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दूसरा अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
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नामे । ततेां से उज्झिए दारए पंचधातोपरिग्गहिते, तं जहा - खीरधातीए १ मज्जण० २ मंडण ० ३ कीलावण० ४ अंकधातीए ५ जहा दढ़पतिएणे जाव निव्वायनिव्वा घाय - गिरिकंदरपल्लीणे व्व चंत्रयपायवे सुहंसुहेणं परिवड्ढति ।
पदार्थ - तते णं - तदनन्तर । विजयमित्तस्स - विजयमित्र नामक । सत्यवाहस्स - सार्थवाह की । सुभद्दा - सुभद्रा नामक | सा वह । भारिया - भार्या । जातनिदुया - जातनिदु काजिसके बच्चे उत्पन्न होते ही मर जाते हों । यावि होत्था - थी । जाया जाया दारगा-3 - उसके उत्पन्न होते ही बालक | विनिहायमावज्जंति - विनाश को प्राप्त हो जाते थे। तते णं - तदनन्तर । से गोत्तासे - वह गोत्रास । दोच्चार - दूसरे । पुढ़वीओ- नरक से । श्रणंतरं - अन्तर रहित उव्वहित्ता – निकल कर । इहेव - इसी । वाणियग्गामे - वाण्जिग्राम नामक । गगरे - नगर में । विजय मित्तस्स - विजयमित्र । सत्यवाहस्स - सार्थवाह की | सुभद्दार भारियार - सुभद्रा भार्या की। कुछ-कुक्षि में । पुत्तत्ताए- पुत्र रूप से । उववन्ते - उत्पन्न हुआ। तते णं - तदनन्तर । सा सुभद्दा - वह सुभद्रा । सत्यवाही - सार्थवाही ने । श्रन्नया क्याइ - किसी अन्य समय में नवराहं मासाणंनवमास के । बहुपडिपुराणं - परिपूर्ण होने पर । दारंग - बालक को । पयाया - जन्म दिया । तते णं - तदनन्तर । सा सुभद्दा - वह सुभद्रा । सत्यवाही - सार्थवाही । जातमेत्तयं चेव-जातमात्र ही उत्पन्न होते ही । तं दागं उस बालक को एगंते - एकान्त अक्कुहडियाए - कूडे कर्कट के ढेर पर । उज्भावेति - - डलवा देती है। दोच्चं पि द्वितीयवार पुनः । गेरहावोत - ग्रहण करा लेती है अर्थात् वहां से उठवा लेती है और । श्रणुपुत्र्वेणं - क्रमशः । सारवमाणो - संरक्षण करती हुई । संगावेमाणीसंगोपन करती हुई । संवद डेति वृद्धि को प्राप्त कराती है । तते णं - तदनन्तर । तस्स उस । दारगस्स – बालक के । अम्मापियरो - माता पिता । डितिपडियं च - स्थिति पतित - कुलमर्यादा के अनुसार पुत्र – जन्मोचित वधाई बांटने आदि की पुत्रजन्म - क्रिया तथा तीसरे दिन | चंदसूरदंसणं च - चन्द्रसूर्य दर्शन अर्थात् तत्सम्बन्धी उत्सव विशेष जागरियं च - (छठे दिन) जागरणमहोत्सव | महया महान । इहिसक कारसमुदपणं ऋद्धि और सत्कार के साथ करेंति करते हैं । तते गं - तदनन्तर । तस्स दारगस्स - उस बालक के । अम्मापितरां - माता पिता । एक्कारसमे ग्यारहवें दिवसे । दिन के । निवसेव्यतात हो जाने पर | बारसाहे पसे बारहवें दिन के खाने पर
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कारण ।
यमेयारूवं - इस प्रकार का । 'गांणं -- गौण - गुण से सम्बन्धित । गुणनिराणं रूप । नामवेज्जं - नाम | करेंति करते हैं । जहा णं - जिल जातमात्र ही जन्मते ही । म्हं - हमारा । इमे - यह । दारए बालक । उक्कुरुडियाए - कूड़ा फेंकने की जगह पर । उज्झिते- गिरा
एगंते - एकान्त । दिया गया था । तम्हा गं-- इसलिए । म्हं - हमारा यह । दारए - बालक । उज्झियर – उज्झितक । नामें - नाम से । होउ हो - प्रसिद्ध हो अर्थात् इस बालक का हम उज्झितक यह नाम रखते हैं । तते
गं - तदनन्तर 1 गुण - निष्पन्न ( गुण का अनुसरण करने वाला) इन होता है कि फिर इन दोनों का एक साथ प्रयोग क्यों
प्रधान भी होता करने के लिए
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गुणनिष्पन्न- गुणानुजायमेत्तर चेव -
(१) गौण (गुण से सम्बन्ध रखने वाला) और दोनों शब्दों में अर्थगत कोई भिन्नता नहीं है। यहां प्रश्न किया गया । इस के उत्तर में आचार्य श्री अभयदेव सूरि का कहना है कि गौरा शब्द का अर्थ है, कोई इस का प्रस्तुत में अप्रधान अर्थ ग्रहण न कर ले इस लिए सूत्रकार ने उसे ही स्पष्ट निष्पन्न इस पृथक पद का उपयोग किया है ।
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