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श्रो विपाक सूत्र
[दूसरा अध्याय
"बद्ध-कर-कडि-युग-न्यस्तम् बद्धो करौ कडियुगे न्यस्तो --निक्षिप्तौ यस्य स तथा तम, कडि इति लोहमयं बन्धन, हथकड़ी, इति भाषाप्रसिद्धम् -', अर्थात् उस वन्य पुरुष के दोनों हाथों में हथकडियां पड़ी हुई हैं !
"-कंठे गुणरसमल्लदामं-"कण्ठे गुणरक्त-माल्य दामानम् , कण्ठे ..... गले गुण इव कण्ठसूत्रमिव रक्तं लोहितं माल्यदाम पुष्पमाला यस्य स तथा तम् ” अर्थात् उस वध्य पुरुष के गले में गण-डोरे के समान लाल पुष्पों की माला पहनाई हुई है । जो "- यह वध्य व्यक्ति है " इस बात की संसूचिका है।
"-चुराणगुडियगत्त-"चूर्णगुण्डितगात्रम् , चूर्णेन गैरिकेन गण्डितं - लिप्तं गात्रं -शरीरं यस्य स तथा तम्-" अर्थात् उस वध्य पुरुष का शरीर गैरिक --गेरु के चूर्ण से संलिप्त हो रहा है, तात्पर्य यह है कि उस के शरीर पर गेरु का रंग अच्छी तरह मसल रखा है । जो कि दर्शक को "-यह वभ्य व्यक्ति है-" इस बात की ओर संकेत करता है।
"- वझपाणपीयं"-वध्य-प्राण -प्रियम्, अथवा बाह्यप्राणप्रियम् वध्या बाह्या वा प्राणा:उच्छवासादयः प्रतीता; प्रिया यस्य स तथा तम्.-" अर्थात् --जिस को वध्य-वधाई ( मृत्युदण्ड के योग्य ) उच्छवास आदि प्राण प्रिय हैं, अथवा - उच्छवास आदि बाह्य प्राण जिस को प्रिय हैं, तात्पर्य यह है कि वह वध्य पुरुष अपनी चेष्टाओं द्वारा "-मेरा जीवन किसी तरह से सुरक्षित रह जाय-" यह अभिलाषा अभिव्यक्त कर रहा है । वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक जीव ही मृत्यु से भयभीत है । बुरी से बुरी अवस्था में भी कोई मरना नहीं चाहता, सभी को जीवन प्रिय है । इसी जीवनप्रियता का प्रदर्शन उस वध्य-व्यक्ति द्वारा अपनी व्यक्त या अव्यक्त चेष्टानों द्वारा किया जा रहा है ।
"-तिलं-तिलं चेव छिज्जमाणं-तिलं -तिलं चैव छिद्यमानम् --" अर्थात् --उस वध्य पुरुष का शरीर तिल तिल करके काटा जा रहा है, जिस प्रकार तिल बहुत छोटा होता है उस के समान उस के शरीरगत मांस को काटा जा रहा है । अधिकारियों की ओर से जो वभ्य *यक्ति के साथ यह दुव्यवहार किया जा रहा है, जहां वह उन की महान निर्दयता एवं दानवता का परिचायक है वहां इस से यह भी भली भांति सूचित हो जाता है कि अधिकारी लोग उस क्थ्य व्यक्ति को अत्यन्तात्यन्त पीडित एवं विडम्बित करना चाह रहे हैं।
"-काकणिमसाई खावियंतं-काकणोमांसानि खाद्यमानम्, काकणीमांसानि तदेहोत्कृत्तहस्वमांसखण्डानि खाद्यमानम्, अर्थात्-उस वध्य पुरुष के शरीर से निकाले हुए छोटे छोटे मांस के टुकड़े उसी को खिलाए जा रहे है । अथवा “-कागणी लघुतराणि मांसानि-मांसखण्डानि काकादिभिः साद्यानि यस्य स तथा तम्-" ऐसी व्याख्या करने पर तो "- उस वध्य पुरुष के बोटे २ मांस के टुकड़े काक आदि पक्षियों के खाद्य-भक्षणयोग्य हो रहे हैं ." ऐसा अथ हो सकेगा।
. इस के अतिरिक्त सूत्रकार ने उसे पापी कहा है जो कि उसके अनुरूप ही है । उस की वर्तमान दशा से उस का पापिष्ट होना स्पष्ट ही दिखाई देता है । तथा उसको सैंकड़ों कंकडों से मारा जा रहा है अर्थात् लोग उस पर पत्थरों की वर्षा कर रहे थे । इस विशेषण से जनता की उसके प्रति घृणा सूचित होती है।
टीकाकार ने "कस्करसरहिं हम्ममाणं" के स्थान में सवारसहि हम्ममाणं-" ऐसा पाठ मान कर उस की निम्न लिखित व्याख्या की है
स्वर्खरा-अश्वोत्वासनाय चर्ममया वस्तुविशेषाः स्फुटितवंशा वा तैहन्यमानं तापमानम्' अर्थात्
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