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२३८)
श्रो विपाक सूत्र
[ तीसरा अध्याय
सेणावतो पुरिमतालस्स ण गरस्स उत्तरिल्लं जण वयं वहहिं गामघातेहिं । जाव निद्धणे करेमाणे विहरांत, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले णगरे महब्बलस्स रगणो एतमट्ट विनवित्तते, तते णं ते जाणवयपुरिसा एतम अन्नमन्न पडिसुणेति २ महत्थं महग्धं महरिहं रायरिह पाहुडं गेएहति २ ता जेणेव पुरिमताले णगरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागते २ महब्बलम्स रएणो तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति २ करयल०३ अंजलि कट्ट महब्बलं रायं एवं वयासी ।
पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । ते-वे । जाणवया-जनपद-देश में रहने वाले । परिसा-पुरुष । अभग्गसणेण-अभमसेन । चोरसेणावतिणा-चोरसेनापति के द्वारा । बहुग्गामघायावणाहिं-बहुत से ग्रामों के घात - विनाश से । ताविथा-संतप्त -दुःखी । समाणा-हुए । अन्नमन्नं-एक दूसरे को । सदावेति २-बुलाते हैं, बुलाकर । एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । देवाणु• ! - प्रिय बन्धुश्रो ! । अभग्गसणे-अभग्नसेन । चोरसेणावती- चोरसेनापति । पुरिमतालस्स-पुरिमताल । णगरस्स - नगर के । उत्तरिल्लंउत्तर-दिशा के । जणवयं - देश को । बहूहिं - अनेक । गानघातेहिं - ग्रामों के विनाश से । जाव-यावत् । निधणे-निर्धन -धनरहित । करमाणे-करता हुआ । विहरति-विहरण कर रहा है। देवाणुपिया !-हे भद्र पुरुषो । तं-इस लिए । खलु-निश्चय ही । सेयं-हम को योग्य है अथवा हमारे लिये यह श्रेयस्कर है - कल्याणकारी है कि हम । पुरिमताले- पुरिमताल । णगरे–नगर में । महब्बजस्स-महाबल नामक । रराणो-राजा को। एतमट्ट-यह बात या इस विचार को । विन्नवित्तते-विदित करें अर्थात् अवगत करें । तते णं-तदनन्तर । ते -वे । जाणवयप रिसाजानपदपुरुष अर्थात् उस देश के रहने वाले लोग । एतम₹- यह बात या इस अन्नमन्नं - परस्पर - आपस में । पडिसुणेति २- स्वीकार करते हैं, स्वीकार कर के । महत्थं-महा प्रयोजन का सूचन करने वाला । महग्धं-महाघ-बहु मूल्य वाला । महरिहं - महाह - महत् पुरुषों के योग्य, तथा । रायरिहं - राजाई - राजा के योग्य । पाहुडं-प्राभृत-उपायन-. भेंट । गेराहति २-ग्रहण करते हैं, ग्रहण करके । जेणेव · जहां । पुरिमताले-पुरिमताल । णगरेनगर था और । जेणेव-जहां पर । महब्बले राया-महाबल राजा था। तेणेव-वहीं पर । उवागते २आगये, आकर । मब्बलस्स - महाबल । रराणो-राजा को । तं - उस महत्थं--महान् प्रयोजन वाले। जाव- यावत् । पाहुडं--प्राभृत -भेंट । उवणेति २- अर्पण करते हैं. अर्पण कर के । करयल०
(१) " गामघातेहिं जाव निद्धणे-" यहां पठित जाव-यावत्-पद से-नगरघाते. हि य गोग्गहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकोहि य खत्तखणणेहि य श्रोत्रीलेमाणे २ विहम्मेमाणे २ तज्जमाणे २ तालेमाणे २ नित्थाणे-' इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन पदों का शब्दार्थ १९९ पृष्ठ पर लिख दिया गया है ।।
(२) “-महत्थं जाव पाहुडं-" यहां पाठत जाव-यावत् पद से "-महग्धं महरिहं रायरिहं-इन पदों का ग्रहण समझना चाहिये ।
(३) "-करयल० अंजलि --" यहां के बिन्दु से " - करयलपरिग्गहियं दसणहं मत्थए-" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन का अर्थ पदार्थ में दिया जारहा है ।
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