________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
दूसरा अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित |
-
माता पिता । णिव्वत्तवारसाहस्स - बारहवें दिन के व्यतीत होने जाने पर । इमं एयारूवं - यह इस प्रकार का । णामधेज्जं - - नाम । करेहिंति करेंगे । पियसेणे - प्रियसेन णामं नामक । पुंसपपु ंसक । होउ - हो । तते णं तदनन्तर । से पियसेणे - वह प्रियसेन । पुसते – नपुंसक उम्मुकबालभावे - बाल्य अवस्था को त्याग कर । जोव्वणगमगुप्त युवावस्था को प्राप्त हुआ । 'विराणायपरिणयमेत्त - विज्ञान विशेष ज्ञान और बुद्धि आदि में परिपक्वता को प्राप्त कर । रूवेण य-रूप । जोन्वणेण य1 - यौवन से । लावणेण य - लावण्य - आकृति की सुन्दरता से । उकिट्ठे - उत्कृष्टप्रधान । उक्किट्ठसरीरे - उत्कृष्टशरीर-सुन्दर शरीर वाला । भविस्लति होगा । तते गं तदनन्तर । से पियसेणे — वह प्रियसेन । पुस- नपुंसक | इंदपुरे गयरे - इन्द्रपुर नगर में बहवे - अनेक । राईसर ० १०- राजा तथा ईश्वर । जाव - यावत् | पभित्र अन्य मनुष्यों को। बहूहिंअनेक । विज्ञापनगेहि य-विद्या के प्रयोगों से । मंत बुराणेयि - मंत्र द्वारा मन्त्रित चूर्ण भस्म आदि के योग से । हिउड्डाणेहि य- हृदय को शून्य कर देने वाले । णिएहवणेहि य - अदृश्य कर देने वाले । परावहि य- प्रसन्न कर देने वाले । वसोकरणेहि य- वशीकरण करने वाले । श्राभिश्रोगिएहि यपराधीन करने वाले प्रयोगों से । श्रभियोगिता- - वश में करके । उरालाई - उदार प्रधान | माणुस्लयाई - मनुष्यसम्बन्धी । भोगभागाई - काम - भोगों का । भुजमाणे - उपभोग करता हुआ । विहरिस्सति - विहरण करेगा । तते गं - तदनन्तर । से वह । पियसेणे - प्रियसेन । पुंसएनपुंसक । एयकम्मे ४ - इन कर्मा के करने वाला | सुबहु - अत्यन्त | पावं - पाप । कम्मं - कर्म का । समजिणित्ता - उपार्जन करके । उ एक्कत्रीसं वाससयं - १२१ वर्ष की । परमाउं - परमायु को 1 पालयिता- - भोग कर । कालमासे - कालमास में । कालं किच्चा - काल कर के । इमीसे- इस ।
1
पहा रत्नप्रभा नामक | पुढ़वोष - पृथिवी - नरक में । रइयसाते - नारकी रूप से । उववजिहिति - उत्पन्न होगा । ततो वहां से निकल कर । सिरीसिवेसु - सरीसृप - पेट के बल पर सर्पट चलने वाले सर्व आदि अथवा भुजा के बल पर चलते माते नकुल आदि प्राणियों की योनि में जन्म लेगा । संसारो - संसार भ्रमण करेगा । जहा जिस प्रकार । पढमे प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है । तहेब - उसी प्रकार | जाव यावत् । पुढवी०पृथिवीकाया में उत्पन्न होगा । तत्र - वहां से । अांतरं व्यवधान रहित से - वह । उव्वहित्ता – निकल कर । इहेव इसी । जंबुद्दीवे दीवे - जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत । भारहे वासे - भारतवर्ष में । चपाए - चम्पा नाम को । गयरीए - नगरी में । महिसत्तार - महिषरूप में अर्थात् भैंसे के भव में । पच्चायाहिति- - उत्पन्न होगा। से णं - वह । तत्थ - वहां उस भव में । श्रन्नया काइ - किसी अन्य समय । गोडिल्लिएहिं - गौष्ठिकों के द्वारा अर्थात् एक मंडली के समवयस्कों द्वारा । जीविया - जीवन से । वबरोविर समाणे - रहित किया हुआ चंपाए - चम्पा नामक । णयरीए - नगरी में । सेट्ठिकुलसि - श्रेष्ठी के कुल में
। तत्थेव - उसी । | पुतताए- पुत्ररूप
For Private And Personal
[१८१
-
(१) यहां - विज्ञक और परिणतमात्र ये दो शब्द हैं । विज्ञक का अर्थ है - विशेष ज्ञान वाला और बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को प्राप्त परिणतमात्र कहलाता है ।
(२) " - जाव - यावत् -" पद से - तलवर, माडम्बिक. कौटुम्बिक, इभ्य श्रेष्ठी और सार्थवाह, इन पदों का ग्रहण समझना । इन पदों की व्याख्या पृष्ठ१६५ पर की जा चुकी है । (३) कोई इन पदों का अर्थ २१०० वर्ष भी करते हैं ।