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तीसरा अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित |
[ २३५
तते गं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहिं चोरसतेहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेगावइस्स महया इड्ढी सक् कारसमुदपणं णीहरण करेति २ बहू लोइयाई मयच्चाई करेति २ केवइयकाले अप्पसोए जाते यावि होत्था, तते गं ताई पंच चोरसाई' अन्नया कयाइ अभग्ग सेणं कुमारं सालाड़वोए चोरपल्लीए महया २ इड्ढी ० चोरसेणा वताए अभिसिचंति । तते गं से अभग्ग से कुमारे चोरसेणावती जाते हम्म जान कप्पायं गेरहति ।
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पदार्थ - तते गं - तदनन्तर । से वह । विजय-विजय नामक । चोरसेगावतीचोरसेनापति । अन्नया कयाइ - किसी अन्य समय । कालधम्मुरणा - कालधर्म से । संजुत्ते - संयुक्त हुआ, अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया । तते गं - तदनन्तर । से - वह । अभग्गसेणे कुमारेभमसेन कुमार | पंचहिं चोरसतेहिं - पांच सौ चोरों के । सद्धिं - साथ । संपरिवुड़े - संपरिवृत - घिरा हुआ । रोयमाणे- रुदन करता हुआ । कंदमाणे - आक्रन्दन करता हुआ, तथा 1 विलवाणे विलाप करता हुआ । विजयस्स - विजय । चोरसेणा वइस्स - चोरसेनापति का । महया २ इड्ढोसक्कारसमुदपणं - अत्यधिक ऋद्धि एवं सत्कार के साथ । गोहरणं - निस्सरण | करेति - करता है, अर्थात् अभमसेन बड़े समारोह के साथ अपने पिता के शव को श्मशान भूमि में पहुंचाता है, तदनन्तर । बहूहिं अनेक । लोइयाई - लौकिक । मयकिच्चाई - मृतकसम्बंधी कृत्यों को अर्थात् दाहसंस्कार से ले कर पिता के निमित्त करणोय दान, भोजनादि कर्म । करेति - करता है, तदनन्तर । केवइ - कितने । कालेणं - समय के बाद । अप्पसर जाते यात्रि होत्था - वह अशोक हुआ अर्थात् उस का शोक कुछ न्यूनता को प्राप्त हो गया था । तते ं - तदनन्तर | ताई - उन । पंच चोरसयाई पांच सौ चोरों ने । अन्नया कयाइ किसी अन्य समय । अभग्गसेणं - अभग्नसेन । कुमारं कुमार का । सालाडवीए - शालाटवी नामक | चोरपल्लीए - चोरपल्ली में | महया २ इड्ढी० अत्यधिक ऋद्धि और सत्कार के साथ । चोरसेणावतार अभिसिचंति - चोरसेनापतित्व से उस का अभिषेक करते हैं, अर्थात् अभग्नसेन को चोरसेनापति के पद पर नियुक्त करते हैं । तते गं -- तदनन्तर अर्थात् तब से । से भग्गसेणे - वह भग्नसेन । सोऽभग्नसेनः कुमारः पंचभिश्चोरशतैः सार्द्ध संपरिवृतो रुदन् क्रन्दन् विलपन् त्रिजयस्य चोरसेनापतेर्महता २ ऋद्धिसत्कारसमुदयेन नीहरणं करोति कृत्वा बहूनि लौकिकानि मृतकृत्यानि करोति कृत्वा कीय कालेन अल्पशोको जातश्चाप्यभवत् । ततस्तानि पंचचोरशतानि अन्यदा कदाचित् श्रभग्नसेनं कुमारं शालाटव्यां चोरपल्ल्यां महता २ ऋद्धिसत्कारसमुदयेन चोरसेनापतितयाभिषिञ्चन्ति । ततः सोऽभग्नसेनः कुमारः चोरसेनापतितोऽधार्मिको यावत् कल्पायं गृह्णाति ।
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(१) " अहम्मिर जाव कप्पायं " यहां पठित जाव- यावत् पद से " - अधम्मिट्ठे, अधम्मक वाई, अधम्मागुर, अधम्मलाई से लेकर - तज्जेमाणे २ तालेमाणे २ नित्याणे निद्धणे निककणे - इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का भावार्थ पृष्ठ १९३ से ले कर १९९ तक दिया गया है। अन्तर केवल इतना है कि वहां विजय चोरसेनापति का नाम है, जब कि प्रस्तुत प्रकरण में अभमसेन का | अतः इस पाठ में अभमसेन के नाम की भावना कर लेनी चाहिए
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