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श्री विपाक सूत्र -
दूसरा अध्याय
उन पुरुषों के मध्य में भगवान् गौतम ने एक और पुरुष को देखा जिस के गले और हाथों को मोड़ कर हर भाग के साथ दोनों हाथों को रस्सी से बान्धा हुआ था । उस के कान और नाक कटे हुए थे। शरोर को घृत से स्निग्ध किया हुआ था, तथा वह वध्य-पुरुषोचित वस्त्र - युग्म से युक्त था अर्थात् उसे वध करने योग्य पुरुष के लिये जो दो वस्त्र नियत होते हैं पाये हुए थे अथवा जिस के दोनों हाथों में हथकड़ियां पड़ीं हुईं थीं, उसके गले में कष्टसूत्र के समान रक्त पुष्पों की माला थी और उसका शरोर गेरु चूर्ण से पोता गया था । at भय से संत्रस्त तथा प्राण धारण किये रहने का इच्छुक था, उस के शरीर को तिल तिल करके काटा जा रहा था और शरीर के छोटे छोटे मांस - खंड उसे खिलाये जा रहे थे अथवा जिस के मांस के छोटे २ टुकड़े काक आदि पक्षियों के खाने योग्य हो रहे थे, ऐसा वह पापी पुरुष सैकड़ों पत्थरों या चाबुकों से अवहनन किया जा रहा था और अनेकों नर नारियों से घिरा हुआ प्रत्येक चुराहे आदि पर उद्घोषित किया जा रहा था अर्थात् जहां पर चार या इससे भी अधिक रास्ते मिले हुए हों ऐसे स्थानों पर फूटे हुए ढोल से उस के सम्बन्ध में घोषणा - मुनादी की जा रहो थी । जो कि इस प्रकार थी
हे महा
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! उज्झितक बालक का किमो राजा अथवा राजपुत्र ने कोई अपराध नहीं किया किन्तु यह इसके अपने ही कर्मों का अपराध है - दोष है । जो यह इस दुरवस्था को प्राप्त हो रहा है । टीका - भिक्षा के लिये वाणिजग्राम नगर में भ्रमण करते हुए गौतम स्वामी राजमार्ग पर
श्श्रा जाते हैं, वहां पर उन्होंने बहुत से हाथी, घोड़े तथा सैनिकों के दल को देखा । जिस तरह किसी उत्सव विशेष के अवसर पर अथवा युद्ध के समय हस्तियों, घोड़ों और सैनिकों को शृंगारित, सुसज्जित एवं शस्त्र, अस्त्रादि विभूषित किया जाता है उसी प्रकार वे हस्ती, घोड़े और सैनिक हर प्रकार की उपयुक्त वेषभूषा से सुसज्जित थे । उन के मध्य में एक अपराधी पुरुष उपस्थित था, जिसे वन्य भूमी की ओर ले जाया जा रहा था, और नगर के प्रसिद्ध २ स्थानों पर उसके अपराध की सूचना दी जा रही थी । प्रस्तुत सूत्र में हस्तियों घोड़ों और सैनिकों के स्वरूप का वर्णन करने के अतिरिक्त उज्झितक कुमार नाम के वध्य - व्यक्ति की तात्कालिक दशा का भी बड़ा कारुणिक चित्र खँचा गया है ।
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- सन्नद्धबद्धवम्मियगुडिते - सन्नद्धबद्धवर्मिकगुडितान् ' इस पद की टीकाकार निम्नलिखित व्याख्या करते हैं-
“–सन्नद्धाः सन्नह्त्या कृतसन्नाहाः' तथा बद्धं वर्म - त्वक्त्राण - विशेषो येषां ते बद्धवर्माणस्ते एव बद्धवर्मिकाः तथा गुड़ा महांस्तनुत्राणविशेषः सा संजाता येषां ते गुडितास्ततः कर्मधारयोऽतस्तान् " अर्थात् सन्नद्ध - युद्ध के लिये उपस्थित होने जैसी सजावट किये हुए हैं अथवा युद्ध के लिये जो पूर्ण रूपेण तैयार है । बद्धवर्मिक – जिन पर वर्म कवच बांधा गया है उन्हें वृद्धवर्मा कहते हैं | स्वार्थ में क-प्रत्यय होने से उन्हीं को बद्धवर्मिक कहा जाता है । गुडा का अर्थ है - शरीर को सुरक्षित रखने वाला महान भूल । गुडा - भूल से युक्त को गुडित कहते हैं । सन्नद्ध, बद्धवर्मिक, और
<< (1) - सन्नाह" पद के संस्कृत - शदार्थ - कौस्तुभ में तीन अर्थ किये हैं (१) कवच और स्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होने की क्रिया को, अथवा (२) युद्ध करने जाते जैसी सजावट को भी सन्नाह कहते हैं ( ३ ) कवच का नाम भी सन्नाह है ( पृष्ठ ८९० ) ।
ሩ सन्नद्ध – ” शब्द के भी अनेकों अर्थ लिखे हैं - युद्ध करने को लैस, तैयार, किसी भी वस्तु से पूर्णतया सम्पन्न होना आदि आदि !
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