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निर्णय नामक अडवाणिज के रूप से वेतन ग्रहण करने वाले अनेकों पुरिमताल नगर के चारों ओर अनेक
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श्री विपाक सूत्र -
[ तीसरा अध्याय
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। जलयर
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दे देते हैं । तते णं तदनन्तर । तस्स – उस । निरणयस्स – निर्णय नामक । श्रंडवाणियगस्स -- वाणिज के । बहवे - अनेक । दिरणभइ० - जिन्हें वेतन रूप से रुपया तथा भोजन दिया जाता है ऐसे नौकर । पुरिसा - पुरुष । बहवे – अनेक । काइचंड य - काकी के अंडों को । जाव - कुक्कुडिचंड-मुर्गों के अंडों को । असि च - तथा और । बहूणं - बहुत से जलचर । थलयर - स्थलचर । खहयरमाईणं - खेचर आदि जन्तुत्रों के । अंडर-डों को । तवसु य - तवों पर । कवल्लीसु य - कवल्ली - गुड आदि पकाने का पात्र विशेष ( कडाहा ) में । कंदूसुय – कन्दु – एक प्रकार का बर्तन - जिस म मांड आदि पकाया जाता हो अर्थात् हांडे में, अथवा चने आदि भूनने की कडाही में अथवा लोहे के पात्रविशेष में भज्जण रस य - भर्जनक - भूनने का पात्रविशेष । इंगालेषु य अंगारों पर । तलेति – तलते थे । भज्जैति भूनते थे । सोल्लिंति - शूल से पकाते थे । यमग्गे - राजमार्ग के अंत रावणंसि अन्तर-मध्यवर्ती, आपणदुकान पर, अथवा राजमार्ग की दुकानों के भीतर । अंडयपणिरण - अण्डों के व्यापार से । वित्तिं कप्पेमाणा - आजीविका करते हुए । विहरति समय व्यतीत करते थे । अपणा वियणं - और स्वयं भी । से - वह । निरणए - निर्णय नामक | अंडवारियर- अण्डों का व्यापारी । तेहिउन । बहूहिं – अनेक । काहअंडरहि य - काकी के अण्डों । जाव - यावत् । कुक्कुडिअंडरहि यमुग़ के अण्डों, जो कि । सोल्लेहिं – शूल से पकाये हुए । तलिएहिं तले हुए। भज्जिएहिं भूने हुए हैं - के साथ । सुरं च ५ - पंचविध सुरा आदि मद्य वशेषों का । श्रसारमाणे४ - श्रास्वादनादि करता हुआ । विहरति - समय बिता रहा था । तते णं - तदनन्तर । से - वह । निरणपनिर्णय नामक । अंडवाणियए - अण्डवाणिज । एयकम्मे ४ - इन्हीं पाप कर्मों में तत्पर हुआ, इन्हीं पापपूर्ण कर्मों में प्रधान, इन्हीं कर्मों के विज्ञान वाला और यही पाप कर्म उस का आचरण बना हुआ था ऐसा वह निर्णय | सुबहु - अत्यधिक 1 पाव - पापरूप । कम्मं कर्म को । समज्जिशित्ता - उपार्जित करके । एग वासल हस्सं - एक हजार वर्ष की । परमाउ - परम आयु को । पालsता भोग कर । कालमासे -- कालमास में - मृत्यु का समय जाने पर । कालं किच्चाकाल कर के । तच्चाए - तीसरी । पुढवीर - पृथिवी नरक में । उक्कोस - उत्कृष्ट । सत्त - सात । सागरोवम - सागरोपम की । द्वितीयसु - स्थिति वाले । रइएसु - नारकों में । रइयत्ताए - नारकीय रूप से । उववन्ने – उत्पन्न हुआ ।
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मूलार्थ - इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में पुरिमताल नामक एक विशाल भवनादि से युक्त, स्वचक्र और परचक्र के भय से विमुक्त एवं समृद्धिशाली नगर था । उस पुरिमताल नगर में उदित नाम का राजा राज्य किया करता था, जो कि महा हिमवान् - हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था । उस पुरिमताल नगर में निर्णय नाम का एक अडवाणिज - अंडों का व्यापारी निवास किया करता था, जो कि आव्य - धनी, अपारभूत - पराभव को प्राप्त न होने वाला, धर्मो या दुष्प्रत्यानन्द - परम असन्तोषी था ।
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अनेक दत्तभृतिभक्तवेतन अर्थात् रुपया, पैसा और भोजन के पुरुष प्रतिदिन कुहाज तथा बांस की पिटारियों को लेकर काकी ( कौए की मादा) के अ'डों को, घूकी (उल्लू की मादा)
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