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दूसरा अध्याय]
हिन्दी भाषा टोका सहित ।
[१३९
उस में नगर के अनेक चतुष्पाद पशु रहते थे, उन को घास और पानी आदि वहां पर्याप्त रूप में मिलता था, वे निर्भय थे उनको वहां किसी प्रकार के भय या उपद्रव की आशंका नहीं थी, इस लिये वे सुखपूर्वक वहां पर घूमते रहते थे । उन में ऐसे पशु भी थे जिन का कोई मालिक नहीं था,
और ऐसे भी थे कि जिन के मालिक विद्यमान थे । यदि उसको एक प्रकार की गोशाला या पशुशाला कहें तो समचित ही है। गोमंडप और उस में निवास करने वाले गाय, बलीवर्द, वृषभ तथा महिष
आदि के वर्णन से मालूम होता है कि वहां के नागरिकों ने गोरक्षा और पशु- सेवा का बहत अच्छा प्रबन्ध कर रक्खा था । दूध देने वाले और बिना दूध के पशुओं के पालन पोषण का यथेष्ट प्रबन्ध करना मानव समाज के अन्य धार्मिक कर्तव्यों में से एक है । इस से वहां की प्रजा की प्रशस्त मनोवृत्ति का भी बखूबी पता चल जाता है ।
"-पासाइए ४'' यहां दिए गए चार के अंक से "- दरिसणिज्जे, अभिस्वे, पडिरूवे"इन तीन पदों का ग्रहण करना है । इन चारों पदों का भाव निम्नोक्त है
"-प्रासादीयः-मनःप्रसन्नताजनकः, दर्शनीयः-यस्य दर्शने चक्षुषोः श्रान्तिनं भवति अभिरूपः-यस्य दर्शनं पुन: पुनरभिलषितं भवति, प्रतिरूपः-नवं नवमिव दृश्यमानं रूपं यस्य-" अर्थात् गोमण्डप देखने वाले के चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला था, उसे देखने वाले की आंखे देख २ कर थकती नहीं थीं, एक बार उस गोमण्डप को देख लेने पर भी देखने वाले की इच्छा निरन्तर देखने की बनी रहती थी, वह गोमण्डप इतना अद्भुत बना हुआ था कि जब भी उसे देखो तब ही उस में देखने वाले को कुछ नवीनता प्रतिभासित होती थी ।
वलीवर्द का अर्थ है-खस्सी (नपुसक) किया हुआ बेल । पड्डिका छोटी गौ या छोटी भैंस को कहते हैं । वृषभ राब्द सांड का बोधक है । जिस का कोई स्वामी न हो वह अनाथ कहलाता है, और स्वामी वाले को सनाथ कहते हैं ।।
प्रस्तुत सूत्र में "गरगोरुवा" इस पद से तो सामान्य रूप से सभी पशुओं का निर्देश किया. है और आगे के "णगरगाविओ' आदि पदों में उन सब का विशेष रूप से निर्देश किया गया है।
अब सूत्रकार आगे का वर्णन करते हैं, जैसे किमूल-'तत्थ णं हथियाउरे नगरे भीमो नामं कूडग्गाहे होत्था २ अधम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे । तस्स णं भीमस्स कूडग्गाहस्स उप्पला नामं भरिया होत्था, अहीण । तते णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णया कयाती आवरणसत्ता जाया यावि होता । तते वं तीसे उप्पलाए कूड़ग्गाहिणीए तिएहं मासाणं बहुडपुराणाणं अयमेयारूवे दाहले पाउब्भते।
पदार्थ-तत्थ णं-उस । हथिणाउरे-हस्तिनापुर नामक । नगरे-नगर में । भीमेभीम । नाम-नामक । कूडग्गाहे-कूटग्राह-धोके से जीवों को फंसाने वाला । होत्था- रहता था।
(१) छाया-तत्र हस्तिनापुरे नगरे भीमो नाम कूटग्राहो बभूव, अधार्मिको यावत् दुष्प्रत्यानन्दः । तस्य भीमस्य कूटग्राहस्य, उत्पला नाम भार्याऽभूत्, अहीनः । ततः सा उत्पला कूटप्राहिणी अन्यदा कदाचित
आपन्नसत्त्वा जाता चाप्यभवत् । ततस्तस्या उत्पलाया: कूटप्राहिण्याः त्रिषु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु अयमेतदरूपः दोहद: प्रादुर्भूतः।
(२) "अहम्मिए” त्ति धर्मेण चरति व्यवहरति वा धार्मिकस्तन्निषेधादधार्मिक इत्यर्थः । (३) "-अहीण-" अहीणपडिपुरणपंचेन्दियसरीरेत्यादि दृश्यमिति वृत्तिकारः।
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