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१४४]
श्री विपाक सूत्र
[दूसरा अध्याय
पूर्ति हो जाएगी । इस प्रकार के इष्ट-प्रिय वचनों से उसने उसे आश्वासन दिया ।
टीका-गत सूत्र पाठ में भीम नामक कूटग्राह को अधर्मी, पतित आचरण वाला और उसकी स्त्री उत्पला को सगर्भा - गर्भवती कहा गया है । अब प्रस्तुत सूत्र में उसके दोहद का घणन करते हैं।
___ उत्पला के गर्भ को लग भग तीन मास हो पूरे जाने पर उसे यह दोहद उत्पन्न हुआ कि वे मातायें धन्य हैं तथा उन्हों ने ही अपने जन्म और जीवन को सार्थक बनाया है जो सनाथ या अनाथ अनेकविध पशुओं जैसा कि नागरिक गौओं, बैलों, पड्डिकाओं और सांढों के ऊधस, स्तन, वृषण, पर ककुद, स्कन्ध.. कणं, अक्षि, नासिका, जिव्हा अोष्ठ तथा कम्बल-सास्ना आदि के मांस. जो शूलाप्रोत.
तलित (तलेहए), भृष्ट, परिशुष्क और लावणिक-लवणसंस्कृत हैं - के साथ सुरा, मधु मेरक. जाति. सीधु और प्रसन्ना आदि विविध प्रकार के मद्य विशेषों का आस्वादन आदि करती ह अपने टोडट को पूर्ण करती हैं। यदि मैं भी इसी प्रकार नागरिक पशुत्रों के विविध प्रकार के शूल्य जिलाप्रोत) आदि मांसों के साथ सुरा आदि का सेवन करू तो बहुत अच्छा हो, दूसरे शब्दों में यदि मैं भी पूर्वोक्त आचरण करती हुई उन माताओं को पंक्ति में परिग णत हो जाऊ तो मेरे लिये यह बड़े ही सौभाग्य की बात होगी ।
सगर्भा स्त्री को गर्भ रहने के दूसरे या तीसरे महीने में गर्भगत जीव के भविष्य के अनुसार अच्छी या बुरी जो इच्छा उत्पन्न होती है, उस को अर्थात् गर्भिणो के मनोरथ को दोहद कहते हैं ।
अम्मयानो जाव सुलद्ध" इस में उल्लिखित " जाव-यावत् " पद से “ पुरणाओ णं कायो अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताश्रो अम्मयात्रा, तासिं णं अम्मयाणं सुलद्धे जम्मजीवियफले"
ने मातायें पुण्यशाली हैं, कृतार्थ हैं, तथा शुभलक्षणों वाली हैं एवं उन माताओं ने ही जन्म और जीवन का फल प्राप्त किया है ) इन पाठों का ग्रहण करना ही सूत्रकार को अभीष्ट है ।
सणाहाण य जाव वसभाण - " यहां पठित "-जाव -यावत्-" पद से "-- अणायणुगर-गावीण य णगरवलीबहाणं य -” इत्यादि पदों का ग्रहण अभिमत है । इन पदों की व्याख्या पीछे कर दी गई है।
यस्-गो आदि पशुओं के स्तनों के उपरी भाग को उधस कहते हैं, जहां कि दूध भरा रहता है। पंजाब प्रांत में उसे लेबा कहते हैं । स्तन-जिस उपांग के द्वारा बच्चों को दध पिलाया जाता है, उस उपांग विशेष की स्तन संज्ञा है । वृषण अण्ड-कोष का नाम है। पच्छ या पूछ प्रसिद्ध ही है । ककुद-बैल के कन्धे के कुब्बड को ककुद कहते हैं, तथा बैल के कन्धे का नाम वह है । कम्बल-गाय के गले में लटके हुए चमडे की कम्बल संज्ञा है इसी का दूसरा नाम सास्ना है ।
शूल पर पकाया हुअा मांस शूल्य तथा तेल घृत आदि में तले हुए को तलित, भने हुए को भृष्ट, अपने आप सूखे हुए को परिशुष्क और लवणादि से संस्कृत को लावणिक कहते हैं ।
सुरा-मदिरा, शराब का नाम है । मधु-शहद और पुष्पों से निर्मित मदिरा विशेष का नाम मधु है । मेरक-तालफल से निष्पन्न मदिरा विशेष को मेरक कहते हैं जाति-मालती पुष्य के वर्ण के समान वर्ण वाले मद्यविशेष की संज्ञा है । सीधु-गुड़ और धातकी के पुष्पों (धव के फूलों ) से निष्पन्न हुई मदिरा सीधु के नाम से प्रसिद्ध है। प्रसन्ना-दादा आदि द्रव्यों के संयोग से निष्पन्न की जाने वाली मदिरा प्रसन्ना कहलाती है। सारांश यह है कि -सुरा, मधु, मेरक, जाति, सीधु, और प्रसन्ना
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