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तीसरा अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका महित।
[२१३
५ आसाएमाणे' ४ विहरति । तते णं से निएणए अंडवाणियए २एयकम्मे ४ सुबहुं पावं कम्मं समज्जिणित्ता ऐगं वाससहस्सं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोससत्तसागरोवर्माद्वतीएसु णेरइएसु णेरइयत्ताए उववन्ने ।
पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । गोतमा !-हे गौतम ! । तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं समएणं-उस समय में । इहेव-इसी । जम्बुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत । भारहे वासे-भारत वर्ष में । परिमताले-पुरिमताल । नाम-नामक । नगरेनगर । होत्था-था, जो कि । रिद्ध०- ऋद्ध-भवनादि के आधिक्य से पूर्ण, स्तिमित - स्वचक्र और परचक्र के भय से रहित तथा समृद्ध-उत्तरोत्तर बढते हुए धन धान्यादि से परिपूर्ण था। तत्थ णं-उस । पुरिमताले-पुरिमताल नगर में । उदिए-उदित । नाम-नामक । राया-राजा । होत्था-था । महया०-जो कि महा हिमवान् - हिमालय आदि पर्वतों के सदृश महान् था । तत्थ णं पुरिमताले-उस पुरिमताल नगर में । निराणए-निर्णय । नाम- नामक । अंडयवाणियए-अंडवाणिज-अंडों का व्यापारी । होत्था-था जो कि । अड्ढे - धनी । जाव - यावत् । अपरिभूते-अतिरस्कृत अर्थात् बड़ा प्रतिष्ठित था एवं । अहम्मिए-अधार्मिक । जाव - यावत् । दुप्पडियाणंदे-दुष्प्रत्यानन्द - जो किसी तरह सन्तुष्ट न किया जा सके, ऐसा था । तस्स-उस । णिण्णयस्स -निर्णय नामक । अंडयवाणियगस्स - अण्डवाणिज के । बहवे-अनेक । दिण्णभतिभत्तवेयणा-दत्तभृतिभक्तवेतन-जिन्हें वेतनरूपेण भृति-पैसे आदि तथा । भक्त-धृत धान्याद दिये जाते हों अर्थात् नौकर । परिसा-पुरुष । कल्लाकल्लि- प्रति दिन । कोद्दालियाओ यकुद्दाल-भूमी खोदने वाले शस्त्रविशेषों को तथा । पत्थियापिडए य-पत्थिकापिटक-बांस से निर्मित पात्रविशेषों- पिटारियों को । गेरहन्ति - ग्रहण करते हैं, तथा । पुरिमतालस्ल-पुरिमताल नगरस्स- नगर के । परिपरतेसु- चारों ओर । बहवे--अनेक । काइअंडए य-काकी-कौएकी मादा-के अंडों को तथा । घुइडए य-धूकी -उल्लूको ( उल्लू की मादा) के अंडों को । पारवह-कबूतरी के अंडों को। टिझिभि-टिटिभी-टिटिहरी के अंडों को। बगि-बकी-बगुली के अण्डों को। मयूरी-मयूरी-- मोरनी के अंडों को और । कुस्कुडिअंडर य -कुकड़ी-मुर्गी के अंडों को । अन्नेसिं चेव - तथा और । बहूणं- बहुत से । जयलर - जलचर - जल में चलने वाले । थलयरस्थलचर-पृथिवी पर चलने वाले । खहयरमाणं-खेचर-अाकाश में विचरने वाले जंतत्रों के। अंडा-अण्डों को । गेराहन्ति - ग्रहण करते हैं । गेराहेत्ता-ग्रहण कर के। पत्थिया पिडगा-बांस की पिटारियों को । भरति- भरलेते हैं । २त्ता-भर कर । जेणेव-जहां पर। निएणए -निर्णय नामक । अण्डवाणियए - अण्डवाणिज था । तेणेव-वहां पर । उवा० २त्ताआते हैं, आकर । निराणयस्स-निर्णय नामक । अंडवाणियगस्स- अण्डवाणिज को । उवणेति
१)--श्रासाएमाणे ४-यहां पर दिये गये गये ४ के अंक से " -विसाएमाणे परिभाए. माणे परिभुजेमाणे -" इन पदों का ग्रहण करना चाहिए । इन की व्याख्या पृष्ठ १४५ पर की जा चकी है । परन्तु इतना ध्यान रहे कि वहां स्त्रीलिङ्ग का निर्देश है, जब कि यहां पुल्लिङ्ग है । तथापि अर्थ-विचारणा में कोई अन्तर नहीं है ।
(२)-एयकम्मे ४–यहां के ४ के अंक से "-एयप्पहाणे एयविज्जे-"और"- एयसमायरे"-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए । एतत्कर्मा आदि पदों का शब्दार्थ पृष्ठ १७९ की टिप्पण में दिया जा चुका है।
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