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श्री विपाक सूत्र
[ प्रथम अध्याय
६६ ]
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ज्ञायक - पुत्र अथवा । तेइच्छित्रो वा - चिकित्सक - केवल चिकित्सा - इलाज करने में निपुण, अथवा । इच्छितो वा - चिकित्सक पुत्र । एगातिस्स रट्ठक्रूडस्स – एकादि नामक राष्ट्रकूट के । तेसिं-उन । सोसरहं - सोलह । रोगातं कारणं - रोगातंकों में से । एगमवि रोगातंर्क-एक रोगातंक को भी । उवसामित्तते - उपशान्त करना । इच्छति - चाहता है । तस्स गं - उसको । एक्काई – एकादि । रह्कूड़ ेराष्ट्रकूट । विपुलं - बहुत सा । अत्यसंपयाणं दलयति – धन प्रदान करेगा, इस प्रकार । दोच्चं पि-दो बार तच्च पि-तीन बार । उग्घोसेह २ ता -- उद्घोषणा करो, उद्घोषणा कर के । एयमाणत्तियं पच्चपिरणह - इस आज्ञप्ति - आज्ञा का प्रत्पर्यण करो, वापिस आकर निवेदन करो, तात्पर्य यह है कि मेरी इस आज्ञा का यथाविध पालन किया गया है, इसकी सूचना दो । तते गं - तदनन्तर । ते–वे । कोडु बियपुरा - कौटुम्बिक - सेवक पुरुष | जाव - यावत् एकादि की आज्ञानुसार उद्घोषणा कर के पञ्चपिति - वापिस आकर निवेदन करते हैं अर्थात् हम ने घोषणा कर दी है ऐसी सूचना दे देते हैं । तते गं - तदनन्तर । से- उस । विजयवद्धमाणे - विजयवर्द्धमान । खेड़ े - खेट में । इमं एयारुवं - इस प्रकार की । उग्घोसणं - उद्घोषणा को । सोच्चा--सुनकर तथा । णिसम्म - अवधारण कर बहवे – अनेक । वेज्जा य ६ - वैद्य, वैद्य पुत्र, ज्ञायक, ज्ञायक -- पुत्र, चिकित्सक, - चिकित्सक - पुत्र । सत्यको सहत्थगया - शस्त्रकोष - औज़ार रखने की पेटी (बक्स) हाथ में लेकर । सरहिं सएहिं - अपने अपने । गेहेहिंतो - घरों से । पड़िनिक्खमंति- निकल पड़ते हैं । २ सा-निकल कर । विजयवद्धमाणस्स - विजय वर्द्धमान नामक | खेडस्स - खेट के । मज्मज्मेणं- मध्य भाग से जाते हुए । जेणेव - जहां । एगाइरट्ठकूटस्स- एकादि राष्ट्रकूट का । गेहे - घर था । तेणेव - वहां पर । उवागच्छंति - आते हैं । २त्ता - आकर । एगाइसरीरं - एकादि राष्ट्रकूट के शरीर का परामुति २ ता - स्पर्श करते हैं, स्पर्श करने के अनन्तर । तेसिं रोगाणं उन रोगों का । निदा निदान ( मुलकारण) । पुच्छन्ति २ त्ता - पूछते हैं, पूछ कर । एक्काइरकूडस्स – एकादि राष्ट्रकूट तेसिं - उन । सालस एहं - सोलह । रायातं कारणं - रोगातंकों में से । एगमवि - किसी एक । रोयातंर्करोगातंक को । उवसामित्तर - उपशांत करने के लिये । बहूहिं- अनेक । श्रब्भंगेहि य - अभ्यंग - मालिश करने से । उवट्टणाहि य- उद्वर्तन - वटणा वगैरह मलने से । सिणेहपाणेहि यI - स्नेहपान करानेस्निग्धपदार्थों का पान कराने से । वमणेहि य- वमन कराने से । विरेयणाहि य - विरेचन देने-म - मल को बाहर निकालने से । सेयणाहि य-सेचन - जलादि सिंचन करने अथवा स्वेदन करने से । अवदाहरणाहि य-दागने से । अवरहाणेहि य-अवस्नान - विशेष प्रकार के द्रव्यों द्वारा संस्कारित - जल द्वारा स्नान कराने से अणुवासणाहि य- अनुवासन कराने पान - गुदाद्वार से पेट मे तैलादि के प्रवेश कराने से । वत्थिकम्मे हि य - बस्ति कर्म करने अथवा गुदा में वर्ति आदि के प्रक्षेप करने से । निरुहेहि य-निरुह औषधियें डाल कर पकाए गए तेल के प्रयोग से ( विरेचन विशेष से ) तथा । सिरावेधेहि य-शिरावेध - नाही वेध करने से 1 तच्छृणेहि य-तक्षण करने - तुरक - छुरा उस्तरा आदि द्वारा त्वचा को काटने से । पच्छणेहि य- पच्छ लगाने से तथा सूक्ष्म विदीर्ण करने से । सिरोत्थीहि य- - " शिरोबस्तिकर्म से । तपणेहि य-तैलादि स्निग्ध पदार्थों के द्वारा शरीर का उपबृंहण करने अर्थात् तृप्त करने से, एवं । पुडपागेहि य-पाक विधि से निष्पन्न औषधियों से । छल्लीहि य-छालों से अथवा रोहिणी प्रभृति वन - लताओ से । मूलेहि य- वृक्षादि के मूलों - (१) मस्तक पर चमड़े की पट्टी बान्धकर उस में नाना विधि द्रव्यों से संस्कार किये गये तेल को भरने का नाम शिरोबस्तो है ।
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