________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
अध्याय]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[५७
रहकूडस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस गयातका पाउब्भूया तंजहासासे १ कासे २ जरे ३ दाहे ४ कुच्छिमूले ५ भगंदरे ६ अरिसे ७ अजीरते ८ दिट्ठी । मुद्धमूले १० अकारए ११ अच्छिवेषणा १२ करणवेय णा १३ 'कंडू १४ दोदरें १५ कोढ़े १६ ।।
__ पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से एक्काई रटुकड़े- वह एकादि राष्ट्रकूट । विजयवद्धमाणस्स : खेडस्स --विजयवर्द्धमान खेट के। बहूणं-अनेक | राइसर० जाव सत्थवाहाणं-राजा से लेकर सार्थवाह पर्यन्त । अन्नेसि च -तथा अन्य । बहू णं-अनेक । ग मेल्लगपुरिसाणं-ग्रामीण पुरुषों के | बहूसु- बहुत से । कज्जेसु-कार्यों में । कारणेसु य-कारणों-कार्यसाधक हेतुओं में । मंतेसुमन्त्रों-कर्तव्य का निश्चय करने के लिये किये गये गुप्त विचारों में । गुज्झेसु निच्छुएसु-गुप्त निश्चयो निर्णयों में तथा । ववहारसु-व्यवहारों में विवादों में अथवा व्यवहारिक बातों में । सुणमाणे-सुनता हुअा । भणति- कहता है । न सुणेमि-मैंने नहीं सुना । असुणमाणे भणति-न सुनता हुअा कहता है सुणेमि--सनता हूँ। एवं इसी प्रकार । पस्समाणे-देखता हुअा । भासमाणे-बोलता हुआ । गेरहमाणे--ग्रहण करता हुआ । जाणमाणे-जानता हुआ [भी विपरीत ही कहता है] । तते णं- तदनन्तर । से एक्काई रहकूड़े- वह एकादि राष्ट्रकट । एयकम्मे-इस प्रकार के कर्म करने वाला । पयप्पहाणे---- इस प्रकार के कर्मों में तत्पर । पयविज्जे- इसी प्रकार की विद्या-विज्ञान वाला । एयसमायारे-इस प्रकार के प्राचार बाला। सुबहुं-अत्यधिक । कलिकलुसं-कलह (दुःख) का कारणी भूत होने से मलिन । पावं कम्मं-पाप कर्म । समज्जिणमाणे-उपार्जन करता हुअा । विहरति--जीवन व्यतीत कर रहा था । तते णं-तदनन्तर । तस्स-उस । एगाइयस्स--एकादि । रकूडस्स-राष्ट्रकूट के। अराणया कयाइ- किसी अन्य समय । सरीरंगसि-शरीर में । जमगसमगमेव-युगपद्-एक साथ ही। सोलस--सोलह । रोयातंका-रोगातंक कष्ट साध्य अथवा असाध्य रोग। पाउब्भूया-उत्पन्न हो गये। तजहा --जैसे कि । सासे- श्वास । कासे-कास । जरे-ज्वर । दाहे-दाह । कुच्छिसूले-- उदरशूल । भगंदरे ---भगंदर । अरिसे- अर्श -- बवासीर । अजीरते-अजीर्ण । दिट्ठो-दृष्टिशूल-नेत्रपीड़ा मुद्धसले---मस्तकशूल-शिरोवेदना । अकारए-अरुचि-भोजन की इच्छा का न होना । अच्छिवेयणाअांख में दर्द होना । कराणवेयणा-कर्णपीड़ा। कंडू-खुजली। दोदरे–दकोदर, जलोदर-उदररोग का भेद विशेष । कोढ़े- कुष्ठरोग ।
मूलाथे -तदनन्तर वह राष्ट्रकट [प्रान्त विशेष का अधिपति ] एकादि विजयवर्द्धमान खेट के अनेक राजा-मांडलिक, ईश्वर-युवराज, तलवर-राजा के कृपापात्र, अथवा जिन्हों ने राजा की ओर से उच्च आसन ( पदवी विशेष ) प्राप्त किया हो ऐसे नागरिक लोग, तथा माडंबिक--मडम्ब' के अधिपति, कौटुम्बिक-कुटुम्बों के स्वामी श्रेष्ठी और सार्थवाह-सार्थनायक तथा अन्य अनेक ग्रामीण पुरुषों के कार्यों में, कारणों में, गुप्तमंत्रों-मंत्रणाओं, निश्चयों और विवादसम्बन्धी निर्णयों अथवा व्यवहारिक बातों में सुनता हुआ कहता है कि मैंने नहीं सुना, नहीं सुनता हुआ कहता है
(१) जिसके निकट दो दो योजन तक कोई ग्राम न हो उस प्रदेश को मडम्ब कहते हैं । - "मडम्बं च योजनद्वयाभ्यन्तरेऽविद्यमानप्रामादिनिवेशाः सन्निवेविशेषाः प्रसिद्धाः [वृत्ति कारः]
For Private And Personal