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तीसरा अध्याय
हिन्दी भाषा टीका सहित।
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चोरों का मुखिया बना हुआ था। पांच सौ चोर उस के शासन में रहते थे । शालाटवी का निर्माण ही कुछ ऐसे ढंग से हो रहा था कि जिस के बल से बह सर्व प्रकार से अपने को सुरिक्षत रक्खे हुए था।
चोरपल्ली के सम्बन्ध में सूत्रकार ने जो विशेषण दिये हैं, उन की व्याख्या निम्नोक्त है
"-विसम-गिरि-कन्दर-कोलंब-सन्निविट्ठा-विषमं यद्रेिः कन्दरं-कुहरं तस्य य: कोलम्ब:प्रान्तस्तत्र सन्निविष्टा -सन्निवेशिता या सा तथा, कोलंबो हि लोके अवनतं वृक्षशाखाप्रमुच्यते इहोपचारतः कन्दरप्रान्त: कोलबो व्याख्यातः-" अर्थात् विषम भयानक को कहते हैं । गिरि पर्वत का नाम है। कन्दरा शब्द गुफ़ा का परिचायक है । कोलम्ब शब्द से किनारे का बोध होता है । सन्निवेशित का अर्थ है-संस्थापित । तात्पर्य यह है कि चोरपल्ली की स्थापना भयानक पर्वतीय कन्दराओंगुफ़ाओं के किनारे पर की गई थी । भीषण कन्दराओं के प्रान्त-भाग में चोरपल्ली के निर्माण का उद्देश्य यही हो सकता है कि उस में कोई शत्रु प्रवेश न कर सके और वह खोजने पर भी किसी को उपलब्ध न हो सके और यदि कोई वहां तक जाने का साहस भी करे तो उसे मार्ग में अनेकविध बाधाओं का सामना करना पड़े, जिस से वह स्वयं ही हतोत्साह हो कर वहां से वापिस लौट जाए।
कोलम्ब शब्द का अर्थ है-झुकी हुई वृक्ष की शाखा का अग्रभाग । परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में उपचार (लक्षणा) से कोलम्ब का अर्थ कन्दरा का अग्रभाग अर्थात् किनारा ग्रहण किया गया है।
"-बंसी-कलंक-पागार-परिक्वित्ता-वंशीकलंका-वंशजालमयी वृत्तिः, सैव प्राकारस्तेन परिक्षिप्तावेष्टिता या सा तथा-"अर्थात् उस चोरपल्ली के चारों ओर एक वंशजाल (बांसों के समूह) की वृत्ति-बाड़ बनी हुई थी जो कि वहां चोरपल्ली की रक्षा के लिये एक प्राकार का काम देती थी। तात्पर्य यह है जिस प्रकार किले के चारों ओर प्राकार-कोट (चार दीवारी) निर्मित किया हुआ होता है, जो कि किले को शत्रुओं से सुरक्षित रखता है, इसी भांति चोरपल्ली के चारों ओर भी बांसों के जाल से एक प्राकार बना हुआ था जो कि उसे शत्रुओं से सुरक्षित रखे हुए था।
"-छिराण-सेल-विसम-प्पवाय-फरिहोवगूढा-छिन्नो विभक्तोऽवयवान्तरापेक्षया यः शैलस्तस्य सम्बन्धिनो ये विषमाः प्रपाताः- गस्ति एव परिखा तयोपगूढा-वेष्टिता या सा तथा-"अर्थात् छिन्न का अर्थ है कटा हुआ, या यू कहें-अपने अवयवों-हिस्सों से विभक्त हुआ । शैल पर्वत का नाम है। विषम भीषण या ऊँचे नीचे को कहते हैं। प्रपात शब्द से गढ़े का बोध होता है। खाई के लिये परिखा शब्द प्रयुक्त होता है। तात्पर्य यह है कि पहाड़ों के टूट जाने से वहां जो भयंकर गढे हो जाते हैं, वे ही उस चोरपल्ली के चारों ओर खाई का काम दे रहे थे।
पहले ज़माने में राजा लोग अपने किले आदि के चारों ओर खाई खुदवा दिया करते थे । खाई का उद्देश्य होता था कि जब शत्रु चारों ओर से आकर घेरा डाल दे तो उस समय उस खाई में पानी भर दिया जाए, जिस से शत्रु जल्दी जल्दी किले आदि के अन्दर प्रवेश न कर सके । इसी भान्ति चोरपल्ली के चारों ओर भी विशाल तथा विस्तृत पर्वतीय गर्त बने हुए थे, जो परिखा के रूप में होते हुए उसे (चोरपल्ली को) भावी संकटों से सुरक्षित रख रहे थे।
"-अणेगखंडी-अनेका नश्यतां नराणां मार्गभूताः खण्डयोऽपद्वाराणि यस्यां साऽनेकखण्डी -" अर्थात् उस चोरपल्ली में चोरों के भागने के लिये बहुत से गुप्तद्वार थे । गुप्तद्वार का अभिप्राय चोर-दर्वाज़ों से है । चोरपल्ली में गुप्तद्वारों के निर्माण का अर्थ था कि-यदि चोरपल्ली किसी समय प्रबल शत्रुयों से आक्रान्त होजाए तब शत्रुयों की शक्ति अधिक और अपनी शक्ति कम होने के कारण
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