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श्रो विपाक सूत्र
[दूसरा अध्याय
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इन्भ-सेट्ठि-सत्थवाहा लवणसमुद्दे पोयविवत्तियं निव्वुड्डभंडसार कालधम्मुणा संजुलै सुर्णेति ते तहा हत्थनिक्खेवं च बाहिरभंडसारंच गहाय 'एगंतं अवक्कमति । तते णं सा सुभद्दा सत्थवाही विजयमित्त सत्थवाहं लवणसमुद्दे पोत्तविवत्तियं निव्वुड्डमडसार काल: धम्मुणा संजुत्तं सुणेति २ ता महया पतिसोएणं अप्फुरणा समाणी परसुनियत्ता विव चम्पगलता धसत्ति धरणीतलंसि सव्वंगेहिं संनिवडिया। तते णं सा सुभद्दा सत्यवाही मुहुत्तंतरेणं आसत्था समाणी बहूहि मिन० जाव परिखुडा रोयमाणी कंदमाणी विलवमाणी विजय-मित्तस्स सत्थवाहस्स लोइयाई मयकिच्चाई करेति । तते णं सा सुभद्दा सत्थवाही अन्नया कयाती लवणसमद्दोत्तरणं च लच्छिविणासं च पोतविणासं च पतिमरणं च अणुचिंतेमाणी २ कालधम्मुणा संजुत्ता।
पदार्थ-तते णं- तदनन्तर । से- वह । विजयमित्त-विजयमित्र । सत्यवाहे-साथवाह-व्यापारियों का मुखिया । अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय । पोयवहणेणं-पोतवहन-जहाज द्वारा। गणिम च-गिनती से बेची जाने वाली वस्तु, जिस का भाव संख्या पर हो, जे.से-नारियल श्रादि । धरिमं च-जो तराज़ से तोल कर बेची जाये, जैसे-घृत, गुड़ आदि । मेज्जं च-जिस का माप किया आये जैसे-वस्त्र आदि । परिच्छेज्जं च-जिस का क्रय-विक्रय परिच्छेद्य-परीक्षा पर निर्भर हो जैसे रत्न, नीलम आदि । चउविहे - चार प्रकार की । भंडं – भांड-बेचने योग्य वस्तुएं । गहाय-लेकर । लवण समुद-लवण समुद्र में। उवागते-पहुंवा। तते णं-तदनन्तर । तत्थ - उस | लवणसमुद्देलवण समुद्र में। पोतविवतिए-जहाज पर आपत्ति आने से । निव्वुडभंडसारे-जिस की उक्त चारों प्रकार की बेचने योग्य बहुमूल्य वस्तुयें जलमग्न हो गई हैं तथा । अत्ताणे-अत्राण, और । असरणे - अशरण हुअा। से-वह । विजयमित्त-विजयमित्र । कालधम्मुणा-कालधर्म - मृत्यु से । संजुतसंयक्त हश्रा, अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया। तते णं-तदनन्तर । जहा- जिस प्रकार | जे-जिन । बहवे-अनेक । ईसर- ईश्वर । तलवर-तलवर । माडम्बिय-माडम्बिक । काडुबिय- कौटुम्बिक इब्भ-इभ्य-धनी । सेट्ठि-श्रेष्ठी-सेठ । सत्थवाहा-सार्थवाहों ने । लवणसमुहे-लवण-समुद्र में । पोयविवत्तियं-जिस के जहाज पर आपत्ति आ गई है। निव्वुभंडसारे-जिस का सार-भण्ड (महा - मूल्य वाले वस्त्राभूषण आदि) समुद्र में डूब गया है ऐसा। कालयम्भुणा संजु-काल-धर्म से संयुक्त हुए। से-उस : विजयमित्ते-विजयमित्र । सत्यवाहे-सार्थवाह को । सुणेति--सुनते हैं । तहा - उस समय । ते-वे। हत्थनिक्खेवं च - जो पदार्थ अपने हाथ से लिया हुअा हो अर्थात् धरोहर । बाहिरभंडसारं च- तथा बाह्य-धरोहर से अतिरिक्त भाण्डसार-बहुमूल्य वाले वस्त्र आभूषण. श्रादि
(१) एकान्तम्-अलक्षितस्थानम् अपक्रामन्ति वाणिजग्रामतः पलायित्वा प्रयान्तीत्यर्थः, अर्थात् ईश्वर और तलवर आदि लोग धरोहरादि को लेकर वाणिजग्राम से बाहिर ऐसे स्थान पर चले गये जिस का दूसरों को पता न चल सके ।
(२) जिस की कोई रक्षा करने वाला न हो वह अत्राण कहलाता है । (३) जिस का कोई आश्रय दाता न हो उसे अशरण कहते हैं।
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