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२९४]
श्री विपाक सूत्र
[चतुर्थ अध्याय
भार्या की । कुञ्छिसि -कुक्षि में । पुत्तत्तार-पुत्ररूप से । उववन्ने –उत्पन्न हुआ। तते णं-तदनन्तर । सा भद्दा-उस भद्रा । सत्यवाही-सार्थवाही ने । अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय । णवरह-नव । मासाणं-मासों के। बहुपडिपुराणाणं-लगभग पूर्ण हो जाने पर । दारगं-बालक को। पयाया-जन्म दिया। तते णं-तदनन्तर । तं दारगं-उस बालक को । अम्मापियरो - माता पिता ने । जायमेत चेवउत्पन्न होते ही। सगड़स्स-शकट - छकड़े के । हेप्रो-नीचे । ठवेति २-स्थापित कर दिया - रख दिया, रख कर | दोच्चं पि-दूसरी बार, वे। गेराहावेति २-उठा लेते हैं, उठा कर । आणुपब्वेणंअनुक्रम से । सारक्वंति–संरक्षण करने लगे । संगोवंति-संगोपन करने लगे। संवडढेति-संवर्धन करने लगे। जहा- जिस प्रकार । उझियर-उज्झितक कुमार का वर्णन है । जाव-यावत् । जम्हा णं-जिस कारण । अम्हं-हमारे । इमे-इस । जायमेत्तए चेव -जातमात्र ही । दारए -बालक को । सगडस्सशकट के । हेहओ-अधस्तात् - नीचे । ठविते- स्थापित किया गया है। तम्हाणं-इस कारण से । अम्हंहमारा । दारए - बालक । सगडे-शकट । नामेणं - नाम से । होउ-हो, अर्थात् इस बालक का शकटकुमार यह नाम रखा जाता है। णं - वाक्यालंकारार्थक है । सेसं-शेष । जहा-जिस प्रकार । उझियए-उज्झितक कुमार का वर्णन है, उसी प्रकार इस का भी जान लेना चाहिये । सुभद्दे - सुभद्र सार्थवाह । लवणसमुद्दे-लवण समुद्र में । कालगो-काल को प्राप्त हुआ, तथा शकट कुमार की। माया वि-माता भी। कालगता - मृत्यु को प्राप्त हो गई । से वि-वह शकट कमार भी। गिहारो-घर से । निच्छुढे-निकाल दिया गया । तते णं-तदनन्तर । सयाओ- स्वकीय-अपने। गिहारो-घर से। निच्छूढे समाणे-निकाला हुआ। से-वह । सगड़े-शकट कुमार । दारए-बालक । सिंघाडग०शृघाटक-त्रिकोण मागं । तहेव-तर्थव - उसी प्रकार । जाव-यावत् । सुदरिसणार-सुदर्शना । गणियाए-गणिका के। सद्धिं-साथ । संपलग्गे-संप्रलग्न–गाढ सम्बन्ध से युक्त । यावि होत्था-भी हो गया था। तते णं-तदनन्तर । से-वह । सुसेणे-सुषेण । अमचे अमात्य-मंत्री। तं उस । सगडं-शकट कुमार । दारयं-बालक को। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय । सुदरिसणारसुदर्शना । गणियाए-गणिका के। गिहारो-घर से । निच्छुभावेति २-निकलवा देता है,-निकलका कर । दंसणीयं-दर्शनीय-सुन्दर । सुदरिसणं-सुदर्शना । गणियं-गणिका को। अन्भिरिए-भीतर अर्थात् पत्नीरूप से । ठावेति-स्थापित करता है अर्थात् रख लेता है, और । सुदरिसणाए-सुदर्शना। गणियाए-गणिका के। सद्धिं-साथ । उरालाई-उदार- प्रधान । माणुस्सगाई- मनुष्यसम्बन्धी । भोगभोगाई-विषयभोगों का । भुजमाणे - उपभोग करता हुआ, वह । विहरति -विहरण करने लगा।
मूलार्थ-तदनन्तर सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका थी, उस के उत्पन्न होते ही बालक मर जाते थे । इधर छणिक नामक छागलिक -वधिक का जीव चौथी नरक से निकल कर सोधा इसी साहजनी नगरी में सुभद्र सार्थवाह की भद्र। भार्या के गर्भ में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास पूरे हो जाने पर किसी समय सुभद्रा सार्यवाही ने बालक को जन्म दिया । उत्पन्न होते ही माता पिता उस बालक को शकर-छकड़े के नोचे स्थापित करते हैं और फिर उठा लेते हैं । उठा कर उस का यथाविधि संरक्षण, संगोपन और संवर्द्धन करते हैं।
- उज्झितक कुमार की तरह यावन् जातमात्र-उत्पन्न होता ही हमारा यह बालक शकट-छकड़े के नीचे स्थापित किया गया था इस लिये इसका-शकट कमार-ऐला नामकरण किया जाता है अर्थात माता
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