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दूसरा अध्याय
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[१४७
जाव' पहरणे मयाओ गिहारो निग्गच्छति २ हस्थिणाउरं मझमज्झणं जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागते २ वहूणं ण गरगारूवाणं जाव वसभाण य अप्पेगइयाणं ऊहे छिंदति जाव अप्पेगइयाणं कंचलए छिदति, अप्पेगइयाणं अण्णमण्णाई अंगोवंगाई वियंगेति २ जेणेत्र सए गिहे तेणेव उवागच्छति २ उप्पलाए कूडग्गाहिणीए उवणे ति । तते णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहूहिं गोमंसेहिं सोल्लेहि जाव सुरं च ५ आसा०४ तं दोहलं विणेति । तते णं सा उप्पला कूडग्गाही संपुगणदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला वोच्छिएणदोहला संपन्नदोहला तं गम्भं सुसुहेणं परिवहति ।
पदार्थ - तते णं - तदनन्तर । से- वह । भीमे कूड़-भीम कूटयाह । अड्ढरत्तकालसमयंसि - अद्धरात्रि के समय । एगे-अकेला । अबीए-जिस के साथ दूसरा कोई नहीं। सरणद्ध०दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए और लोहमय कसलक आदि से युक्त कवच को धारण किये ।
-यावत् । पहरणे- आयुध और प्रहरण ले कर । सपाओ-अपने । गिहारो - घर से । निग्गच्छति २-निकलता है, निकल कर । हथिणारं-हस्तिनापुर नामक नगर के । मज्मंमज्झेणं-मध्य में से होता हुआ । जेणे-जहां । गोमंडवे -गोमंडप-गोशाला, था। तेणेववहां पर । उवागते २-आता है आकर । बहुएं -अनेक । णगरगोरूवाणं-नागरिक पशुओं के । जाब-यावत् । वसभाप य-वृषभों के मध्य में से । अगत्याणं-कई एक के ।। ऊहे-ऊवस को । छिदति-काटता है । जाब-यावत् । अप्पेगयाणं- कइ एक के। केवलर-कम्बल-सास्ना को । छिंदति-काटता है । अप्पेगइयाणं-कई एक के । अण्ण प्राणाई-अन्यान्य । अंगोवंगाईअगोपांगों को । वियंगेति २- काटता है काट कर । जेणेव जहां पर । सर गेहे-अपना घर था । तेणेव-वहीं पर । उवागच्छति २- आता है, अाकर । कूड़ागाहिणीर-कटग्राहिणी। उप्प लारउत्पला को। उवणेति-- दे देता है । तते णं-तदनन्तर । सा उप्पला भारिया-वह उत्पला भार्या । तेहिं-उन । बहुहि-नाना प्रकार के । जाव -यावत् । सोल्तेहि-शू नाप्रोत । गोमं सेहि-गौ के मांसों के साथ । सुरं च ५ -सुरा प्रभृति मद्य विशेगों का । आता. ४-प्रास्वादन आदि करती हुई । तं दोहदं-उस दोहद को । धिणेति - पूर्ण करती है। तो णं-तदनन्तर । संपुगण होहला - सम्पूर्ण दोहद वाली । संमाणियदोहला-सम्मानित दोहद वाली । विणोयदोहला--विनीत दोहद वाली । वोच्छिन्नदाहला -व्युच्छिन्न दोहद वाली। संपन्नदोहला-सम्पन्न दोहद वाली । सा उप्पला कूडग्गाही-- वह उत्पला कूटग्राही । तं गब्भं - उस गर्भ को । सुहंसुहेणं- सुख पूर्वक । परिवहति-धारण करती है । . मूलाथे-तदनन्तर भीम कुटग्राह अद्धरात्रि के समय अकेला ही दृढ बन्धनों से बद्ध और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण कर आयुध और प्रहरण लेकर घर से निकला और हस्तिनापुर नगर के मध्य में से होता हुआ जहां पर गोमण्डर था वहां पर आया आकर अनेक नागरिक पशुओं यावत् वृषभों में से कई एक के ऊवस यावत् कई एक के कम्बल-सास्ना आदि एवं कई एक के अन्यान्य अंगोपांगो को काटता है, काट कर अपने घर आता है, और आकर अपनी उत्सला भार्या को दे देता
(१) "-जाव-यावत्-" पद से-सन्नद्ध -बद्ध-वम्मिय-कबए, उपालियसरासणपाट्टए पिणद्ध -गेविज्जे, विमलवरबद्धचिंधपट्ट, गहियाउहयहरणे, इन पदों का ग्रहण समझना । इन की व्याख्या इसी अध्ययन के पृष्ठ १२८ अादि पर की जा चुकी है ।
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