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श्री विपाक सूत्र
[दूमरा अध्याय
मूलार्थ -हे गौतम ! उस पुरुष के पूर्व-भव का वृत्तान्त इस प्रकार है-उस काल तथा उस समय में इमी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में हस्तिनापुर नामक एक समृद्धिशाली नगर था । उस नगर में सुनन्द नाम का राजा था जो कि महाहिमवन्त -हिमालय पर्वत के समान पुरुषों में महान था । उस हस्तिनापुर नमक नगर के लगभग मध्य प्रदेश में सैकड़ों स्तम्भों से निर्मित प्रासादीय (मन में प्रसन्नता पैदा करने वाला , दर्शनोय (जिसे बारम्बार देखने पर भी आंखे न थकं), अभिरूप (एक बार देखने पर भी जिसे पुनः देखने की इच्छा बनी रहे)
और प्रतिरूप (जब भी देखा जाय तब हो वहां नवीनता प्रतिभासित हो ) एक महान गोमंडप (गोश ला)था, वहां पर नगर के अनेक सनाथ और अनाथ पशु अर्थात् नागरिक गौएं, नागरिक बैल, नगर की छोटी २ बछडिये अथवा कट्रिएं एवं सांढ सुव पूर्वक रहते थे। उन को वहा घास और पानी आदि पर्याप्त रूप में मिलता, और वे भय तथा उपसगे आदि से रहित हो कर घूमते ।
टीका-श्री गौतम अनगार के पूछने पर वीर प्रभु बोले गौतम ! उस व्यक्ति के पूर्व भव का वृत्तान्त इस प्रकार है
इस अवस पिणी काल का चौथा आरा बीत रहा था जब कि इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष नामक भूप्रदेश में हस्तिनापुर नाम का एक नगर था जो कि पूर्णतया समृद्ध था, अर्थात् उस नगर में बड़े २ गगन -चम्बो विशाल भवन थे, धन धान्यादि से सम्पन्न नागरिक लोग वहा निर्भय हो कर रहते थे, चोरी आदि का तथा अन्य प्रकार के आक्रमण का वहां सन्देह नहीं था तात्पर्य यह है कि वह नगरोचित गुणों से युक्त और पूर्णतया सुरक्षित था । उस नगर में महाराज सुनन्द राज्य किया करते थे।
"-रिद्ध०-"यहां दिये गए बिन्दु से -रिद्धस्थिमियसमद्धि, पमुइयजणजाणवये, आइएण - जणमणुस्से-से लेकर- उत्ताणणयणपेच्छणिज्जे, पासाइए, दरिसणिज्जे, अभिरुवे, पडिरूवे- यहांतक के पाठ का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन पदों में प्रथम के-- परिस्थिमियसमिद्ध-पद की व्याख्या पृष्ठ ५२ पर की जा चुकी है शेष पदों की व्याख्या औपपातिक सूत्र में वर्णित चम्पानगरी के वर्णक प्रकरण में देखी जा सकती है ।
___"-महयाहि०-" यहां की बिन्दु से -महयाहिमवतमहंतमलयम दरमहिंदसारे, अच्चंतविसुद्धदीहरायकुलवंससुप्पसूप णिरंतरं-से लेकर -मारिभयविप्पमुक्क, खेम', सिवं, सुभिक्ख, पर्सतडिम्बडमरं रज्जं पसासेमणे विहरति-यहां तक के पाठ को ग्रहण करने की सूचना सूत्रकार ने दी है। इन पदों की व्याख्या औपपातिक सूत्र के छठे सत्र में देखी जा सकती है। प्रस्तुत प्रकरण में जो सूत्रकार ने
-महयाहिमवंतमहंतमलयम दरमहिंदसारे-इस सांकेतिक पद का आश्रयण किया है, उस की व्याख्या निम्नोक्त है
महाराज सुनन्द महाहिमवान् (हिमालय) पर्वत के समान महान् थे और मलय (पर्वतविशेष) मंदर -मेरुपर्वत महेन्द्र (पर्वत विशेष अथवा इन्द्र) के समान प्रधानता को लिए हुए थे।
उसी हस्तिनापुर के लगभग मध्य प्रदश में एक गोमंडप था, जिस में सैंकड़ों खंभे लगे हुए थे और वह देखने योग्य था ।
(१) ऋद्धं- भवनादिभिवृद्धिमुपगतम्, स्तिमितम्-भयवर्जितम्, समृद्धम् –धनादियुक्तमिति वृत्तिकारः ।
(२) महाहिमवदादयः पर्वतास्तद्वत् सारः प्रधानो यः स तथेति वृत्तिकारः ।
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