइ-विषय भोगों का । भुजमाणे --उपभोग करता
(१) मूर्छित, गृद्ध आदि पदों की अथर्वावगति के लिये देखो पृष्ठ १७३ ।
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