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श्री विपाक सूत्र -
तीसरा अध्याय
। पडिसेहेति - भगा देता
जाव
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और उस दण्डनायक के मान का मन्थन - मर्दन कर । जाव- यावत् है । तते णं तदनन्तर । से- वह । दंडे - दण्डनायक । श्रभग्ग० - अभमसेन । चोरसे० - चोरसेनापति के द्वारा । हय० - हृत | जाव- यावत् । पडिसेहिते - प्रतिषिद्ध । समाणे - हुग्रा अर्थात् भगाया गया । अथामे - तेजहीन । अबले - बलहीन । श्रवीरिए - वीर्यहीन । अपुरिसक्कापरक्कमे - पुरुषार्थ तथा पराक्रम से हीन हुआ । अधारणिज्जमिति कट्टु – शत्रु सेना को पकड़ना कठिन है - ऐसा विचार कर । जेणेव - जहां। पुरिमताले रागरे - पुरिमताल नगर था और । जेणेव - जहां पर । महब्बले राया - महाबल राजा था। तेणेव - वहां पर । उवा० २ - आता है, आकर | करयल० दोनों हाथ जोड़ यावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके । एवं - इस प्रकार । व्यासीकहने लगा । एवं खलु - इस प्रकार निश्चय ही । सामी ! – हे स्वामिन् ! | भग्ग सेणे - अभमसेन । चोरसे ० - चोर सेनापति । विसमदुग्गगहणं - विषम – ऊंचा नीचा, दुर्ग - जिस में कठिनता से प्रवेश किया जा सके ऐसे गहन वृक्षवन ( वह स्थान जहां वृक्षों की प्रचुरता हो ) में । गहितभत्तपाणिए - भक्त पानादि को साथ में लिये हुए । ठिते-स्थित हो रहा है अत: । केइ - किसी । सुबहु वि - बहुत बड़े । सबलेण वा - अश्वबल से । हत्थिबलेण वा - हाथियों के बल से । वा - श्रथवा । जोहबलेण – योद्धाओं - सैनिकों के बल से । वा अथवा । रहबलेण - रथों के बल से । वा – अथवा । चतुरंगेणा वि - १ चतुरंगिणी सेना से भी । से वह । उरंउरेणं - साक्षात् । गेरिहत्ते -- ग्रहण करने - पकड़ने में। नो-नहीं खलु - निश्चय से । सक्का - समर्थ है अर्थात् वह ऐसे विषम और दुर्गम स्थान में बैठा हुआ है कि वहां पर उसे जीते जी किसी प्रकार से पकड़ा नहीं जा सकता । ताहे- तब वह महाबल राजा उसे - अभग्नसेन को । सामेणय - सामनीति से । भेदेण य-भेदनीति से अथवा । उवप्पदाणेण य - उपप्रदान से - दान की नीति से । वीसंभमाणेउं - विश्वास में लाने के लिये । पयत्त यावि होत्था - प्रयत्नशील होगया जे वि य - और जो भी । से उसके – मनसेन के । श्रभिंतरगा - अंतरंग - समीप में रहने वाले मंत्री आदि । सीसगभमा - शिष्यकभ्रम – जिन को वह शिष्य समान मानता था, वे लोग अथवा शीर्षक भ्रम - जिन को वह शरीररक्षक होने के कारण शिर अथवा शिर के कवच के समान मानता था ऐसे गरक्षक लोग तथा उस के जो । मित्तणाइनियगलयण संबन्धिपरिजणा य मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजन थे । ते वि य णं उनको भी । विपुलेणं - विपुल - बहुत से धरणकणगरण - धन, सुवर्ण, रत्न तथा । संतसारसावतेज्जेणं- - उत्तम सारभूत द्रव्य अर्थात् उत्तमोत्तम वस्तुओं तथा रुपये पैसे से । भिदति भेदन करता है- अलग करता है । य- और । अभग्ग सेणस्स - श्रभमसेन । चोरसे० - चोरसेनापति को । अभिक्खणं २ - बार बार । महत्थाई महार्थ - महा प्रयोजन वाले । महग्घाइ - महार्घ - विशेष मूल्यवान् और । महरिहाई - महार्ह किसी बड़े पुरुष को देने योग्य | रायारिहाई - : - राजा के योग्य । पाहुडाहिं- - प्राभृतभेंट। पेसेति - भेजता है । भग्ग सेणं च चोरसे० - और अभमसेन चोरसेनापति को । वीसंभमाणेइ - विश्वास में लाता है ।
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मूलार्थ -- तदनन्तर वह दण्डनायक जहां पर अभग्नसेन चोरसेनापति था, वहां पर आता (१) गज, अश्व, रथ और पदाति-- पैदल, इन चार अंगों विभागों वाली सेना चतुरंगिणी सेना कहलाती है ।
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