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दुसरा अध्याय]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
देख रेख रखती थी । संक्षेप में कहें तो कामध्वजा वागिाजग्राम नगर की सर्व-प्रधान राजमान्य और सुप्रसिद्ध कलाकार वेश्या थी ।
इस प्रकार से प्रस्तुत सूत्र में काम वजा गणिका के संसारिक वैभव का वर्णन प्रस्तावित किया गया है । इस में सन्देह नहीं कि स्त्री-जाति की प्रवृत्ति प्रायः संसाराभिमुखी होती है, वह सांसारिक विषय--वासनाओं की पूर्ति के लिये विविध प्रकार के साधनों को एकत्रित करने में व्यस्त रहती है । परन्तु इस में भी शंका नहीं की जा सकती कि जब उस की यह प्रवृत्ति कभी सदाचाराभिगामिनी बन जाती है और उस की हृदय --- स्थली पर धार्मिक भावनाओं का स्रोत बहने लग जाता है तो वही स्त्री. जाति संसार के सामने एक ऐसा पुनीत आदर्श उपस्थित करती है, कि जिस में संसार को एक नये ही स्वरूप में अपने आप को अवलोकन करने का पुनीत अवसर प्राप्त होता है । स्त्री जति उन रत्नों की खान है कि जिन का मूल्य संसार में अांका ही नहीं जा सकता । जिन महापुरुषों की चरण-रज से हमारी यह भारत-बम धरा पुण्य भूमि कहलाने का गौरव प्राप्त करती है उन महापरुषों को जन्म देने वाली यह स्त्री जाति ही तो है । हमारे विचारानुसार तो संसार के उत्थान और पतन दोनों में ही स्त्री-जाति को प्राधान्य प्राप्त है । अस्तु ।
अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में प्रस्तुत अध्ययन के नायक का वर्णन करते हैं - मूल -'तत्थ णं वाणियग्गामे विजयमित्ते नामं सत्थवाहे परिवसति अड्ढे० । तस्स णं विजमित्तस्स सुभद्दा नामं भारिया होत्था । अहीण । तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए' भारियाए अत्तए उज्झितए नामं दारए होत्था, अहीण० जाव सुरूवे ।
पदार्थ-तत्य णं - उस । वाणियग्गामे-वाणिज – ग्राम नामक नगर में । विजयमित्तेविजय-मित्र । णाम-नाम का । सत्यवाहे-सार्थवाह-व्यापारी यात्रियों के समूह का मुखिया । परिवसति- रहता था जो कि । अड्ढे०-धनो-धनवान् था । तस्स णं-उस । विजय मित्तस्सविजयमित्र की। अहीण-अन्यून पञ्चेन्द्रिय शरीर सम्पन्न। सुभदा-सुभद्रा । नाम-नाम की । भारिया-भार्या । होत्था-थी। तम्स णं--उस । विजयमित्तस्स-विजयमित्र का । पुत्ते - पुत्र । सुभदाए भारियाए-सुभद्रा भार्या का। अतए--श्रात्मज । उज्झितए-उज्झितक । नाम- नाम का । दारए -- बालक । होत्था-था जोकि । अहीण -अन्यन पंचेन्द्रिय शरीर सम्पन्न । जाव-यावत् । सुरुवे-सुन्दर रूप वाला था ।
मूलार्थ-उस वाणिजग्राम नगर में विजयमित्र नाम का एक धनी सार्थवाह-व्यापारी वर्ग का मुखिया निवास किया करता था। उप विजय मित्र की सर्वांग - सम्पन्न सुभद्रा नाम की भार्या थी । उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज उज्झितक नाम का एक सर्वांग-सम्पन्न और रूपवान् बालक था।
टीका --कामध्वजा गणिका के वर्णन के अनन्तर सूत्रकार उज्झितक के माता पिता का वर्णन कर रहे हैं। वाणिज--ग्राम नगर में विजयमित्र नाम का एक सार्थवाह (व्यापारी वर्ग के मुख्य.
(१) छाया-तत्र वाणिजाग्रामे विजय - मित्रो नाम सार्थवाहः परिवसति अान्य० । तस्य विजयमित्रस्य सुमद्रा नाम भार्याऽभूत् । अहोन। तस्य विजयमित्रस्य पुत्रः सुभद्रायाः भार्याया आत्मजः उज्झितको नाम दारकोऽभूत् । अहीन. यावत् सुरूप: ।
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