Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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उस समय सुखपूर्वक वे नगरमें आजाते हैं । इसलिये यह बात सिद्ध हो चुकी कि सम्यग्दर्शन आदि तीनों मिलकर ही मोक्षके मार्ग हैं जुदे २ नहीं ।
ज्ञानादेव मोक्ष इति चेदनवस्थानादुपदेशाभावः ॥ ११ ॥
दीपकसे अंधकार नष्ट हो जाता है इसलिये दीपकके रहते वह क्षणमात्र भी नहीं दीख पडता क्योंकि दीपक जल रहा हो और अन्धकार मौजूद हो यह वात युक्तियुक्त नहीं जान पडती । जो वादी ज्ञानमात्रसे ही मोक्ष मानता है उसके मतमें आत्मस्वरूपके ज्ञानके होते ही मोक्ष हो जायगी क्योंकि विज्ञान प्रगट हो जाय और उसका कार्य मोक्ष न हो यह वात अनुभवविरुद्ध है, इस रीति से विज्ञान के होते ही उसी क्षण मोक्ष हो जाने से शरीर और इंद्रियोंके व्यापार भी नष्ट हो जायगे इसलिये फिर उपदेश देना न हो सकेगा तथा यह वात ठीक नहीं क्योंकि दिव्यज्ञान - केवलज्ञान के हो जानेपर आयुकर्म के अवशेष रहने के कारण बहुत वर्ष तक केवली उपदेश देते हैं इसलिये अकेले ज्ञानसे ही मोक्ष कहना अयुक्त है । यदि यह कहा जाय कि
संस्कारक्षयादवस्थानादुपदेश इति चैन्न प्रतिज्ञातविरोधात् ॥ १२ ॥
विज्ञानके उत्पन्न हो जाने पर भी पहिले संस्कारों का नाश नहीं होता इसलिये जबतक वे संस्कार मोजूद रहते हैं तब तक आत्माकी मोक्ष नहीं होती, वह कुछ दिन संसारमें रहा आता है इसलिये उपदेश देनका समय मिल सकता है कोई दोष नहीं ? सो भी अयुक्त है । ज्ञानके उत्पन्न हो जानेपर भी जब तक संस्कारका क्षय नहीं होता तबतक संसारमें रहना पडता है, मोक्ष नहीं प्राप्त होती यदि यह कहा जायगा तब मोक्षकी प्राप्ति संस्कार के क्षयसे हुई, ज्ञानसे तो हुई नहीं इसलिये 'ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति
भाषा
६०.