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तीसरा अध्याय ]
'हिन्दी भाषा टीका सहित ।
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पल्ली – चोरों के निवास का गुप्तस्थान | होत्था - थी, जो | विसमगिरिकन्दर-पर्वत की विषमभयानक कन्दरा गुफा के । कोलंब प्रान्तभाग - किनारे पर । सनिविट्टा - संस्थापित थी । बंसी. कलंक - बांस की जाली की बनी हुई बाड़, तद्रूप । पागार - प्राकार - कोट से । परिक्वित्ता - परिक्षितघिरी हुई थी । छिराण - विभक्त अर्थात् अपने अवयवों से कटे हुए। सेल - शैल - पर्वत के । विसम - विषम – ऊ'चे नीचे । पवाय - प्रपात - गढे, तद्रूप । फरिहोवगूढ़ा - परिखा - खाई से युक्त । श्रभिंतरपाणिया - अन्तर्गत जल से युक्त अर्थात् उसके अन्दर जल विद्यमान था । सुदुल्लभजलपेरंता - उसके बाहिर जल अत्यन्त दुर्लभ था । अणेगखंडी - भागने वाले मनुष्यों के मार्गभूत अनेकों गुप्तद्वारों से युक्त । विदितजण दिणनिगमप्पवेला - ज्ञात मनुष्य ही उस में से निर्गम और प्रवेश कर सकते थे, तथा । सुबहु व अनेकानेक । कूवियस्स - मोषव्यावर्तक – चोरों द्वारा चुराई हुई वस्तु को वापिस लाने के लिए उद्यत रहने वाले । जणस्स यावि - जन - मनुष्यों द्वारा भी । दुप्पहंसा - दुष्प्रध्वस्या अर्थात् उस का नाश न किया जा सके, ऐसी । होत्था - थी । तत्थ णं - वहां अर्थात् उस । सालाड़वीए - शाला. टवी नामक । चोरपल्लीए - चोरपल्ली में । विजय गामं - विजय नामक । चोरसेणवाती - चोरसेनापति – चोरों का नायक । परिवसति – रहता था, जो कि । अहम्मिए - धार्मिक | जाव - यावत् । लाहियपाणी – लोहितपाणि अर्थात् उस के हाथ रक्त से लाल रहते थे । बहुगरणिग्गतजसे - जिस की प्रसिद्धि अनेक नगरों में हो रही थी । सूरे - शूरवीर । दढप्पहारे - दृढ़ता से प्रहार करने वाला । साहसिते - साहसी - साहस से युक्त । सद्दवेही - शब्दभेदी अर्थात् शब्द को लक्ष्य में रख कर बाण चलाने वाला । असिलट्ठिपढममल्ले - तलवार और लाठी का प्रथममल्ल - प्रधानयोद्धा था । से गं - वह विजय नामक चोरसेनापति । तत्थ सालाडवीर - उस शालाटवी नामक | चोरपल्लीप - चोरपल्ली में । पंचराहं चोरसताणं - पांच सौ चोरों का । हेवच्चं - श्राधिपत्यस्वामित्व करता हुआ । जाव - यावत् । विहरति - समय बिता रहा था ।
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मूलार्थ - तृतीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्व की भान्ति ही जान लेनी चाहिए । हे जम्बू ! उस काल और उस समय में पुश्मिताल नामक एक नगर था, जो कि ऋद्ध - भवनादि की अधिकता से युक्त, स्तिमित - स्वचक्र ( आन्तरिक उपद्रव) और परचक्र ( बाह्य उपद्रव ) के भय से राहत और समृद्ध - धन धान्यादि से परिपूर्ण था । उस नगर के ईशान कोण में अमोघदर्शी नाम का एक उद्यान था । उस उद्यान में अमोघदर्शी नामक यक्ष का एक था । पुरिमताल नगर में महाबल नाम का राजा राज्य किया करता था ।
आयतन - स्थान
नगर के ईशान कोण में सीमान्त पर स्थित अटवी में शालाटवी नाम की एक चोर - पल्ली ( चोरों के निवास करने का गुप्त-स्थान ) थी, जो कि पर्वतीय भयानक गुफाओं के प्रान्तभाग- किनारे पर स्थापित थो, बांस की बनी हुई बाड़रूप प्राकार से परिवेष्टित घिरी हुई थी । विभक्त अपने अवययों से कटे हुए पर्वत के विषम (ऊंचे, नीचे) प्रपात - गर्त, तद्रूप परिखा खाई वाली थी । उस के भीतर पानी का पर्याप्त प्रबन्ध था और उसके बाहिर दूर दूर तक पानी नहीं मिलता था। उसके अन्दर अनेकानेक खण्डी - गुप्त द्वार (चोर दरवाजे ) थे, और उस चोरपल्ली में परिचित व्यक्तियों का हो प्रवेश अथच निर्गमन हो सकता था । बहुत से मोषव्यावर्तक - चोरों की खोज लगाने वाले अथवा चोरों द्वारा अपहृत धनादि के वापिस खाने में उद्यत, मनुष्यों के द्वारा भी उस का नाश नहीं किया जा सकता था ।
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