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श्री विपाक सूत्र
[ दूसरा अध्याय
१४० ]
जो कि | धम्म - धर्मी । जाव - यावत् । दुप्पडियाणंदे- बड़ी कठिनता से प्रसन्न होने वाला था । तस्स णं - उस । भीमस्स - भीम नामक । कूडग्गाहस्स - कूटग्राह की । उप्पला - उत्पला । नाम- - नाम की । भारिया - भार्या । होत्या - थी जो कि । श्रहीण - अन्यून पंचेन्द्रिय शरीर वाली थी । तते गं - तदनन्तर । सा- वह । उप्पला -- उत्पला नामक कूटग्गाहिणी कूटग्राह की स्त्री । अरण्या - अन्यदा । कयाती - किलो समय । श्रावरणसत्ता - गर्भवती । जाया यावि होत्या - हो गई थी। तते गं - तदनन्तर । तीसे उस । उप्पलार - उत्पला नामक । कूडग्गाहिणीए - कूटग्राह की स्त्री को । बहुपडिपुराणं - परिपूर्ण - पूरे तिरहं मासाणं - तीन मास के पश्चात् अर्थात् तीन मास पूरे होने पर । मेरूवे - यह इस प्रकार का । दोहले दोहद - मनोरथ जोकि गर्भिणी स्त्रियों को गर्भ के अनुरूप उत्पन्न होता है । पाउब्भूते - उत्पन्न हुआ |
मूलार्थ - उस हस्तिनापुर नगर में महान् अधर्मी यावत् कठिनाई से प्रसन्न होने वाला भीम नाम का एक कूटग्राह [ धोखे से जीवों को फंसाने वाला | रहता था उस की उत्पला नाम की स्त्री थी जो कि न्यून पंचेन्द्रिय शरीर वाला थी । किसी समय वह उत्पला गर्भवती हुई, लगभग तोनमास के पश्चात् उसे इस प्रकार का दोहद- गर्भिणी स्त्री का मनोरथ, उत्पन्न हुआ ।
टीका- - उस हस्तिनापुर नगर में भीम नाम का एक कूटग्राह रहता था जो कि बड़ा अधर्मी था । धोखे से जीवों को फंसाने वाले व्यक्ति को कूटग्राह कहते हैं [ कूटेन ( कपटेन) जीवान् गृराहातीति कूटग्राहः ] तथा धर्म का आचरण करने वाला धार्मिक और धर्माविरुद्ध आचरण करने वाला व्यक्ति अधार्मिक कहलाता है । " धम्मिए, जाव दुष्पडियाणंदे" यहां पठित " जाव" पद से निम्नलिखत पदों का भी ग्रहण
समझ लेना
'अम्मा, अम्मिट्ठ े, अम्मलाई, अधम्मपलोई, अधम्मपलज्जणे, अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे, दुस्सोले, दुव्वए- - " । इन पदों की व्याख्या प्रथम अध्ययन के पृष्ठ ५५ पर को
जा चुकी है। उस भीम नामक कूटग्राह की उत्पला नाम की भार्या थी जोकि रूप सम्पन्न तथा सर्वांगसम्पूर्ण थी। वह किसी समय गर्भवती हो गई, तीन मास पूरे होने पर उस को आगे कहा जाने वाला दोहद
उत्पन्न हुआ ।
तीन मास के अनन्तर गर्भवती स्त्री को उस के गर्भ में रहे हुए जीव के लक्षणानुसार कुछ संकल्प उत्पन्न हुआ करते हैं जो दोहद या दोहला के नाम से व्यवहृत होते हैं। उन पर से गर्भ में आये हुए जीव के सौभाग्य या दौर्भाग्य का अनुमान किया जाता है । जिस प्रकृति का जीव गर्भ में आता है उसी के अनुसार माता को दोहद उत्पन्न हुआ करता है ।
( १ ) " - अहम्मागुए" धर्मान् पापलोकान् अनुगच्छतीत्यधर्मानिगः " - अधम्मिट्ठेअतिशयेनाधर्मो - धर्मरहितोऽधर्मिष्टः । CC - अहम्मकबाई - "अधर्म भाषणशीलः अधार्मिकप्रसिद्धिको वा "हम्म पलोई” श्रधर्मानेव परसम्बन्धिदोषानेव प्रलोकयति प्रेक्षते इत्येवंशीलोऽधर्मप्रलोकी । " - अहम्मपलज्जणे - " अधर्म एव हिंसादौ प्ररज्यते अनुरागवान् भवतीत्यधर्मप्ररजनः ". - श्रहम्मसमुदाचारो - " अधर्मरूपः समुदाचारः समाचारो यस्य स धर्मसमुदाचारः । " - हम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे – ” अधर्मेण पापकर्मणा वृत्ति जीविकां कल्पयमानः - कुर्वाणः तच्छीलः । “ – दुस्सीले - "दुष्टशीलः । " दु० वए" अविद्यमान नियम इति । - दुप्प डियाणंदे - " दुष्प्रत्यानन्दः बहुभिरपि सन्तोष कारणैरनुत्पद्यमान सन्तोष इत्यर्थः । ( वृत्तिकारः) ।
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