Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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होती है' यह जो वादीकी प्रतिज्ञा थी वह नष्ट होगई । प्रतिज्ञाके नष्ट हो जानेपर अकेले ज्ञानसे मोक्षको ६ सिद्धि नहीं हो सकती और भी यह वात है कि-
. उभयथा दोषोपपत्तेः ॥ १३ ॥ संस्कारोंका नाश ज्ञानसे माना जायगा वा अन्य किसी कारणसे ? यदि ज्ञानसे कहा जायगा | है तब ज्ञानके हो जानेपर उसीसमय संस्कारोंका भी नाश हो जायगा इस गीतिसे संस्कारोंके नष्ट होजाने
पर संसारमें रहना बन न सकेगा फिर उपदेश देना कैसे. सिद्ध होगा ? यदि अन्य किसी कारणको 21 संस्कारोंका नाशक कहोगे तो फिर वह सिवाय चारित्रके दूसरा कोई है नहीं इस रीतिसे चारित्रको हो। 3 मोक्षको सिद्धिका कारण हो जानेपर 'ज्ञानसे ही मोक्ष होती है ' यह वादीकी प्रतिज्ञा छिन्न भिन्न हो। ६ जाती है । तथा
प्रवृज्याद्यनुष्ठानाभावप्रसंगश्च ॥ १४॥ यदि ज्ञानसे ही मोक्षका विधान माना जायगा तो फिर ज्ञान के लिये ही प्रयत्न करना चाहिये, | है मूड़ मुडाना, डाढी कपटवाना, कषायले रंगके कपडे पहिननारूप सन्यास और यम नियम आदि भाव' नाओंका भाना व्यर्थ है । कालकी मर्यादाकर किसी चीजका त्याग करना नियम और जीवन पर्यंत त्याग कर देना यम कहा जाता है।
___ ज्ञानवैराग्यकल्पनायामपि ॥ १५ ॥ '. यदि यह माना जायगा कि-'अकेले ज्ञानसे मोक्षका विधान नहीं किंतु ज्ञान और वैराग्यसे मोक्ष प्राप्त होती है ? सो भी ठीक नहीं। जिस समय पदार्थों का ज्ञान और विषय भोगोंमें अनासक्तिरूप
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