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श्री विपाक सूत्र -
[प्रथम अध्याय
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। श्रगसय सह स्सक्खुत्तो-लाखों बार । उद्दाइसा २ – उत्पन्न हो कर । तत्थेव - वहीं पर । भुज्जो २पुनः पुन: - बार बार । पच्चाया इस्सति - उत्पन्न होगा अर्थात् जन्म मरण करता रहेगा । ततो गं - वहां से । स - वह । उव्वहिता – निकल कर । चउप्पपलु – चतुष्पदों चौपायों में एवं इसी प्रकार । उरपरिसप्पेसु छाती के बल चलने वालों में । भुयपरिसप्पेसु भुजा के बल चलने वालों में तथा । खहयरेषु - आकाश में उड़ने वालों में चउरिदिएसु- चार इन्द्रिय वालों में । तेइंदिपसु - तीन इन्द्रिय वालों में । बेइन्दिसु - दो इन्द्रिय वालों में । वणष्फइ - वनस्पति सम्बन्धी । कड्डुयरुक्खेसु कटु – कड़वे वृक्षों में । कडुयदुद्धिपसु - कटु दुग्ध वाले श्रर्कादि वनस्पतियों में । वाउ० – वायु-काय में । तेउ० -- तेजस्काय में ।
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उ०- अप्काय में । पुढ़वी० - पृथिवी काय में। रोग सयलहक्खुखो० - लाखों बार जन्म मरण करेगा । ततो वहां से । उन्बहित्ता – निकल कर । अांतरं - व्यवधान रहित । से - वह । सुपतिट्ठपुरे - सुप्र. तिष्ठपुर नामक | राग रे - नगर में । गोजसाए - वृषभ के रूप में । पच्चायाहिति उत्पन्न होगा । तत्थ
-- वहां पर । उम्मुक्कबालभावे - त्याग दिया है बालभाव. बाल्य अवस्था को जिसने अर्थात् युवावस्था को प्राप्त होने पर । से - वह । श्रण्णया कयाती- किसी अन्य समय । पढ़मपाउसंसि - प्रथम वर्षां ऋतु में अर्थात् वर्ष के आरम्भ काल में गंगाप गंगा नामक । महानदीप - गहानदी के । खली - मट्टियं - किनारे पर स्थित मृत्तिका -मट्टी का । खणमणेि - स्वनन करता हुआ, – उखाड़ता हुआ। तड़ीएकिनारे के गिर जाने पर । पेल्लित्ते समाणे – पीड़ित होता हुआ । कालगते - मृत्यु को प्राप्त हो गया : मृत्यु प्राप्त करने के अनन्तर । तत्थेव - उसी । सुपट्ट पुरे - सुप्रतिष्ठ पुर नामक । गगरे - नगर में । सिट्ठिकुलं सि-श्रेष्ठि के कुल में | पुतताए – पुत्ररूप से । पच्चायाइस्सति - उत्पन्न होगा । तत्थ गं - बहां पर । उम्मुक्क० – बाल भाव का परित्याग कर । जाव यावत् । जोव्वणमप्पत्त े - युवावस्था को प्राप्त हुआ । से - वह । तहारूवाणं - तथारूप - साधु जनोचित गुणों को धारण करने वाले । थेराणंस्थविर वृद्ध जैन साधुत्रों के । अतिए - पास । धम्मं धर्म को । सोच्चा सुन कर | निसम्म - मननकर | मुंडे भवित्ता-मुंडित हो कर । श्रगाराश्रो- अगर से। अणगारिगं - अनगार धर्म को । पव्वइस्सति ग्रहण करेगा । तत्थ - वहां पर । से गं- वह । अणगारे - अनगार साधु । इरियासमिते
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समिति से युक्त | जाव-यावत् । बंभयारी - ब्रह्मचारी । भविस्सति - होगा। से - वह । तत्थ - उस अनगार धर्म में : बहूई वासाई -बहुत वर्षों तक । साम्राण-परियागं - यथाविधि साधुवृत्ति का 1 पाउखित्ता- पालन करके लोइयपडिक्कते - आलोचना तथा प्रतिक्रमण कर । समाहिपते-समाधि को प्राप्त होता हुआ । कालमासे - काल मास में । कालं किच्चा - काल करके । सोहम्मे कप्पे - सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में । देवताए - देवरूप से । उववज्जिहिति - उत्पन्न होगा ततो - तत् पश्चात् । से - वह । अांतरं -- अन्तर रहित । चयं -- शरीर को । चइता - छोड़ कर — देवलोक से च्यवकर | मह विदेहे वासे - महाविदेह क्षेत्र में । जाई जो । श्रड्ढाई - श्राढ्य सम्पन्न । कुलाई - कुल । भवंति - होते हैं, उन में उत्पन्न होगा । जहा - जैसे । दढ़पतिराणे - दृढ़प्रतिज्ञ था । सा चेव - वही । वत्तव्वया - वक्तव्यता - कथन । कलाउ कलायें सीखेगा । जाव- यावत् । सिज्झिाहति - सिद्ध पद को प्राप्त करेगा अर्थात् मुक्त हो जायगा । एवं खलु जंबू ! - हे जम्बू ! इस प्रकार निश्चय ही जाव यावत् । सम्पत्तेणं - मोक्ष सम्प्राप्त | समणेणं - श्रमण | भगवया- भगवान्। महावोरेणं - महावीर ने । दुहविदागाणं - दुःख विपाक के । पढ़मस्स - प्रथम । अज्झयणस्स - अ ययन का । श्रयमट्ठ े - यह पूर्वोक्त अर्थ । पण्णत्ते प्रतिपादन किया है । त्ति - इस प्रकार । बेमि मैं कहता हूँ । पढमं - प्रथम । अज्झयणं - अध्ययन । समत्तं - समाप्त हुआ ।
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