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श्री विपाक सूत्र
[दूसरा अध्याय
(२१) ज्योतिषशास्त्र-कला-इस कला से - ग्रह क्या है ? उपग्रह किसे कहते हैं ? ये कितने हैं ? कहां हैं ? और कैसे स्थित हैं ? ग्रहण का क्या मतलब है ? दिन रात छोटे बड़े क्यों होते हैं ? अतुयें क्यों बदलती हैं ? सूर्य पृथ्वी से कितनी दूर है ? गणित-ज्योतिष और फलित-ज्योतिष में क्या अन्तर है ? इत्यादि आकाश सम्बन्धी अनेकों बातों का ज्ञान होता है।
(२२) वैद्यकशास्त्र-कला-इस कला से- हमारे शरीर की भीतरी बनावट कैसी है ? भोजन का रस कैसे और शरीर के कौन से भाग में तैयार होता है ? हडिडये कितनी हैं ? उन के टटने के कौन २ कारण हैं ? और कैसे उन्हें ठीक किया जाता है ? ज्वरादि की उत्पत्ति एवं उस का उपशमन कैसे होता है ? इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है।
(२३) षडभाषा कला ---इस कला से संस्कृत, शौरसेनी, मागधी, प्राकृत, पैशाची और अपभ्रश इन छ भाषायों का ज्ञान उपलब्ध किया जाता है।
१२४) योगाभ्यास-कला-इस कला से सांसारिक विषयों से मन हटाकर परमात्म-भाव की ओर लगाए रखने का ज्ञान कराया जाता है । इस के द्वारा ८४ श्रासनों की साधना की जाती है । इस कला के द्वारा योग के आठों अंगों आदि की शिक्षा दी जाती है।
(२५) रसायन-कला-इस कला से ---कई बहुमूल्य धातुऐ’, जड़ी बूटियों के संयोग से तैयार की जाती है।
(२६) अंजन-कला-इस से - नेत्रज्योति में वृद्धि करने वाले तरह तरह के अंजनों को तैयार करने की विधि सिखाई जाती है ।
(२७) स्वप्नशास्त्र-कला--इस कला से -स्वप्न कब आते हैं। क्यों आते हैं ? इन का क्या स्वरूप है ? कितने प्रकार के होते हैं ? मध्यरात्रि के पहले और पीछे आने वाले स्वप्नों में से किस का प्रभाव अधिक होता है ? स्वप्न बुरा है, या अच्छा है? यह कैसे जाना जा सकता है ? इत्यादि अनेकों प्रकार की बातों का बोध होता है ।
(२८) इन्द्रजाल-कला- इस कला से-हाथ की सफाई के अनेको काम सीखना तथा दिखाना. किसी चीज के टुकड़े टुकड़े करके पीछे उसे उस के पहले के रूप में ला दिखाना, लौकिक दृष्टि में किसी परुष को निर्जीव बना करके, सब के देखते देखते फिर से उसे सजीव बना देना, किसी की दृष्टि को ऐसा बान्ध देना कि उसे जो कहा जाए वही दिखे, किसी चीज को टुकड़े २ करके मुख द्वारा खा जाना और फिर उसे उस के पूर्वरूप में ही नाक या बगल या कान की ओर से निकाल कर दिखाना, इत्यादि बातों की पूरी २ शिक्षा दी जाती है ।
(२९) कृषि-कम-कला-इस कला से भूमी की प्रकृति कैसी होती है ? इस भूमी में कौन सी वस्तु अधिकता से उत्पन्न हो सकती है ? अमुक वस्तु या अनाज या वृक्ष, लताएं अमुक समय में लगाएं जाने चाहियें ? उन्हें अमुक २ खाद देने से वे खूब फलते और फूलते हैं. खेती के लिये भिन्न भिन्न प्रकार के किन २ औजारों की आवश्यकता है ? इत्यादि बातों का सांगोपांग ज्ञान कृषक लोगों को कराया जाता है।
(३०) वस्त्रविधि-कला-इस कला के द्वारा वस्त्र किन किन पदार्थों से बनाए जाते हैं ? उन की उपज कहां, कब और कैसे, उत्तम से उत्तम रूप में की जा सकती है ? जिस कपास के तन्तु जितने ही अधिक लम्बे अधिक निकलते हैं, वह कैसा होता है ? उत्तम या अधम कोटि के कपास, ऊन, टसर, रेशम, या पश्म की क्या पहचान है ? इत्यादि बातों का पूरा पूरा ज्ञान लोगों को कराया जोता हैं।
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