________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१५०
श्री विपाक सूत्र
| दूसरा अध्याय
पदार्थ - तते जं- तदनन्तर । सा-उस । उप्पला - उत्पला नामक | कूड़० - कूटग्राहिणी ने । रया कयाती- - अन्य किसी समय | नवराहं मासाणं - नव मास । पडिपुराणाणं - पूरे हो जाने घर । दारगं- बालक को । पयाता - जन्म दिया । तते गं - तत्पश्चात् / जायमेोणं चेव - जन्म लेते ही । तेणं दारपणं - उस बालक ने । महया - महान | सण - शब्द से / या लिते - भयंकर आवाज़ की जो कि । विग्घुट्ठ े - चीत्कारपूर्ण एवं । बिस्सरे - कर्णकटु थी । तते गं - - तदनन्तर । रसियस - आरसित शब्द - चिल्लाहट को । साच्चा हत्यिणा उरे - हस्तिनापुर नामक । खगरे- - नगर में । जाब- यावत् । वसभा य - वृषभ । 'भीया ४समंता - चारों ओर । विप्पलाइत्था - भागने लगे । । सम्मापियरो - माता पिता, उस का । श्रयमे
के
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तरस - उस | दारगरस -बालक का । सुन कर तथा । जिसम्म - अवधारण कर बहवे – अनेक । रागरगोरुवा - नागरिक पशु । भयभीत हुए । उव्विगा उद्विग्न हुए । सव्व तते ण -- तदनन्तर । तरस दारगस्स - उस बालक यारूवं - इस प्रकार का । नामधेज्जं नाम । करेति रखने लगे । जम्हा - जिस कारण । श्रहं - हमारे । जायमेत्तण' –- जन्म लेते । चेव ही । इमेण इस । दारपण - बालक ने । महया २
-
-
-
महान । सदे - शब्द | आरसिते - भयानक आवाज़ की जो कि । विग्घुट्ठ े - चीत्कार पूर्ण थी और । विस्सरे कानों को कटु लगने वाली थी । तते गं - तदनन्तर । एयस्स- इस । दारगस्स - बालक के । रसितस - चिल्लाहट के शब्द को । सोब्चा सुन कर तथा । सिम्म - अवधारण कर । हत्थाउरे - हस्तिनापुर । गगरे - नगर में । बहवे - अनेक | गगरनोरूवा य - नागरिक पशु । जावयावत् । भोपा ४ - भयमीत हुए। सञ्प्रो समता - चारों तर्फ । विप्पल इत्था - भागने लगे । तम्हा गं - इस लिये । श्रहं - हमारा । दारए - यह बालक । गोत्तासर - गोत्रास, इस । नामेणंनाम से । होउ - हो । तते णं - तत् पश्चात् । से - वह । गात्ताले गोत्रास नामक । दाए-बालक । उम्मुकबालभात्रे - बालभाव को त्याग कर । जात्र - यावत् । जाते यावि होत्या – युवावस्था को प्राप्त
1
पतच्छाया
माया पिउ-पुताई, यिगो सो पिउभायाई । सम्बन्धी ससुराई, दासाई परिजणो ओ | २ | मित्रं सदैकरूपं हितमुपदिशति प्रियं च वितनोति । तुल्याचारविचारी, स्वजातिवर्गश्च सम्मता ज्ञातिः || १ || माता- पितृ पुत्रादिनिजकः स्वजन: पितृव्यभ्रात्रादिः । सम्बन्धी श्वशुरादिदसादिः परिजनो ज्ञेयः || २ ||
अर्थात् मित्र सदा एक रूप रहता है, उस के मानस में कभी अन्तर नहीं आने पाता, वह हितकारी उपदेश करता है, प्रीति को बढ़ाता है । समान विचार और आचार वालों को ज्ञाति कहते हैं । माता पिता ओर पुत्र आदि निजक कहलाते हैं । पितृव्य - चाचा और भ्राता आदि को स्वजन कहते हैं । श्वशुर आदि को सम्बन्धी कहा जाता है और दास दासी आदि को परिजन कहा जाता है ।
(१) “ – भीया - " यहां दिया गया ४ का अंक " - तत्था, उञ्चिग्गा, संजायमया -" इन तीन पदों का संसूचक है । भीत श्रादि पदों का अर्थ निम्नोक्त है -
"" - भीता - भययुक्ताः भयजनक शब्दश्रवणद्, त्रस्ताः - त्रासमुपगताः “ - कोप्यस्माकं प्रारणापहारको जन्तुः समागत:, इति ज्ञानात् उद्विग्नाः व्याकुताः - कम्पमानहृदयाः संजातमयाः - भयजनितकम्बेन प्रचलितगात्रा :- " अर्थात् हस्तिनापुर नगर के गौ, साण्ड आदि पशु भयोत्पादक शब्द को सुन कर भीत भयभीत हुए और " कोई हमारे प्राण लूटने वाला जीव यहां आगया है - " यह सोच कर त्रस्त हुए । उन का हृदय काम्पने लग पड़ा । हृदय के साथ साथ शरीर भी काम्पने लग गया ।
For Private And Personal
-