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श्रो विपाक सूत्र
[दूसरा अध्याय
प्रथम नरक में नारकी - रूप से उत्पन्न होगा । वहां की भवस्थिति को पूरी करके वह इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष के बैताह्य पर्वत की तलहटी - पहाड़ के नीचे की भूमि में वानर कुल में वानर बन्दर के शरीर को धारण करेगा । वहां युवावस्था को प्राप्त होता हुआ तिर्यच - योनि के विषय भोगों में अत्यधिक आसक्ति धारण करेगा । तथा यौवन को प्राप्त हो कर भविष्य में मेरा कोई प्रतिद्वन्द्वी न बन जाय. इस विचार धारा से या यू कहें अग्ने भावी साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिये वह उत्पन्न हुए वानर शिशुओं का अवहनन किया करेगा । तात्पर्य यह है कि -सांसारिक विषय -वासानाओ में फंसा हुआ वह बन्दर प्राणातिगत (हिंसा) आदि पाप कर्मों में व्यस्त रह कर महान् अशुभ कर्म - वर्गणाओं का संग्रह करेगा ।
वहां की भवस्थिति पूरी होने पर वानर - शरीर का परित्याग कर के इन्द्रपुर नामक नगर में गणिका के कुल में पुत्र-रूप से जन्म लेगा अर्थात् किसी वेश्या का पुत्र बनेगा जन्मते ही उस के माता पिता उसे वर्द्धितक अर्थात् नपुसक बना देंगे, और वारहवें दिन बड़े आडम्बर के साथ उस का प्रिय पेन" यह नाम करण करेंगे । प्रियसेन बालक वहां अानन्द पूर्वक बढेगा और उस के माता पिता किसी अच्छे अनुभवी योग्य शिक्षक के पास उस के शिक्षण का प्रबन्ध करेंगे और प्रियसेन वहां पर नपुसक -कम की शिक्षा प्राप्त करेगा । तात्पर्य यह है कि गाना, बजाना और नाचना आदिक जितने भी नपुंसक के काम होते हैं, वे सब के सब उसको सिख लाये जाऐंगे, और प्रियसेन उन्हें दिल लगा कर सीखेगा तथा थोड़े ही समय में वह उन कामों में निपुणता प्राप्त कर लेगा ।
बाल्यभाव को त्याग कर जब वह युवावस्था में पदार्पण करेगा । उस समय शिक्षा और बुद्धि के परिपाक के साथ २ रूप, यौवन तथा शरीर लावण्य के कारण सबको बड़ा सुन्दर लगने लगेगा । तात्पर्य यह है कि वह बड़ा ही मेधावी अथ च परम सुन्दर होगा । वह अपने विद्या-सम्ब. न्धी मन्त्र, तन्त्र और चूणादि के प्रयोगों से इन्द्रपुर में निवास करने वाले धनाढ्य वर्ग को अपने वश में करता हुअा अानन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करने वाला होगा ।
इस प्रकार पूजीपतियों को काबू में करके वह (प्रयसेन सांसारिक विषय-वासनामो से वासित होकर, किसी से किसी प्रकार का भी भय न रखता हुआ यथेच्छरूप से विषय भोगों का उपभोग करेगा । इस भांति सांसारिक सुखों का अनुभव करता हुआ वह १२१ वर्ष की आयु को भोगेगा। आयु के समाप्त होने पर वह रत्नप्रभा नाम के प्रथम नरक में उत्पन्न होगा । वहां से निकल कर वह सरीसृपों- छाती के बल से चलने वाले सर्प आदि अथवा भुजा से चलने वाले नकुल. मूषक आदि प्राणियों की योनियो में जन्म लेगा । इस तरह से प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र के जीव की भान्ति वह उच्चावच योनियों में भ्रमण करता हश्रा अन्ततोगत्वा चम्पा नाम की प्रख्यात नगरी में महिष रूपेण-भैंसे के रूप में उत्पन्न होगा । यहां पर भी उसे शान्ति नहीं मिलेगी । वह गौष्ठिकों के द्वारा, अर्थात् उस नगरी की नवयुवक मण्डली के पुरुषों से मारा ज एगा और मर कर उसो चम्पा
। धनाढ्य सेठ के घर पुत्ररूप से जन्म लेगा। वहां उस का बाल्यकाल बड़ा सुख - पूर्वक व्यतीत होगा और युवावस्था को प्राप्त होते ही वह तपोमय जीवन व्यतीत करने वाले तथारूप स्थविरों की सुसंगति को प्राप्त करेगा ।
..उन के पास से धर्म का श्रवण करके उसे परम दुलन अथव निर्मल सम्यक्त्व की प्राप्ति
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