Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
भाषण
PEECitiecesaHAREKALICHUGERLIANCE
है होनेवाला पदार्थ भी क्षणिक ही हो सकता है, चिरस्थायी नहीं। इसलिये चिरस्थायी किसी भी पदार्थ है।
के न होनेके कारण ज्ञान और वैराग्यकी भावना न हो सकेगी इसरीतिसे ज्ञान और वैराग्य मोक्षके , कारण नहीं हो सकते । तथा यह भी बात है कि बौद्धोंने उत्पचिके बाद पदार्थों को निरन्वय विनाश 3
माना है अर्थात् वे मानते हैं कि ज्ञानादि पदार्थ जिस समय उत्पन्न होते हैं उसी समय उनका नाश हो । जाता है ऐसी अवस्थामें उनकी सन्तान भी नहीं चल सक्ती । जब यह वात है तब पूर्व पदार्थ और उचर इ पदार्थोंमें किसी प्रकारका संबंध न होनेके कारण पूर्व पदार्थ कारण और उत्तर पदार्थ कार्य इस हूँ कार्य कारण व्यवहारका सर्वथा लोप हो जायगा फिर ‘अविद्याप्रत्ययाः संस्काराः" संस्कारोंकी उत्पचिमें है कारण अविद्या है यह जो बौद्धोंके,आगमका वचन है वह विरुद्ध हो जायगा क्योंकि यहां अविद्या है
कारण और संस्कारोंको कार्य माना है । अविद्याका निरन्वय विनाश मानने पर अविद्याके कार्य संस्कार ॐ न हो सकेंगे। यदि यह माना जायगा कि पदार्थों का निरन्वय विनाश नहीं होता, संतान क्रमसे ही ४ ६ विनाश होता है। पूर्व पूर्व पदार्थ नष्ट होते चले जाय तो भी उनकी संतान वरावर बनी रहेगी इसरूपसे ६ पूर्व पूर्व पदार्थोंको कारणपना और उचर उत्तर पदार्थों का कार्यपना सिद्ध होजानेपर अविद्या कारण हूँ और संस्कार कार्य हो जायगें कोई दोष नहीं ? सो भी अयुक्त है । यदि सन्तानकी कल्पना की जायगी है। है तो वह संतान अपने आधारस्वरूप-संतानी पदार्थसे भिन्न है वा अभिन्न है ? इत्यादि अनेक दोषोंकी है।
उत्पचि हो जायगी अर्थात् ज्ञान आदि पदार्थों की संतान अपने आधारस्वरूप ज्ञानादि पदार्थों से भिन्न है। मानी जायगी तो जिसतरह 'घटका पट' यह व्यवहार नहीं होता क्योंकि घट पट दोनों ही पदार्थ का आपसमें भिन्न है उसीतरह ज्ञानकी संतान वा आत्मा आदिकी संतान यह भी व्यवहार न होगा क्योंकि