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१४२]
श्री विपाक सूत्र -
[दूसरा अध्याय
तहा करिस्मामि जहा णं तब दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ । ताहि इटाहि जाव समासासेति ।
पदार्थ- ताओ वे । अम्मयात्रा-मातायें । धरणाओ-धन्य हैं । जाव-यावत् । सुलद्ध-उन्हों ने ही प्राप्त किया है । जम्मजीवियफले-जन्म और जीवन के फल को । -वाक्यालंकार में है। जाप्रोणं--जो । बहूणं-अनेक । सणाहाण य ५- सनाथ और अनाथ आदि । नगरगोरूवाणं-नागरिक पशुओं । जाव- यावत् । वसभाण य-वृषभों के । ऊहेहि य-ऊध-लेवा-वह थैली जिस में दूध भरा रहता हैं । थणेहि य-स्तन । वसणेहि य-वृषण-अंडकोष । छिप्पाहि यपुच्छ - पूछ । ककुहेहि य- ककुद - स्कन्ध का ऊपरी भाग। वहेहि य - स्कन्ध । कन्नेहि य-कर्ण। अच्छीहि य-नेत्र । नासाहि य- नासिका । जिव्हाहि य-जिव्हा । ओहहि य-श्रोष्ठ । कंबले. हि य-कम्बल-सास्ना- गाय के गले का चमड़ा । सोल्लेहि य-शूल्य-शूलाप्रोत मांस । तलितेहि य-तलित-तला हुआ । भज्जेहि य-भुना हुआ । परिसुक्केहि य-परिशुष्क-स्वत: सूखा हुअा। लार्वाणएहि य - लवण से संस्कृत मांस । सुरं च- सुरा । मधुच-मधु-पुष्पनिष्पन्न सुराविशेष । मेरगं च -मेरक- मद्य विशेष जो कि ताल फल से बनाई जाती है। जातिं च-मद्य विशेष जो कि जाति कुसुम के वर्ण के समान वर्ण वालो होती है । सोधुच-सीधु-मद्य विशेष जो कि गुड़
और धातकी के मेल से निर्माण की जाती है। पसरणं च-प्रसन्ना-मद्यविशेष जो कि द्राक्षा श्रादि से निष्पन्न होती है, इन सब का। आसाएमाणीओ-आस्वाद लेती हुई । विसाएमाणाओ-विशेष
आस्वाद लेती हुई । परिभाएमाणीअो-दूसरों को देती हुई । परिभुजेमाणीओ- परिभोग करती हुई। दोहलं - दोहद - गर्भिणी स्त्री का मनोरथ, को । विणेति - पूर्ण करती हैं। तं जइ णं - सो यदि । अहमवि-मैं भी। बहूणं- अनेक । नगर०-नागरिक । जाव-यावत् । विणेज्जामि-अपने दोहद को पूर्ण करू । ति कठ्ठ - यह विचार कर । तंसि-उस । दोहलंसि - दोहद के । अविणिज्जमाणंसिपर्ण न होने से । सुक्खा -सूखने लगी । भुक्खा - बुभुक्षित के समान हो गई अर्थात् भोजन न करने से बल रहित हो कर भूखे व्यक्ति के समान दीखने लगी । निम्मंसा --मांस रहित अत्यन्त दुर्बल सी हो गई । उलग्गा-रोगिणी। उलुग्गसरीरा-रोगी के समान शिथिल शरीर वाली। नितेया-निस्तेज तेज से रहित । दीणविमणवयणा-दोन तथा चिंतातुर मुख वाली । पंडुल्लइयमुही-जिस का मुख पीला पड़ गया है । ओमंथियनयणवयणकमला - जिस के नेत्र तथा मुख कमल मुझ गया । जहोइयंयथोचित । पुष्क-वत्थगंधमल्लालंकारहारं-पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माल्य-फूलों की गुथी हुई माला, अलं. कार-आभूषण और हार का । अपरिभुजमाणी उपभोग न करने वाली । करयलमलिय व्व कम लमाला- कर -- तल से मर्दित कमल - माला की तरह । ओहय-कर्तव्य और अकर्तव्य के विवेक से रहित । जाव-यावत् । झियाति-चिन्ताग्रस्त हो रही है। इमं च णं- और इधर । भीमे कडग्गाहे..
भीम नामक कटग्राह । जेणेव-जहां पर । उप्पला-उत्पला नाम की। कूटग्गाहिणी-कटग्राहिणी कटग्राह की स्त्री थी । तेणेव वहीं पर । उवा० २-आता है, श्रा कर । श्रोहय० जाव -उसे सूखी हई. उत्साह रहित यावत् किंकतव्यविमूढ एवं चिन्ताग्रस्त । पासति-देखता है। रत्ता देना एवं वयासी-उसे इस प्रकार कहने लगा। देवाणुप्पिए !- हे भद्रे!। तुम-तुम । किराणं-क्यों ।
ओहय० जाव-इस तरह सूखी हुई यावत् चिन्ताग्रस्त हो रही हो । झियाति-अार्तध्यान में मग्न हो रही हो? । ततेणं- तदनन्तर। सा -वह । उप्पला भारिया-उत्पला भार्या - स्त्री । भीम-भीम नामक । कूड० - कटग्राह से । एवं-इस प्रकार । क्यासी-कहने लगी। देवाणुप्पिया! --हे महानुभाव ! । एवं खल. इस प्रकार निश्चय ही । ममं- मेरे को । तिएहं मासाणं-तीन मास के । बहुपडिपुराणाणं-परि
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