Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
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|| गमन कर सकता इसालये आत्मामें देशांतरसंक्रमरूप विक्रिया भी बाधित है इसरीतिसे प्रत्यक्ष अनु-ई ०रा०
|मान उपमान और शब्दके संबंधसे होनेवाले वा प्रत्यक्ष अनुमान शब्दसे उत्पन्न होनेवाले वा प्रत्यक्ष और
अनुमानसे होनेवाले ज्ञानका जब आत्मामें अभाव है और वैराग्यरूप परिणाम भी नहीं सिद्ध हो सकता | तब ज्ञान और वैराग्य मोक्षकी प्राप्तिमें कारण नहीं हो सकते एवं जिसतरह भूत भविष्यत् वर्तमान तीनों 5|| कालोंमें समानरूपसे रहनेवाले आकाशकी मोक्ष नहीं हो सकती क्योंकि उसमें सर्वथा नित्य और व्या|पक होनेसे विक्रियाका अभाव है उसीप्रकार आत्मा भी जब सर्वथा नित्य और व्यापक है तब विक्रिया । | न होनेके कारण उसे भी मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सकती। यदि यह कहा जायगा कि दोनों प्रकारकी वि. में क्रियाकी सचा-समवाय संबंधसे आत्मामें मान लेनेपर उसे मोक्ष प्राप्त हो सकेगी ? सो भी नहीं । सम- | || वाय सम्बन्ध कोई भी पदार्थ नहीं यह हम पहिले खंडन कर आए हैं । तथा
क्षणिकैकांतेप्यवस्थानाभावाज्ज्ञानवैराग्यभावनाभावः ॥ १८॥ जिनका यह सिद्धांत है कि "क्षणिकाः सर्वसंस्काराः" समस्त पदार्थ क्षणिक हैं,उनके मतमें जिस || क्षणमें ज्ञान आदि पदार्थों की उत्पचि होगी उसी क्षणमें उनका नाश हो जानेसे दूसरे क्षणमें ये मोजूद ॥ रह नहीं सकते इसलिये पदार्थों का ज्ञान वा उपदेश आदि नहीं बन सकते । यदि यह कहा जाय कि | ज्ञानोंसे संस्कार रूप पदार्थकी उत्पचि होगी और वह चिरस्थायी पदार्थ रहेगा जिससे उपदेश आदिको व्यवस्था हो सकती है ? सो भी ठीक नहीं। जब सभी पदार्थ क्षणविनाशीक है तब ज्ञानोंसे उत्पन्न
१ जब कि आत्मा नित्य और व्यापक है तब वह सदा एक रूपमें और एक ही स्थानमें आकाशकी तरह ठहरा रहेगा, उसमें | | विशेष ज्ञान और वैराग्यरूप परिणाम भी नहीं हो सकता और न मोक्ष गमनरूप क्रिया ही हो सकती है।
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