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दूसरा अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
तदनन्तर । से-वह । उकितर-उज्झितक । दारर-बाजक । अणोहट्टिए-अनपघटक बलपूर्वक हाथ आदि से पकड़ कर जिंसको कोई रोकने वाला न हो । आणबारप-अनिवारक जिस को वचन द्वारा भी कोई हटाने वाला न हो । सच्छंदमतो - स्वछंदमति - अपनी बुद्धि से ही काम करने वाला अर्थात् किसी दूसरे की न मानने वाला । सइरप्पयारे-निजमत्य नुसार यातायात करने वाला मज्जप्पसंगी मदिरा पीने वाला । चोर-चौर्य-कर्म । जूय - द्य त - ज्या तथा । वेसदारवेश्या और परस्त्री का । पतंगी -प्रसंग करने वाला अर्थात् चोरी करने, जूत्रा खेलने वेश्या - गमन और पर-स्त्रीगमन करने वाला । जाते यावि होत्या - भी हो गया । तते णं-तदनन्तर । सेवह । उझियते - उज्झितक । अन्नया-अन्य । कयाती-किसी समय । कामझयाए- कामध्वजा नामक । गणियार-गणिका के । सद्धि-साथ । संलग्गे- सप्रलग्न-संलग्न । जाते यावि होत्या-हो गया अर्थात् उसका कामध्वजा वेश्या के साथ स्नेहसम्बन्ध स्थापित हो गया, तदनन्तर वह । कामज्झयार-कामध्वजा । गणियार-गणिका–वेश्या के । सद्वि-साथ । विउलाई-महान । उरालाई - उदार - प्रधान । माणुस्सगाई - मनुष्यसम्बन्धी । भोगंभोगाई - मनोज्ञ भीगों, का भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ । विहरति-समय बिताने लगा।
मूलार्थ-तदनन्तर नगर-रक्षक पुरुषों ने सुभद्रा सार्थवाही को मृत्यु का समाचार प्राप्त कर इज्झितक कुमार को घर से निकाल दिया, और उस का वह घर किसी दूसरे को दे दिया । अपने घर से निकाला जाने पर वह उज्झितक कुमार वाणिजग्राम नगर के त्रिपथ, चतुष्पथ यावत् सामान्य मार्गों पर तथा द्यूतगृहों, वेश्यागृहों और पानगृहों में सुख-पूर्वक परिभ्रमण करने लगा। तदनन्तर बेरोकटोक स्वछन्दमति, एवं निरंकुश होता हुआ वह चौर्यकर्म, घतकर्म, वेश्यागमन और परस्त्रीगमन में आसक्त हो गया। तत्पश्चात् किसी समय कामध्वजा वेश्या से स्नेह सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण वह उज्झितक उसी वेश्या के साथ पर्याप्त उदार-प्रधान मनुष्य सम्बन्धी विषय-भोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करने लगा।
. टोका-कर्मगति की विचित्रता को देखिये । जिस उज्झितक कुमार के पालन पोषण के लिये पांच धायनातायें विद्यामान थीं और माता पिता की छत्र छाया में जिसका.. राजकुमारों जैसा पानन -पोषण हो रहा था । आजे वह माता-पिता से विहीन -रहित धनसम्पत्ति से शून्य हो जाने के अतिरिक्त घर से भी निकाल दिया गया है। उसके लिये अब वाणिजग्राम नगर की गलियों, बाजारों तथा इसी प्रकार के स्थानों" में घूमने फिरने और जहां तहां पड़े रहने के सिवा और कोई चारा नहीं । उसके ऊपर अब किसी का अंकुश नहीं. रहा, बह) जिधर जी चाहे जाता है, जहां मनचाहे रहता है दुर्दैव-वशात उसे सथी भी ऐसे ही मिल गये । उन के सहवास से वह सर्वथा स्वेच्छाचारी और स्वच्छन्दमति हो गया । उसका अधिक निवास अब या तो जूएखानों में या शराबखानों में अथवा वेश्या के घरों में होने लगा। सारांश यह है कि निरंकुशता के कारण वह चीरो करने. जूआ खेलने, शराब पीने ओर पर-स्त्रीगमन श्राद के कुव्यसनों में आसक्त हो गया ।
(१) जिस व्यक्ति ने उज्झितक के पिता से रुपया लेना था, अधिकारी लोगों ने उज्झितक को निकाल कर रुपये के बदले उस का घर उस (उत्तमर्ण) को सौंप दिया।
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