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दूसरा अध्याय
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[१८३
चलने वाले सर्प आदि अथवा भुजा के बल से चलने वाले नकुल आदि प्राणियों की योनियों में जन्म लेगा। वहां से रस का संसार-भ्रमण जिम प्रकार प्रथम अध्ययन -गत मृगा पुत्र का वर्णन किया गया है उसी प्रकर होगा, यावत् पृथिवी-काया में जन्म लेगा । वहां से निकल वह सीधा इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष की चम्पा नामक नगरी में महिषरूप से उत्पन्न होगा । वहां पर वह किमी अन्य समय गौष्ठिकों-मित्रमंडली के द्वारा जीवनरहित हो अर्थात् उन के द्वारा मारे जाने पर उसा चम्मा नगरो के श्रोष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । वहां पर बाल्यभाव को त्याग कर यौवन अवस्था को प्राप्त होता हुअा वह तथारूप-विशिष्ट संयमी स्थविरों के पास शङ्का, कांक्षा आदि दोषों से रहित बाधि - लाभ को प्राप्त कर अनगार-धर्म को ग्रहण करेगा। वहां से काल मास में काल कर के माधम नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। शेष जिस प्रकार प्रथम अध्ययन मे मृगापुत्र के सम्बन्ध में प्रतिपादन किया गया है यावत् कर्मो का अन्त करेगा. निक्षेप की कल्पना कर लेनी चाहिये । ।
॥द्वितीय अध्याय समाप्त ।। टीका-प्रस्तुत सूत्र में श्री गौतम स्वामी ने पतित - पावन वीर प्रभु से विनय-पूर्वक प्रार्थना की कि भगवन् ! जिस पुरुष के पूर्व -भव का वृत्तान्त अभी २ आप श्री ने सुनाने की कृपा की है, वह पुरुष यहां से काल कर के कहां जायगा ? और कहां उत्पन्न होगा ? यह भी बतलाने की कृपा करें।
इस प्रश्न में गौतम स्वामी ने उज्झितक कुमार के अागामी भवों के विषय में जो जिज्ञासा की है, उस का अभिप्राय जीवात्मा की उच्चावच भवपरम्परा से परिचित होने के साथ साथ जीवात्मा के शुभाशुभ कर्मों का चक्र कितना विकट और विलक्षण होता है, तथा संसार-प्रवाह में पड़े हुए व्यक्ति को जिस समय किसी महापुरुष के सहवास से 'सम्यक्त्वरत्न की प्राप्ति हो जाती है, तब से वह विकास की ओर प्रस्थान करता हुआ अन्त में अपने ध्येय को किस तरह प्राप्त कर लेता है ? इत्यादि बातों की अवगति भी भली भान्ति हो जाती है । इसी उद्देश्य से गौतम स्वामी ने वीर प्रभु से उज्झितक के अागामी भवों को जानने की इच्छा प्रकट की है ।
गौतम स्वामी के सारगर्भित प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फरमाया उस पर से हमारे ऊपर के कथन का भली भान्ति समर्थन हो जाता है । अब आप प्रभ वीर द्वारा दिए गए उत्तर को सुनें । भगवान ने कहा
गौतम ! जिस व्यक्ति के आगामी भव के विषय में तुम ने पूछा है उसकी पूर्ण श्रायु २५ वर्ष की है, दूसरे शब्दों में कहें तो इस उज्झितक कमार ने पूर्व भव में आयुष्कर्म के दलिक इतने एकत्रित किये हैं जिन की आत्म-प्रदेशों से पृथक होने की अवधि २५ वर्ष की है । अतः २५ वर्ष की आयु भोग कर वह उज्झितक कमार आज ही दिन के तीसरे भाग में शूली पर लटका दिया जाएगा । मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर मानव शरीर को छोड़ कर उज्झितक कुमार का जीव रत्नप्रभा नामक
(१) अनादि-कालीन संसार-प्रवाह में तरह २ के दु:खों का अनुभव करते योग्य अात्मा में कभी ऐसी परिणाम --शुद्धि हो जाती है जो उस के लिये अभी अपूर्व ही होती है, उस परिणाम - शुद्धि को अपूर्वकरण कहते हैं । उस से राग द्वेष की वह तीव्रता मिट जाती है, जो तात्त्विक पक्षपात (सत्य में आग्रह) की. बाधक है। ऐसी राग और द्वेष की तीव्रता मिटते ही आत्मा सत्य के लिये जागरूक बन जाता है । यह आध्यात्मिक जागरण ही सम्यक्त्व है। (पण्डित सुखलाल जी)
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